यूरोपीय संघ का डबल गेम: भारत को बनाते रहे लगातार निशाना, लेकिन असली अपराधी तो यूरोप निकला!
सबसे दिलचस्प बात ये है, कि यूरोपीय मीडिया में बार बार इस बाबत लेख छप रहे हैं और चर्चाएं की जा रही हैं, कि भारत क्यों रूस के साथ रुपया-रूबल में कारोबार करने का व्यवस्था बना रहा है, जबकि...
नई दिल्ली, मई 27: रूस से तेल खरीदने को लेकर पश्चिमी देशों की मीडिया ने भारत पर अनर्गल आरोपों की बरसात भले ही की हो, या फिर पश्चिमी मीडिया लगातार भारत और रूस के बीच रुपया-रूबल ट्रेड को लेकर भले ही लेख पर लेख लिख रही हो, लेकिन हकीकत ये है, कि खुद यूरोपीय संघ और यूरोपीय देश की रूवल में पेट्रोल और गैस की खरीद का भुगतान तक रूस के आदेशों का ना सिर्फ पालन कर रहे हैं, बल्कि तमाम प्रतिबंधों के बाद भी रूसी की अर्थव्यवस्था में जान फूंक रहे हैं।
रूस के सामने खुद झुका यूरोप!
यूक्रेन युद्ध को यूरोपीय देशों ने यूरोप युद्घ ठहराया है और इसके जवाब में यूरोपीय संघ ने रूस के खिलाफ अभूतपूर्व प्रतिबंध लगाए हैं, लेकिन हकीकत ये है, कि खुद यूरोपीय संघ तेल और गैस की आपूर्ति के लिए रूस को रूसी करेंगी रूबल में भुगतान कर रहा है और रूसी राष्ट्रपति के 31 मार्च 2022 को दिए गये उस आदेश का पालन कर रहा है, जिसमें उन्होंने कहा था, कि रूस ने 'अमित्र देशों' में स्थित कंपनियों के लिए रूबल में गैस से संबंधित भुगतान करने का आवश्यक कर दिया है और स्पष्ट रूप से यूरोपीय संघ भी उसमें शामिल है'। इसके साथ ही रूस ने स्वीडन और फिनलैंड को गैस की आपूर्ति भी इसलिए रोक दी है, क्योंकि उन्होंने रूबल में भुगतान करने से मना कर दिया।
यूरोप का डबल गेम देखिए
एक तरफ यूरोपीय संघ भारत के खिलाफ टेढ़ी नजर बनाए हुआ है, जबकि, हालिया रिपोर्ट्स में पता चला है कि, यूरोपीय संघ के कई सदस्य देशों के बैंक ना सिर्फ रूस के आदेशों का पालन कर रहे हैं, बल्कि यूरो-रूबल व्यवस्था के तहत रूसी बैंक में नया खाता खोल रहे हैं। इस व्यवस्था को सामान्य तौर पर समझें तो, यूरोपीय कंपनियां रूस के बैंकों में दो खाते खोल रही हैं, एक खाता रूबल के लिए और दूसरा खाता यूरो के लिए। यूरोप का डबल गेम समझिए.. यूरोपीय संघ ने रूस के तमाम बैंकों पर प्रतिबंध लगा दिए हैं, जबकि रूसी गज़प्रॉमबैंक पर प्रतिबंध नहीं लगाए हैं, जो आम तौर पर तेल के कारोबार में पूरी तरह से शामिल है। अब यूरोपीय तेल कंपनियां रूसी गज़प्रॉमबैंक में यूरो में पैसे जमा कर उसे रूबल में कन्वर्ट करती हैं और फिर वहां से रूबल लेकर रूस को तेल का भुगतान किया जाता है।
कई देश इस डबल गेम में हैं शामिल
ऐसा करने वाली कंपनियों में ऑस्ट्रिया, फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, इटली, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया में स्थित तेल कंपनियां शामिल हैं। ऐसी कंपनियों की सूची दिन पर दिन बढ़ रही है, खासकर रूस द्वारा बुल्गारिया, पोलैंड और फ़िनलैंड को गैस की आपूर्ति रोक दिए जाने के बाद, क्योंकि उनकी कंपनियों ने रूबल में किए जाने वाले गैस भुगतान के लिए रूसी आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया था। रूस ने यह भी कहा है कि वह जल्द ही ऐसी यूरोपीय संघ की कंपनियों की पूरी सूची प्रकाशित करेगा। सबसे दिलचस्प बात ये है, कि भेद ना खुले, इसके लिए यूरोपीय आयोग स्पष्टत जानकारी देने से बच रहा है। औरये भी साफ करने से हिचकिचा रहा है, कि यूरोपीय संघ की कंपनियों द्वारा किए जा रहे ऐसे रूबल भुगतान यूरोपीय संघ के प्रतिबंध कानूनों का उल्लंघन करते हैं या नहीं? इस समय, कोई स्पष्टता नहीं है कि रूबल खाते खोलना यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों का उल्लंघन है।
