चीन की दो साल पुरानी ज़ीरो-कोविड पॉलिसी को लेकर अब लोग सड़कों पर क्यों?
चीन दुनिया का पहला देश था जहां कोरोना के कारण लॉकडाउन लगा और सरकार के जो इरादे हैं उनसे ऐसा लगता है कि वह लॉकडाउन के लिहाज़ से आखिरी देश भी बन जाएगा.
चीन में लोग कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए कड़े लॉकडाउन के खिलाफ़ सड़कों पर उतर आए हैं. बीजिंग, शंघाई और शिनजियांग सहित ये प्रदर्शन देश के कई शहरों में फैल गए हैं.
बीजिंग की शिंगुआ यूनिवर्सिटी जहां देश के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पढ़ाई की वहां के छात्र भी सरकार की ज़ीरो-कोविड पॉलिसी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं.
शी जिनपिंग के ख़िलाफ़ नारे लगाए जा रहे हैं- "शी जिनपिंग गद्दी छोड़ो..., हमें लोकतंत्र, क़ानून का शासन और बोलने की आज़ादी चाहिए."
यूं तो चीन में कड़े लॉकडाउन को लेकर बहुत कड़ा विरोध पहले नहीं देखा गया, दो साल पहले चीन के वुहान में जब पहली बार कोरोना का मामला सामने आया उसके बाद ही कम्युनिस्ट सरकार ने कड़े लॉकडाउन की नीतियां बनाई. चीन दुनिया का पहला देश था जहां कोरोना के कारण लॉकडाउन लगा और ऐसा लगता है कि वह इस लिहाज से आखिरी देश भी बन जाएगा. लेकिन आखिर दो साल बाद लोग इस नीति के खिलाफ़ सड़क पर क्यों हैं?
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दरअसल, बीते सप्ताह शिनजियांग के उरूमची में एक बिल्डिंग ब्लॉक में आग लग गई और इसमें कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई. लोगों का कहना है कि लॉकडाउन के नियम इतने कड़े थे कि जिन लोगों ने बिल्डिंग से बच कर भागना चाहा उन्हें सुरक्षाकर्मियों ने रोक दिया और कड़ी पाबंदियों के कारण 10 लोगों की मौत हुई.
चीन की ज़ीरो कोविड पॉलिसी जो आज इस प्रदर्शन का केंद्र है आखिर उसमें ऐसा क्या है जिसके खिलाफ़ लोग सड़कों पर उतर आए हैं, चीन एक ऐसा देश है जहां सरकार और प्रशासन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हालिया वक़्त में कम ही देखने को मिले हैं.
चीन की ज़ीरो कोविड पॉलिसी कितनी कड़ी?
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट कहती है, दुनियाभर में सबसे कड़े कोविड-विरोधी नीतियों और लॉकडाउन के लिए जाना जाने वाला देश अब भी संक्रमण से जूझ रहा है. जब से चीन में कोरोना की नई लहर शुरू हुई है, कई लाख लोग किसी ना किसी तरह के लॉकडाउन में रह रहे हैं.
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जब दुनिया में कोरोना की लहर आई तो चीन की सरकार ने ' डायनमिक ज़ीरो-कोविड ' नाम के साथ लॉकडाउन की नीतियां लागू करना शुरू किया.
इस नीति को सीधे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से जोड़ा जाता है. इसकी सफलता और इसके फेल होने को सीधे जिनपिंग के साथ जोड़ा जाता है.
इस साल अक्टूबर में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक में कहा, "ज़ीरो-कोविड पॉलिसी वायरस के खिलाफ़ लोगों की लड़ाई है."
चीन की ये पॉलिसी कितनी कड़ी है इसे बीबीसी की एक रिपोर्ट से समझिए- एक फास्ट ट्रेन का एक क्रू सदस्य संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आ गया था और इसके बाद इस ट्रेन में सारे लोगों का कोविड टेस्ट हुआ और उन्हें क्वारंटीन में रखा गया.
हालांकि अभी लॉकडाउन के नियम पहले से थोड़े लचीले ज़रूर हैं.
जैसे जिनमें कोविड-19 का संक्रमण पाया जा रहा है उन्हें 15 दिन आइसोलेशन सेंटर और तीन दिन घर पर आइसेलेशन में रखने के बजाय अब आठ दिन के लिए ही आइसोलेशन में रखा जा रहा है.
मार्च 2022 के बाद पहली बार चीन विदेशी यात्रियों को देश में आने की इजाज़त दे रहा है. हालांकि यात्रियों को यात्रा से 48 घंटे के भीतर कोरोना का टेस्ट करना होगा. लेकिन इजाज़त मिलना सहज और आसान नहीं है.
