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बहुत रोचक है ताइवान का इत‍िहास, चीन से पुरानी है रार

ताइवान अपने को आज भी स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र मानता है, लेकिन ड्रैगन यानी चीन की शुरुआत से यही राय रही है क‍ि ताइवान को चीन में शामिल होना चाहिए। वह इसे अपने में मिलाने के लिए बल प्रयोग को भी गलत नहीं ठहराता है।

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ताइपे/बीजिंग, 4 जुलाई: चीन ने अमेरिकी स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा की निंदा करते हुए इसे 'बेहद खतरनाक' बताया है। बता दें कि, पिछले 25 साल में इस स्वतंत्र द्वीप की यात्रा करने वाली नैन्सी पेलोसी अमेरिका की पहली बड़ी नेता हैं। उनकी यात्रा के विरोध में चीन ने ताइवान में अपने लड़ाकू विमान उड़ाकर अमेरिका को ताकत दिखाने का प्रयास किया, लेकिन अमेरिका जैसे महाशक्ति देश ने चीन की इस धमकी को नजरअंदाज कर दिया।

चीन की ताइवान को लेकर अलग सोच

चीन की ताइवान को लेकर अलग सोच

चीन ताइवान को एक अलग प्रांत के रूप में देखता है। चीन का यह भी कहना है कि, ताइवान फिर से बीजिंग के नियंत्रण में होगा। वहीं, ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश के रूप में देखता है, जिसका अपना संविधान और लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता हैं।दूसरी तरफ चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा है कि ताइवान को चीन में मिलाने के लिए अगर बीजिंग को बल भी प्रयोग करना पड़े, तो भी वह पीछे नहीं हटेगा।

फिर से ताइवान को लेकर चर्चा तेज

फिर से ताइवान को लेकर चर्चा तेज

ताइवान और चीन को लेकर एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चाएं हो रही हैं। ताइवान में अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी के दौरे के बाद चीन का रिसपांस अलग ही द‍िख रहा है। दौरे के विरोध में चीन सिर्फ बयानबाजी ही नहीं कर रहा है बल्क‍ि ताइवान के डिफेंस जोन में 21 एयरक्राफ्ट उड़ाकर चीन ने चेतावनी भी दी है। चीन और ताइवान की यह दुश्मनी नई नहीं है, इसके पीछे पुराना आपसी झगड़ा खास वजह है। आइए जानते हैं ताइवान का इत‍िहास और वहां की खासियतें क्या हैं, वहां के लोग कैसे हैं और आख‍िर चीन ताइवान की आपसी दुश्मनी की वो खास वजह क्या है।

कहां है ताइवान

कहां है ताइवान

ताइवान एक द्वीप है, जो दक्षिण पूर्व चीन के तट से लगभग 100 मील दूर है और अमेरिका के अनुकूल क्षेत्रों की सूची में शामिल है। यह देश अमेरिकी विदेश नीति के लिए काफी महत्वपूर्ण है। लेकिन चीन ताइवान पर हमेशा से अपना दावा करता रहा है।

क्या ताइवान हमेशा चीन से अलग रहा है?

क्या ताइवान हमेशा चीन से अलग रहा है?

बता दें कि, कॉमिंगतांग सरकार के दौरान चीन का आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना कर दिया गया था। चीन और ताइवान के इस पेचीदा विवाद की कहानी शुरू होती है साल 1949 से। ये वो दौर था जब चीन में हुए गृहयुद्ध में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को हराया था। चीन में सत्ता में आ चुके कम्युनिस्टों की नौसैनिक ताक़त कमजोर थी। यही कारण था कि माओ की सेना सागर पार करके ताइवान पर नियंत्रण नहीं कर सकी। कम्युनिस्टों से हार के बाद कॉमिंगतांग ने ताइवान में जाकर अपनी सरकार बनाई।

क्या हुआ था, जानें

क्या हुआ था, जानें

इस बीच दूसरे विश्वयुद्ध में जापान की हार हुई तो उसने कॉमिंगतांग को ताइवान का नियंत्रण सौंप दिया। यह हस्तांतरण दो संधियों के आधार पर हुआ था। इस बीच यह विवाद उठ खड़ा हुआ कि जापान ने ताइवान किसको दिया। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन में कम्युनिस्ट सत्ता में थे और ताइवान में कॉमिंगतांग का शासन था। माओ का मानना था कि जीत जब उनकी हुई है तो ताइवान पर उनका अधिकार है जबकि कॉमिंगतांग का कहना था कि बेशक चीन के कुछ हिस्सों में उनकी हार हुई है मगर वे ही आधिकारिक रूस से चीन का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहीं से दो राजनीतिक इकाइयां अस्तित्व में आ गईं और वे दोनों आधिकारिक चीन होने का दावा करने लगीं।

कॉमिंगतांग ने देश का नाम रिपब्लिक ऑफ़ चाइना कर दिया

कॉमिंगतांग ने देश का नाम रिपब्लिक ऑफ़ चाइना कर दिया

1911 में कॉमिंगतांग ने देश का नाम रिपब्लिक ऑफ़ चाइना कर दिया था और 1950 तक यही नाम रहा। 1959 में कॉमिंगतांग ने ताइवान में सरकार बनाई तो उन्होंने कहा कि भले ही चीन के मुख्य हिस्से में हम हार गए हैं फिर भी हम ही आधिकारिक रूप से चीन का नेतृत्व करते हैं न कि कम्युनिस्ट पार्टी, इसलिए हमें मान्यता दी जाए।

आधिकारिक मान्यता को लेकर मची होड़

आधिकारिक मान्यता को लेकर मची होड़

उधर माओ ने भी कहा कि उसे ही आधिकारिक रूप से मान्यता मिलनी चाहिए। इस बीच कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों ने मांग उठाई कि देश का यह नाम कॉमिंगतांग का दिया हुआ है और अब वे ताइवान में जाकर खुद को रिपब्लिक ऑफ चाइना ही कह रहे हैं। ऐसे में उन्होंने अपनी सरकार बनाई और देश को नया नाम दिया- पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना। इसके बाद से दोनों 'चाइना' खुद को आधिकारिक चीन बताते रहे और इसी आधार पर विश्व समुदाय से मान्यता चाहते रहे है। चीन ताइवान को अपने में मिलाने के लिए आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में कदम भी बढ़ा सकता है। हालांकि, वह कह चुका है कि ताइवान को चीन में मिलाने के लिए वह सैन्य ताकत का भी इस्तेमाल करेगा। यह सच्चाई है कि, चीन ताइवान से हर क्षेत्र में ताकतवर है। उससे मुकाबला करना ताइवान के लिए आसान नहीं होगा।

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English summary
If China was to take over Taiwan, some western experts suggest it could be freer to project power in the western Pacific region and could possibly even threaten US military bases as far away as Guam and Hawaii.
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