ध्यान भटकाने भारत पर निशाना
सबसे दिलचस्प बात ये है, कि यूरोपीय मीडिया में बार बार इस बाबत लेख छप रहे हैं और चर्चाएं की जा रही हैं, कि भारत क्यों रूस के साथ रुपया-रूबल में कारोबार करने का व्यवस्था बना रहा है और इससे यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों का कितना उल्लंघन होता है, जबकि, खुद यूरोपीय संघ प्रतिबंधों के छठे पैकेज को लागू करने में असमर्थ रहा है, जिसकी घोषणा यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने मई की शुरुआत में की थी, क्योंकि तेल के आयात पर प्रतिबंध पर सदस्य राज्यों के बीच समझौता होना अभी भी बाकी है। और ज्यादातर देश रूस के खिलाफ और ज्यादा प्रतिबंध नहीं चाहते हैं। नतीजतन, यूरोपीय संघ रूसी तेल और गैस का सबसे बड़ा आयातक बना हुआ है और अभी भी रूसी ऊर्जा निर्यात का 3/4 हिस्सा आयात करता है। वेबसाइट 'beyond-coal.eu' के अनुसार, जो यूरोपीय संघ के जीवाश्म ईंधन के आयात की निगरानी करती है, उसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला शुरू होने के बाद यूरोपीय देशों ने 54 अरब यूरो के ऊर्जा आयात रूस से किए हैं, जिसमें 28 अरब यूरो तेल के लिए है और 24 अरब यूरो गैस के लिए और बाकी कोयला आयात के लिए है।
शातिर गेम में अभी भी माहिर यूरोप
अपनी शातिर नीतियों के तहत ही यूरोप ने पूरी दुनिया पर राज किया और अभी भी यूरोपीय देश दुनिया के बाकी देशों के उल्लू ही समझते हैं और शातिर खेल खेलने से अभी भी नहीं हिचकते हैं। यूरोपीय संघ की राजधानियों से प्राप्त इनपुट के अनुसार, पोलैंड, बुल्गारिया और फिनलैंड की हाइड्रोकार्बन कंपनियों ने रूसी डिक्री का पालन करने से इनकार कर दिया है। नीदरलैंड की तेल और गैस कंपनियां यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस पर प्रतिबंधों पर स्पष्टता की कमी का हवाला देते हुए अभी भी गैस खरीद रही है। वहीं, हंगरी, जर्मनी, फ्रांस, इटली, ऑस्ट्रिया, चेक गणराज्य और स्लोवेनिया की कंपनियों ने रूसी गैस के लिए भुगतान करना और प्राप्त करना जारी रखा है, लेकिन आपूर्तिकर्ता गज़प्रोम के साथ विवरण और क्या उन्होंने रूबल के प्रभुत्व वाला खाता खोला है, यह सामान्य सार्वजनिक ज्ञान नहीं है। इसलिए, अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं के मुकाबले रूसी रूबल लगातार मजबूत होता जा रहा है।
भारत का साफ और स्पष्ट संदेश
रूस से तेल खरीदने को लेकर वैसे भारत कई बार अपना रूख स्पष्ट कर चुका है, लेकिन पिछले महीने जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यूरोप की यात्रा की थी, उस वक्त उन्होंने फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ मुलाकात के दौरान साफ कर दिया था, कि रूस के खिलाफ लगाए गये प्रतिबंध छोटी अर्थव्यवस्था वाले देशों पर प्रतिकूल असर डाल रहे हैं और उनकी स्थिति काफी प्रभावित हो रही है, जो वैश्विक अस्थिरता पैदा कर सकते हैं। वहीं, यूरोपीय मीडिया भारत के खिलाफ फर्जी रिपोर्ट्स प्रकाशित करने में व्यस्त है और अपने गिरहेबां में झांकने के लिए तैयार नहीं है। जबकि, रूसी बैंक खुश हैं और रूस यूक्रेन पर बमबारी करने का सिलसिला बनाए हुआ है।
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