क्यों चीन में नहीं थम रहा कोविड संक्रमण
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ लगभग दो सप्ताह पहले तक चीन में लोगों को सार्वजनिक बस और ट्रेनों में कोविड की नेगेटिव रिपोर्ट दिखाने की ज़रूरत नहीं थी, देश में कड़े लॉकडाउन से थोड़ी राहत दी जा रही थी. लेकिन अब सबकुछ फिर बदल चुका है. शिनजिंयांग, गुआंगडोंग और गुआंगझो जैसे कई शहर संक्रमण से बेहद प्रभावित हैं और कोरोना का संक्रमण इस साल अप्रैल में देश में आई कोरोना की लहर से भी ज़्यादा है.
जापानी रिसर्च फ़र्म नोमुरा के मुताबिक़ बीते सप्ताह तक चीन के 50 से अधिक शहर जो चीन की कुल एक तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करती हैं वह संपूर्ण या आंशिक लॉकडाउन में है.
जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के मुताबिक़ बीते 24 घंटे में चीन में 43 हज़ार से ज़्यादा कोरोना के नए केस सामने आए है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े कहते हैं कि बीते सात दिनों में चीन में 418 लोगों की कोरोना के संक्रमण के कारण मौत हुई है.
चीन की तुलना दुनिया के सबसे प्रभावित देशों से करें तो अमेरिका में कोरोना के नए संक्रमण के मामले सामने नहीं आ रहे हैं. वहीं भारत में बीते सात दिनों में महज 2800 नए मामले सामने आए और 51 मौतें हुई हैं.
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दुनिया के ज़्यादातर देशों ने ये मान लिया है कि कोरोना की वैक्सीन आने के बावजूद भी हमें संक्रमण के साथ जीना सीखना होगा लेकिन चीन की राय इससे अलग है. चीन का मानना है कि कोरोना संक्रमण के सभी मामले पूरी तरह खत्म करने तक वे अपनी पॉलिसी जारी रखेंगे.
चीन में होने वाली मास टेस्टिंग, लगातार होने वाली स्वास्थ्य स्कैनिंग. लोगों पर लगाए गए कड़े यात्रा प्रतिबंधों ने चीन के अस्पतालों को अन्य देशों जैसी हालत से तो बचा लिया, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ जब से कोरोना का संक्रमण शुरू हुआ है तब से अब तक चीन में 30 हज़ार तक मौतें हुई हैं. लेकिन पाबंदियों का असर ये रहा कि युवा बेरोजगारी 18.7 फ़ीसदी हो गई और अर्थव्यवस्था अब तक संकट में है.
चीन की कोरोना वैक्सीन
चीन में कोरोना की वैक्सीन लगवाने को लेकर कोई बाध्यता नहीं है. ना ही वैक्सीन लगवाने को लकर कोई कैंपेन चलाया गया है. चीन विदेशों की वैक्सीन का इस्तेमाल भी नहीं करता और देश में बनी वैक्सीन को ही इस्तेमाल किया जा रहा है, जबकि कई रिसर्च सामने आई हैं कि ये वैक्सीन वैश्विक स्तर पर बनाई गई वैक्सीन के मुकाबले बहुत कम प्रभावी है. लोग मानते हैं चीन की सरकार इसे राष्ट्रीय विज्ञान गौरव से जोड़ कर देख रही है.
चीन में 80 साल और उससे अधिक आयु के लगभग आधे लोगों ने प्राथमिक टीके लिए हैं, जिनमें से 20 फ़ीसदी से भी कम लोगों ने बूस्टर लिया है.
60-69 उम्र के 60 फ़ीसदी से कम लोगों को पूरी तरह से टीका लगाया गया है. चीन बुजुर्गों से टीका लगवाने के लिए कहता है
डब्ल्यूएचओ को 'जीरो-पॉलिसी'ग़लत क्यों लगती है
जब महामारी की शुरुआत हुआ तो चीन को माना गया कि उसने कई देशों की तुलना में कोविड से बेहतर तरीके से निपटा है. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि कोरोना वायरस के नए ओमिक्रॉन वेरिएंट को रोक पाना मुश्किल होगा क्योंकि इसकी संक्रमण की दर काफ़ी तेज़ है.
डब्ल्यूएचओ के प्रमुख डॉ. टेड्रोस एडहनॉम गिब्रयेसॉस ने कहा था 'ये वायरस इवॉल्व हो रहा है और अपनी प्रवृत्ति बदल रहा है. इसलिए इसके मुताबिक अपने नियम-क़ायदे बदलना ज़रूरी होगा.'
लेकिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का कहना था कि चीन की 'ज़ीरो-कोविड पॉलिसी वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है.' साथ ही चीन का कहना है कि डब्ल्यूएचओ का ये कहना कि नीतियां बदली जाएं निश्चित रूप से 'बड़ी संख्या में बुज़ुर्गों की मौत का कारण बनेगा.'
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