G7 की बैठक में भारत को आमंत्रित नहीं करेगा जर्मनी! पीएम मोदी से है गुस्सा, यूरोप खेल रहा डबल गेम?
जर्मनी, बवेरिया में होने वाली बैठक में सेनेगल, दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया को अतिथि के रूप में शामिल करने के लिए तैयार है, लेकिन भारत अभी भी विचाराधीन है।
बर्लिन/नई दिल्ली, अप्रैल 13: इस साल जून में होने वाली जी7 की बैठक में जर्मनी बतौर मेहमान राष्ट्र भारत को आमंत्रित नहीं कर सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, यूक्रेन पर हमला करने वाले रूस की निंदा नहीं करने को लेकर जर्मनी पीएम मोदी से गुस्सा है और इसी नाराजगी के चलते इस बार जर्मनी भारत को बतौर गेस्ट नहीं बुला सकता है। मामले के जानकर अधिकारियों के मुताबिक, जर्मनी इस बात पर बहस कर रहा है, कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जून में आयोजित होने वाले सात देशों के शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया जाए या नहीं?
भारत को नहीं बुलाएगा जर्मनी?
जर्मनी बवेरिया में बैठक में सेनेगल, दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया को अतिथि के रूप में शामिल करने के लिए तैयार है, लेकिन भारत अभी भी विचाराधीन है। गोपनीय मामलों पर चर्चा करते हुए पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा कि, भारत यूक्रेन में युद्ध शुरू होने से पहले तैयार की गई जी7 की सूची में शामिल था, लेकिन युक्रेन युद्ध में भारत के रूख को देखते हुए अभी तक अंतिम फैसला नहीं लिया गया है।
भारत ने नहीं की रूस की निंदा
आपको बता दें कि, भारत उन 50 से ज्यादा देशों में शामिल था, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से रूस को निलंबित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग करने से परहेज किया था, और भारत ने अभी तक मास्को की ना तो निंदा की है और ना ही भारत ने रूस के ऊपर किसी भी तरह का प्रतिबंध लगाया है। यहां तक कि, भारत ने रूस से तेल और कोयले की खरीददारी भी बढ़ा दी है। भारत का कहना है कि, वो रूसी हथियारों का एक महत्वपूर्ण खरीददार है और उसके पड़ोस में दो दुश्मन देश हैं, जिन्हें रोकने के लिए वो रूसी हथियारों पर निर्भर है।
जर्मनी ने क्या कहा?
जर्मनी सरकार के प्रवक्ता स्टीफन हेबेस्ट्रेइट ने कहा कि, जैसे ही इसे (लिस्ट) अंतिम रूप दिया जाएगा, बर्लिन मेहमानों की अपनी सूची पेश करेगा। हेबेस्ट्रेइट ने कहा कि, 'चांसलर ने बार-बार स्पष्ट किया है, कि वह अधिक से अधिक अंतरराष्ट्रीय भागीदारों को प्रतिबंधों में शामिल होते देखना चाहते हैं।' वहीं, भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस मुद्दे पर फिलहाल टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। रूसी ऊर्जा आयात पर अपनी निरंतर निर्भरता के लिए जर्मनी खुद यूक्रेन और पोलैंड सहित अमेरिकी सरकार की आलोचना के घेरे में रहा है। बर्लिन ने उस निर्भरता को कम करने के लिए कदम उठाए हैं, हालांकि जर्मन कंपनियां अपने कारखानों को बिजली देने के लिए रूसी प्राकृतिक गैस पर बहुत अधिक निर्भर हैं और जर्मनी अभी भी रूस से भारी मात्रा में तेल और गैस की खरीदारी कर रहा है। (तस्वीर- जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज)
रूस पर जी7 देशों का रूख
