क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

खड़गे के अध्यक्ष बनने से क्या दक्षिण भारत में कांग्रेस को होगा फ़ायदा?

कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए 30 सितंबर को नामांकन की आख़िरी तारीख़ थी. कुल तीन उम्मीदवार मैदान में हैं लेकिन यह लगभग तय है कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष दक्षिण भारत से होगा.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News

कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए 30 सितंबर को नामांकन की आख़िरी तारीख़ थी. इस दौरान कई रोचक और चौंकाने वाली घटनाओं के बाद तीन उम्मीदवार मैदान में हैं.

वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, जिन्हें इसी पद के दूसरे दावेदार शशि थरूर ने 'कांग्रेस का भीष्म पितामह' कहा है, आलाकमान के गैर आधिकारिक उम्मीदवार माने जा रहे हैं. तीसरे उम्मीदवार झारखंड के केएन त्रिपाठी हैं,जो पहले राज्य सरकार में मंत्री रह चुके हैं.

शुक्रवार को सबसे ज़्यादा चर्चा इस बात पर हो रही थी कि आख़िरकार दिग्विजय सिंह इस मुक़ाबले से पीछे क्यों हट गए.

उन्होंने नामांकन का पर्चा लिया था लेकिन उसे जमा नहीं किया.

कांग्रेस पार्टी पर नज़र रखने वाले ज़्यादातर राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि उन्हें कांग्रेस के अंदर का ही एक गुट पसंद नहीं करता है और उसी गुट ने दिग्विजय सिंह के साथ यह 'खेल' खेला है.

दिग्विजय सिंह के साथ साज़िश?


वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन का मानना है कि उन्हें इस बात पर ज़रा भी यक़ीन नहीं था कि गांधी परिवार उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में था.

बीबीसी हिंदी से बातचीत के दौरान राधिका रामाशेषन कहती हैं, "दिग्विजय सिंह एक समय में ख़ासकर 2012 के यूपी चुनाव के दौरान गांधी परिवार और ख़ासकर राहुल गांधी के बहुत क़रीब थे. लेकिन पिछले कुछ सालों में गांधी परिवार और दिग्विजय सिंह के बीच में दूरियां बढ़ गईं थीं. दिग्विजय सिंह कई तरह के विवादास्पद बयान देते थे, जो कांग्रेस के लिए राजनीतिक रूप से बहुत नुकसान पहुंचाने वाले होते थे. इसलिए गांधी परिवार को उन पर पूरा विश्वास नहीं था."

कांग्रेस पार्टी को लंबे समय से कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार रशीद क़िदवई भी मानते हैं कि कांग्रेस के अंदर के ही एक गुट के शिकार हो गए दिग्विजय सिंह.

बीबीसी हिंदी से बातचीत करते हुए रशीद क़िदवई कहते हैं,"कांग्रेस के अंदर एक जाति विशेष की लॉबी है, जिन्हें दिग्विजय सिंह के नाम से परेशानी थी. उस लॉबी ने ऐसा माहौल बना दिया कि दिग्विजय सिंह को अपना नाम वापस लेना पड़ा."

रशीद क़िदवई अपनी बातों को और स्पष्ट करते हुए कहते हैं, "कांग्रेस की ब्राह्मण और दलित लॉबी ने इतिहास बताना शुरू कर दिया कि वीपी सिंह, चंद्रशेखर जैसे राजपूत नेताओं ने कांग्रेस आलाकमान के साथ समय-समय पर लोहा लिया है. दिग्विजय सिंह के बयानों के बारे में और उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में इस तरह की बातें करने लगे कि अगर दिग्विजय सिंह अध्यक्ष बन गए, तो हाईकमान मुश्किल में पड़ सकता है."

दिग्विजय सिंह
Getty Images
दिग्विजय सिंह

"खड़गे गांधी परिवार के 'अनाधिकारिक आधिकारिक' उम्मीदवार"


दिग्विजय सिंह के पीछे हटने के बाद अब यह तय हो गया है कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष दक्षिण भारत से ही होगा.

राधिका रामाशेषन कहती हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे गांधी परिवार के 'अनाधिकारिक आधिकारिक' उम्मीदवार हैं.

शुक्रवार को नामांकन के दौरान मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ जिस तरह के लोग दिखे उससे तो लगता है कि मल्लिकार्जुन खड़गे का जीतना लगभग तय है.

उनके नामांकन के दौरान दिग्विजय सिंह, अशोक गहलोत, पवन बंसल और तारिक़ अनवर जैसे वरिष्ठ नेता मौजूद थे.

