येदियुरप्पा नाम बदलकर मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन सरकार बचाना मुश्किल
नई दिल्ली- 23 जुलाई को कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार गिरने के बाद शुक्रवार को कर्नाटक बीजेपी के प्रमुख बीएस येदियुरप्पा को एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल गया। कर्नाटक की 15वीं विधानसभा में यह लगातार दूसरी बार है, जब उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। पहली बार उन्हें सबसे बड़ी पार्टी के विधायक दल का नेता होने के नाते राज्यपाल ने सरकार बनाने का निमंत्रण दिया था, लेकिन वे समय पर बहुमत नहीं जुटा सके और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। मई 2018 के मुकाबले अभी राज्य में सियासी हालात काफी बदल चुके हैं, लेकिन फिर भी सवाल उठ रहा है कि क्या येदियुरप्पा के लिए इस बार भी सरकार बचा पाना आसान होगा?
येदियुरप्पा के सामने बड़ी चुनौती
अपने नाम की स्पेलिंग से एक 'डी' हटाकर और एक 'आई' जोड़कर येदियुरप्पा चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने हैं। लेकिन, अबकी बार उनका भविष्य पूरी तरह से कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर केआर रमेश कुमार के हाथों में है। क्योंकि, अगर वे कांग्रेस के 12 और जेडीएस के तीन विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लेते हैं, तो वे इस बार ज्यादा दिनों तक मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं। या अगर स्पीकर उन 15 विधायकों को तीन विधायकों (रमेश झारकिहोली, महेश कुमाताहल्ली और आर शंकर) की तरह ही दल-बदल कानून के तहत अयोग्य करार दे देते हैं, तब भी उनकी कुर्सी लंबे समय तक के लिए सुरक्षित रह सकती है। इससे पहले उनका तीसरा कार्यकाल सबसे बुरा था, जिसमें वे सिर्फ दो दिन के सीएम बने थे और वे उसे कभी नहीं दोहराना चाहेंगे।
मई, 2018 में क्या हुआ था?
2018 के कर्नाटक विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी 105 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। तब विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या 224 थी, क्योंकि एक एंग्लो-इंडियन प्रतिनिधि को मनोमीत करने का अधिकार आने वाली नई सरकार को मिलना था। दो दिन तक मुख्यमंत्री रहने के बावजूद बीजेपी और येदियुरप्पा जरूरी 113 विधायकों का समर्थन नहीं जुटा सके और उन्हें पद छोड़ देना पड़ गया था। तब कांग्रेस-जेडीएस ने गठबंधन करके 116 विधायकों की व्यवस्था कर ली और एचडी कुमारस्वामी को सरकार बनाने का मौका मिला था।
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विधायकों का इस्तीफा मंजूर होने या अयोग्यता की स्थिति में
अगर इन दोनों में से कोई एक फैसला लेते हैं तो ऐसी स्थिति में बीजेपी अपने 105 और एक निर्दलीय विधायक की मदद से 106 विधायकों का जुगाड़ कर सकती है। जबकि, कांग्रेस के विधायकों की संख्या घटकर 65 और जेडीएस की सिर्फ 34 रह जाएगी और इस तरह से नई सरकार के विरोधी वोटों की संख्या 99 होगी, जो कुमारस्वामी के विश्वास मत के पक्ष में पड़े थे। अगर, स्पीकर कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों का इस्तीफा स्वीकार करते हैं या उन्हें अयोग्य ठहराते हैं, तो सदन में कुल विधायकों की संख्या 205 रहेगी, जिसके लिए बहुमत का आंकड़ा 103 होगा। इस तरह से येदियुरप्पा सरकार कम से कम 6 महीने तक तो खुद को सुरक्षित महसूस कर सकती है।
स्पीकर के फैसले से बची सरकार तो 6 महीने सुरक्षित
विधायकों की सदस्यता जाने की स्थिति में 6 महीने के भीतर खाली हुई सीटों पर चुनाव कराने होंगे और तब उसके नतीजों से तय होगा कि बीजेपी की सरकार और आगे भी चलेगी या नहीं। लेकिन, अगर स्पीकर 15 विधायकों में से कुछ विधायकों का भी इस्तीफा किसी वजह से भी नामंजूर कर देते हैं और वे विधायक स्पीकर के फैसले से सहमत हो जाते हैं तो कर्नाटक में एक नया सियासी सीन क्रिएट हो सकता है, जो और भी दलचस्प हो सकता है।