
खतरे में दुनिया! बड़ी तेजी से पिघल रहा है आर्कटिक, अनहोनी की आशंकाओं से डर गए वैज्ञानिक!
न्यूयॉर्क, 12 अगस्त : जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर आर्कटिक महासागर पर पड़ा है, जो पिछले 40 वर्षों में धरती के अन्य हिस्सों के मुकाबले चार गुना तेजी से गर्म हुआ है। गुरुवार को प्रकाशित एक नए शोध के मुताबिक, क्लाइमेट मॉडल पोलर हीटिंग यानी ध्रुवों पर बढ़ने वाली गर्मी (ताप) की दर को कम करके आंक रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु विज्ञान पैनल ने 2019 में एक विशेष रिपोर्ट में कहा गया था कि आर्कटिक प्रवर्धन ( Arctic amplification) के रूप में जानी जाने वाली प्रक्रिया के कारण आर्कटिक "वैश्विक औसत से दोगुने से अधिक" गर्म हो रहा था। इस रिसर्च में बताया गया है कि पिछले 40 साल में आर्कटिक बाकी ग्रह की तुलना में चार गुना तेजी से गर्म हुआ है।

समुद्र में हलचल खतरे में दुनिया
लोग कहते हैं कि दुनिया तेजी से बदल रही है। सच तो यह है कि आपने अपनी लालच के कारण प्रकृति को ही बदलकर रख दिया है। आप उसके साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। कहीं ग्लेशियर पिघल रहा है तो कहीं महासागर गर्म हो रहा है। ये सब धरती के विनाश के संकेत हैं, जिन्हें प्रगति की आड़ में मनुष्यों ने पैदा किया है।

तेजी से गर्म हो रहा आर्कटिक
यूनाइटेड नेशन क्लाइमेट साइंस पैनल ने 2019 में अपनी एक विशेष रिपोर्ट में कहा था कि, आर्कटिक एम्प्लीफिकेशन (Arctic Amplification) के रूप में प्रचलित प्रक्रिया के कारण आर्कटिक वैश्विक औसत की तुलना में दोगुने से भी अधिक तेजी से गर्म हो रहा है। जानकार बताते हैं कि, ऐसा तब होता है जब समुद्री बर्फ सूर्य की गर्मी से पिघल कर पानी बन जाती है और गर्मी को अवशोषित कर लेती है।

वैज्ञानिकों की चेतावनी
लंबे समय से वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि, आर्कटिक तेजी से गर्म हो रहा है, परंतु कोई इसको लेकर गंभीर नहीं है। जबकि वैज्ञानिकों के बीच एक लंबे समय से सर्वसम्मति है कि आर्कटिक तेजी से गर्म हो रहा है, अनुमान अध्ययन की गई समय सीमा और आर्कटिक के भौगोलिक क्षेत्र का गठन करने वाली परिभाषा के अनुसार भिन्न होते हैं।

गर्म हो रहा है महासागर
नॉर्वे और फिनलैंड में स्थित शोधकर्ताओं की एक टीम ने 1979 से सैटेलाइटों से इकट्ठा किए गए तापमान डेटा के चार सेटों का विश्लेषण किया। वैज्ञानिकों ने पाया कि औसतन डेटा से पता चलता है कि आर्कटिक 0.75 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक गर्म हो रहा है, जो बाकी पृथ्वी की तुलना में लगभग चार गुना तेज है। शोधकर्ता मान रहे थे कि आर्कटिक पृथ्वी के बाकी हिस्सों के मुकाबले दो गुना तेजी से गर्म हो रहा है लेकिन नेचर कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित अध्ययन में इसकी रफ्तार को चार गुना बताया गया है।

समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा तो डर लगेगा
अब हमारे लिए घबराने और डरने का वक्त आ गया है, क्योंकि आर्कटिक महासागर का जलस्तर अगर गर्मी की वजह से यूं ही बढ़ता रहा तो आने वाले वक्त में धरती के प्राणी खतरे में आ जाएंगे। अध्ययन के सह-लेखक और फिनलैंड के मौसम विज्ञानी एंट्टी लिपपोनन ने कहा कि क्लाइमेट चेंज के लिए हम इंसान ही जिम्मेदार हैं। ग्रीनलैंड आइस शीट में इतना पानी है कि यह महासागरों के जलस्तर को लगभग छह मीटर तक बढ़ा सकता है। अगर आर्कटिक गर्म होगा इसके ग्लेशियर पिघलेंगे और इससे दुनियाभर के समुद्रों का जलस्तर प्रभावित होगा। अगर समुद्र का जलस्तर प्रभावित हुआ तो प्रकृति हमें माफ नहीं करेगी और मानव सभ्यता के साथ-साथ बाकी के प्राणी भी हमारी वजह से खतरे में आ जाएंगी।

प्रकृति को बचाना आपके हाथ में है...कब शुरूआत करेंगे?
प्रकृति किसी ना किसी रूप में हमें चेतावनी दे रही है कि हे! मनुष्य तुम सुधर जाओं, हमसे खिलवाड़ ना करो। अगर गलती हुई है तो उसे सुधारों। इतनी चेतावनी के बाद भी हम सुधरने को तैयार नहीं है। बस ग्लोबल वार्मिंग के नाम पर बैठकों का दौर शुरू हो जाता है, लेकिन नतीजा क्या निकलता है यह सबको मालूम है। अभी आप यूरोप और अमेरिका को ही देख लीजिए, लोगों का गर्मी से बुरा हाल हो रहा है। ब्रिटेन में तो गर्मी का कारण आपातकाल तक घोषित कर दिया गया। फ्रांस जंगल की आग से परेशान है, अमेरिका के कई शहर गर्मी की चपेट में है। कुल मिलाकर देखा जाए तो हम प्रकृति को बचाने के लिए कुछ भी नहीं कर रहे हैं। अगर करते तो ये हाल नहीं होता.....
(Photo Credit : Twitter)