आपको बता दें कि, यूक्रेन पर आक्रमण के बाद जी7 देशों ने रूस के खिलाफ काफी सख्त रूख अख्तियार किया हुआ है और जी-7 देशों ने रूस को प्रतिबंधों के जाल में घेरा हआ है, वहीं जी7 देश लगातार यूक्रेन में हथियारों की सप्लाई कर रहे है। जी7 देशों ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की निंदा करने और ऊर्जा सहित रूस के साथ व्यापार और निवेश पर अंकुश लगाने के लिए अन्य देशों को शामिल करने की मांग की है। लेकिन लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व की कई सरकारें ऐसा करने से हिचक रही हैं। हालांकि, भारत को नहीं बुलाने की संभावनों को लेकर कई आलोचकों ने जर्मनी सरकार को वो डेटा दिए हैं, जिसमें जर्मनी खुद रूस से भारी मात्रा में तेल खरीदता है। यूक्रेन पर हमले के बाद भी जर्मनी समेत तमाम यूरोपीय देश ना सिर्फ रूस से तेल खरीद रहे हैं, बल्कि कुछ देशों नमे तेल की खरीदारी बढ़ा भी दी है।
रूसी तेल खरीदने पर अडिग भारत
ब्लूमबर्ग ने पहले बताया था कि, भारत ने कहा है कि वह रूसी तेल खरीदना जारी रखेगा और रूस काफी रियायती दर पर डिलीवरी की पेशकश कर रहा है। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों के अनुसार, भारत सरकार ने करीब 2 अरब डॉलर का अतिरिक्त तेल खरीदने की योजना भी बनाई है, ताकि रूस से निर्यात बढ़ाया जा सके। रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत और रूस अपनी अपनी मुद्रा में व्यापार को बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं। एक अधिकारी के अनुसार, जर्मन सरकार के अधिकारी युद्ध की शुरुआत से ही अपने भारतीय समकक्षों के संपर्क में रहे हैं, जिन्होंने निजी बातचीत के दौरान इसका खुलासा किया है। वहीं, फरवरी के अंत में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने फोन पर बात की थी।
जी7 और भारत
भारत जी7 में बतौर मेहमान देश शामिल होता रहा है और भारत अपनी इकॉनोमी को बढ़ाकर 5 ट्रिलियन डॉलर करना चाहता है, लिहाजा भारत के लिए जी7 देशों के साथ साझेदारी काफी महत्वपूर्ण भी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। फिलहाल भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 3 ट्रिलियन डॉलर से कुछ नीचे है और भारत अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए जी7 ग्रुप में शामिल होना चाहता है, ताकि भारतीय उद्योगों को यूरोपीय बाजार में रियायत के साथ ही आधुनिक टेक्नोलॉजी की मदद भी मिल सके और अगर इस बार भारत को इस बैठक में नहीं बुलाया जाता है, तो ये एक बड़ा झटका होगा। अभी तक भारतीय प्रधानमंत्रियों में नरेन्द्र मोदी दो बार जी7 समिट में शामिल हुए हैं, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जी7 समिट में पांच बार हिस्सा लिया था।
भारत को जी7 का सदस्य बनाने की मांग
जर्मनी भले ही इस बार भारत को बैठक में शामिल करने या नहीं करने के बीच फंसा हुआ है, लेकिन जी7 ग्रुप में भारत को भी शामिल करने की मांग हमेशा से उठती रही है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2019 में जी7 समूह को 'पुराना समूह' बताते हुए इसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया को शामिल करने की मांग कर चुके हैं। जी7 के 46वें शिखर सम्मेलन को स्थगित करते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था, कि G7 समूह पुराना हो चुका है, और अपने वर्तमान प्रारूप में यह वैश्विक घटनाओं का सही तरीके से प्रतिनिधित्व करने में सक्षम नहीं है। 2019 में 45वें जी7 समिट का आयोजन फ्रांस में किया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विशेष अतिथि के तौर पर बुलाया गया था। डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि अब वक्त आ गया है, जब जी7 ग्रुप को जी10 या फिर जी11 बना दिया जाए। ट्रंप ने जी7 ग्रुप में भारत, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया के अलावा रूस को भी शामिल करने की मांग की थी।
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