राहुल गांधी इस समय केरल से लोकसभा सांसद हैं और उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा' की शुरुआत भी तमिलनाडु से की है. ऐसे में अब यह चर्चा हो रही है कि क्या कांग्रेस की नज़र अब दक्षिण भारत पर है और क्या उसे इसका राजनीतिक लाभ मिलेगा.

सोनिया के साथ राहुल गांधी
Getty Images
सोनिया के साथ राहुल गांधी

आज़ादी के बाद दक्षिण भारत से कांग्रेस अध्यक्ष

पट्टाभि सीतारमैया-1948

नीलम संजीव रेड्डी- (1960-63)

के कामराज- (1964-67)

एस निजलिंगप्पा- (1968-69)

पीवी नरसिम्हा राव- (1992-96)


दक्षिण भारत और कांग्रेस


1885 में कांग्रेस की स्थापना के बाद से 1947 में भारत की आज़ादी तक दक्षिण से कई क़द्दावर नेता हुए, जो कांग्रेस के अध्यक्ष बने.

आज़ादी के बाद भी 1948 में कांग्रेस के अध्यक्ष दक्षिण भारत के ही पट्टाभि सीतारमैया थे. उसके बाद नीलम संजीव रेड्डी (1960-63), के कामराज (1964-67), एस निजलिंगप्पा (1968-69), पीवी नरसिम्हा राव (1992-96) कांग्रेस के अध्यक्ष बने.

इमरजेंसी हटने के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में जब कांग्रेस उत्तर भारत से पूरी तरह साफ़ हो गई थी, यहां तक कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी तक अपना चुनाव हार गए थे तो उस समय दक्षिण भारत ने ही कांग्रेस को कुछ सहारा दिया था. कांग्रेस को उस समय कुल 153 सीटें मिली थीं, जिनमें से 92 दक्षिण भारत से थीं.

इंदिरा गांधी ने 1978 में चिकमंगलूर से हुए उपचुनाव में जीत हासिल कर अपनी राजनीतिक वापसी का रास्ता बनाया था.

और फिर जब 1980 में उनकी ज़ोरदार वापसी हुई तब भी वो आंध्र प्रेदश के मेडक से चुनाव जीत कर लोकसभा पहुँची थीं.

1999 में सोनिया गांधी बेल्लारी का बहुचर्चित चुनाव जीतकर पहली बार पहुँचीं, तब उनका मुक़ाबला सुषमा स्वराज से हुआ था.

राहुल गांधी भी जब 2019 में अमेठी से चुनाव हार गए तो वो केरल के वायनाड से ही लोकसभा पहुंच सके.


अहम तथ्य

1977 में इंदिरा गांधी और संजय गांधी दोनों यूपी से चुनाव हार गए थे.कांग्रेस को उस समय कुल 153 सीटें मिली थीं जिनमें से 92 दक्षिण भारत से थीं.

1978 में चिकमंगलूर उपचुनाव में जीत हासिल कर इंदिरा गांधी ने राजनीतिक वापसी का रास्ता बनाया था.

1980 में इंदिरा गांधी आंध्र प्रेदश के मेडक से चुनाव जीत कर लोकसभा पहुँची थीं.

1999 में सोनिया गांधी बेल्लारी का बहुचर्चित चुनाव जीतकर पहली बार लोकसभापहुँचीं, तब उनका मुक़ाबला तब सुषमा स्वराज से हुआ था.

2019 में राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गए तो वो केरल के वायनाड से लोकसभा पहुंचे

कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, केरल और तमिलनाडु कुल मिलाकर इन पाँच राज्यों में लोकसभा की 129 सीटों में कांग्रेस के पास फ़िलहाल 28 सीटें हैं.


कांग्रेस को कितना फ़ायदा होगा?


कांग्रेस का दक्षिण भारत से भले ही एक ख़ास रिश्ता रहा हो लेकिन क्या अब दक्षिण भारत से पार्टी अध्यक्ष बन जाने से उसे कोई फ़ायदा होगा. राधिका रामाशेषन के अनुसार कांग्रेस मल्लिकार्जुन को एक दलित नेता के तौर पर पेश करेगी लेकिन फिर भी पार्टी की राह बहुत कठिन है.

वो कहती हैं, "आंध्र में जगनमोहन रेड्डी का बोलबाला है. तेलंगाना में केसीआर बहुत मज़बूत हैं और जो विपक्ष का स्पेस है वो बीजेपी भरने की कोशिश कर रही है. इसलिए दक्षिण भारत भी कांग्रेस के लिए बहुत मुश्किल है."

