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महिला को मां या सास के घर से नहीं निकाल सकते, लेकिन दुर्व्यवहार करे तो ? SC ने क्या कहा जानिए

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नई दिल्ली, 31 मई: सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के घर में रहने के अधिकार को लेकर बहुत बड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने सोमवार को एक केस की सुनवाई के दौरान कहा है कि महिला अगर साझा घर में रह रही है तो उसे कोई सिर्फ इसलिए नहीं निकाल सकता कि उन्हें वह पसंद नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 12 मई को अपने ऐतिहासिक फैसले का भी हवाला दिया है। इस मामले में एक महिला ने बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ अपील की हुई है, जिसमें गुरुवार को आगे की सुनवाई होगी और अदालत ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए उसके सास-ससुर को भी पेश होने को कहा है।

महिलाओं को घर से निकालने पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

महिलाओं को घर से निकालने पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने किसी महिला के घर में रहने के अधिकार को लेकर बहुत बड़ी टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट के वैकेशन बेंच ने कहा है कि एक महिला को अपनी मां या सास के घर में रहने का अधिकार है और उसे वहां से बाहर कर दिया जाए, 'सिर्फ इसलिए कि आपको वह पसंद नहीं है, इसकी यह अदालत इजाजत नहीं देगी।' जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने कहा है कि 'कुछ वैवाहिक विवादों की वजह से महिलाओं को उनके वैवाहिक घरों से बाहर निकालने का यह रवैया परिवारों को तोड़ रहा है।'

ससुर के घर से निकलने के आदेश के खिलाफ है याचिका

ससुर के घर से निकलने के आदेश के खिलाफ है याचिका

हालांकि, अदालत वैवाहिक घरों में रहने के महिलाओं के इस अधिकार को लेकर उसे पूर्ण स्वतंत्रता देने के हक में भी नहीं दिखी। जस्टिस नागरन्ना ने कहा, 'अगर उसपर दुर्व्यवहार करने का आरोप है, तब कोर्ट की ओर से बुजुर्गों और वैवाहिक घरों के पारिवारिक सदस्यों को परेशान नहीं करने की शर्तें लगाई जा सकती हैं।' यह केस एक महिला ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील के तौर पर दायर की है। इसमें उसके पति को उसके लिए ससुर के घर से अलग रहने की व्यवस्था करने को कहा गया था। दरअसल,महिला के ससुर ने ट्रिब्यूनल में मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजंस ऐक्ट के तहत फ्लैट में अकेले निवास का अधिकार मांगा था।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अलग निवास की व्यवस्था का आदेश दिया था

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अलग निवास की व्यवस्था का आदेश दिया था

दरअसल, ट्रिब्यूनल ने महिला को अपने ससुर का फ्लैट खाली करने का आदेश दिया था और उसे और उसके पति को बुजुर्ग दंपति (सास-ससुर) को 25,000 रुपये मासिक मेंटेनेंस देने का भी निर्देश दिया था। ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ महिला ने प्रोटेक्शन ऑफ वुमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वॉयलेंस ऐक्ट के तहत रिहायश के अधिकार की मांग को लेकर रिट याचिका दायर की थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने आदेश में बुजुर्ग दंपति के बेटे को अपनी पत्नी और दो बच्चों के लिए वैकल्पिक निवास उपलब्ध करवाने का आदेश दिया था, हालांकि मेंटेंनेंस की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया था।

गुरुवार को होगी अगली सुनवाई

गुरुवार को होगी अगली सुनवाई

इसी आदेश के खिलाफ वह महिला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने उसकी याचिका पर आगे की सुनवाई के लिए गुरुवार की तारीख तय की है और रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि उसके सास-ससुर को वीडियो कॉन्फ्रेंस की लिंक उपलब्ध कर्रवाई जाए। वैसे सोमवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना साझा आवास में महिलाओं के रहने के अधिकार पर ज्यादा जोर देते नजर आ रही थीं। उन्होंने इस मामले में 12 मई को अपने ही एक फैसले का हवाला भी दिया, जो इस संबंध में मील का पत्थर माना जा रहा है।

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12 मई को सुप्रीम कोर्ट ने दिया था ऐतिहासिक फैसला

12 मई को सुप्रीम कोर्ट ने दिया था ऐतिहासिक फैसला

दरअसल, 12 मई को जो सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है, उसमें एक महिला ने अपने पति की मौत के बाद सास-ससुर के खिलाफ घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज किया हुआ था। जब उसके पति जीवित थे तो वह उसके साथ किसी दूसरे शहर में रहती थी। लेकिन, बाद में उसने अपने सास-ससुर के घर में रहने का अधिकार मांगा। ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट से केस खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। वहां जस्टिस नागरत्ना वाली बेंच ने घरेलू हिंसा ऐक्ट की धारा 12 के तहत व्यवस्था दी कि उसे साझा घर में रहने का अधिकार है, चाहे वह पहले कभी साझा घर में रही हो या नहीं। (महिलाओं वाली तस्वीर- प्रतीकात्मक)

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English summary
Supreme Court has said that a woman cannot be evicted from the house of her mother or mother-in-law. Court can impose conditions if she misbehaves with elders
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