राधिका के अनुसार कांग्रेस और मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने असली परीक्षा कर्नाटक में है. वो कहती हैं, "राहुल गांधी को केरल में तो बहुत अच्छा रेस्पॉन्स मिला था लेकिन क्या कर्नाटक में उनका वैसा ही स्वागत होगा? कर्नाटक में चुनाव आ रहा है. बीजेपी बहुत मज़बूत है यहां. कर्नाटक में खड़गे की वजह से एक संदेश जाएगा लेकिन ये कितना मज़बूत होगा कहना मुश्किल है क्योंकि 2019 में वो ख़ुद अपना चुनाव हार गए थे."

जगनमोहन रेड्डी
Getty Images
जगनमोहन रेड्डी

रशीद क़िदवई को भी नहीं लगता कि मल्लिकार्जुन खड़गे से कांग्रेस को कोई बहुत फ़ायदा होगा.

रशीद क़िदवई कहते हैं, "कांग्रेस अभी भी वही पुराने ढर्रे पर राजनीति कर रही है. कांग्रेस ने मीरा कुमार को लोकसभा स्पीकर बनाकर उम्मीद लगाई थी कि दलित वोट मिलेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अगर आज के दक्षिण भारत की भी बात की जाए तो आंध्र और तेलंगाना में कांग्रेस पूरी तरह गौण हो गई है. केरल में 2021 में वामदल फिर से जीत गया जबकि वहां अक्सर पाँच साल के बाद राज्य में सरकार बदल जाती है. तमिलनाडु में कांग्रेस डीएमके के भरोसे है. कर्नाटक में बीजेपी और जेडी-एस काफ़ी मज़बूत है."

मल्लिकार्जुन के बारे में रशीद क़िदवई कहते हैं, "पिछले 20 सालों में कांग्रेस को कई बार कर्नाटक में सरकार बनाने का मौक़ा मिला लेकिन कभी भी मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी ने मुख्यमंत्री नहीं बनाया. इसका मतलब साफ़ है कि गुलबर्ग (जहां से वो आते हैं) के अलावा पूरे कर्नाटक में खड़गे की राजनीतिक पकड़ नहीं है, जिसकी कांग्रेस उम्मीद कर रही है."

खड़गे का राजनीतिक सफ़र


रशीद क़िदवई के अनुसार खड़गे ने पिछले सात-आठ साल में पूरी राजनीति तो दिल्ली में की है, कर्नाटक में तो वो सक्रिय नहीं हैं. खड़गे 2014 के बाद लोकसभा में पार्टी के नेता थे और अभी राज्यसभा में कांग्रेस के नेता हैं.

हालांकि यह भी सच है कि मल्लिकार्जुन खड़गे का 50 साल से अधिक का राजनीतिक करियर रहा है. वो पहली बार 1969 में गुलबर्गा शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने थे.

उसके बाद से वो अब तक आठ बार विधायक और दो बार सांसद रहे हैं. अपने लंबे राजनीतिक सफ़र में उन्हें सिर्फ़ एक ही बार हार मिली, जब वो 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए थे.

लेकिन फिर भी रशीद क़िदवई उनके राजनीतिक कौशल से कुछ ख़ास संतुष्ट नहीं दिखते हैं.

रशीद क़िदवई कहते हैं, "पंजाब में खड़गे का बहुत दख़ल था. चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाने में खड़गे की काफ़ी भूमिका थी. पंजाब में कांग्रेस को बहुत नुक़सान हुआ. हाल ही में राजस्थान में वो पर्यवेक्षक बनकर गए थे लेकिन वो ना तो प्रदेश अध्यक्ष को और ना ही मुख्यमंत्री (अशोक गहलोत) को घेर पाए कि कांग्रेस विधायक दल की मीटिंग हो पाए. फिर भी कांग्रेस को और गांधी परिवार को लगता है कि खड़गे कांग्रेस की कमान संभाल सकते हैं और कांग्रेस को दुरुस्त कर सकते हैं तो इस राजनीतिक आकलन पर कई सवाल खड़े होते हैं."

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, दक्षिण भारत का अध्यक्ष होने से कांग्रेस को कोई ख़ास लाभ नहीं होगा तो सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस ने ऐसा करके कोई राजनीतिक ग़लती कर दी है?

राधिका रामाशेषन कहती हैं, "अभी जो चुनाव आने वाले हैं उसमें कर्नाटक के अलावा सारे के सारे पश्चिम (गुजरात) और उत्तर भारत (हिमाचल, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़) में हैं. इन परिस्थितियों में कांग्रेस अध्यक्ष अगर हिंदी बेल्ट से होता तो ज़्यादा अच्छा होता."

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Will the Congress in South India benefit from Kharge becoming the President?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X