प्रियंका गांधी के आने से क्या राहुल गांधी के क़द पर असर पड़ेगा: नज़रिया
प्रियंका गांधी अपनी मां सोनिया गांधी के साथ राजनैतिक गतिविधियों में देखी जाती रही हैं. माना जाता है कि प्रियंका का बाक़ी पार्टियों के साथ वैसे ही रिश्ता है, जैसे सोनिया गांधी का था.
यानी वहां पर प्रियंका की पहचान भी है और स्वीकृति भी. अब कांग्रेस की तीन राज्यों में जीत ने राहुल गांधी को कांग्रेस का निर्विवाद 'चेहरा' बना दिया है. जानकारों का मानना है कि प्रियंका की पर्दे के पीछे की भूमिका से कांग्रेस को ज़रूर मज़बूती मिलेगी.
प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में क़दम रखने के साथ ही कांग्रेस और गांधी परिवार का एक और अध्याय शुरू हो गया है.
2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र प्रियंका को कांग्रेस महासचिव नियुक्त किया गया है और उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जिताने की ज़िम्मेदारी दी गई है.
राहुल गांधी के अध्यक्ष पद संभालने के बाद सोनिया गांधी ने एक न्यूज चैनल में कहा था कि प्रियंका अपने परिवार को संभाल रही हैं, इसीलिए वो सक्रिय राजनीति में नहीं आ रही हैं. हालांकि उन्होंने ये भी स्पष्ट किया था कि राजनीति में आना प्रियंका का अपना फै़सला होगा.
जानकार मानते हैं कि सोनिया गांधी बख़ूबी समझती हैं कि जैसे ही प्रियंका गांधी ने राजनीति मे क़दम रखा, वैसे ही भाई-बहन के बीच तुलना शुरू हो जाएगी. और ऐसा ही होने भी लगा.
प्रियंका गांधी को लाने की मांग
बीते एक दशक में कांग्रेस ने अपने इतिहास का सबसे बुरा दौर देखा, देश की सबसे पुरानी पार्टी लोकसभा में महज 44 के आंकड़े पर सिमट गई.
पार्टी को एक ऐसे चेहरे की ज़रूरत महसूस होने लगी जो उसके हालात का कायाकल्प कर सके. कांग्रेस पार्टी के अंदर प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में लाने की मांग बढ़ने लगी. प्रियंका गांधी शुरू से कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय रही.
हालांकि वे अमेठी और रायबरेली से आगे कभी नहीं निकली. वो बचपन से ही रायबरेली जाती रही थीं. जब वो छोटी थीं और अपने पिता राजीव और सोनिया के साथ रायबरेली जाती थीं तो उनके बाल छोटे रहते थे.
वहां पर लोगों ने राहुल गांधी की तरह उनको भी भइया बोलना शुरू कर दिया. जब वो बड़ी हुई तो वो वहां की भइया जी बन गईं.
लोगों से जुड़ाव
प्रियंका की ख़ासियत है कि वो लोगों से जल्दी जुड़ जाती हैं. रायबरेली में प्रियंका गांधी कभी भी अचानक ही बीच सड़क पर रुककर किसी भी कार्यकर्ता को नाम से पुकार लेती हैं. उसका हाल चाल लेती थी.
इतना ही नहीं अगर वहां पर किसी का काम किसी नेता की वजह से रुकता था, तो नेता प्रियंका गांधी के ग़ुस्से से बच नहीं पाते थे.
प्रियंका के बारे में ये सब जानते हैं कि वो स्वभाव से बहुत ग़ुस्सैल हैं लेकिन बावजूद इसके रायबरेली और अमेठी के लोगों का मानना है कि उनका ग़ुस्सा काम ना करने वालों पर होता है.
कई इलाक़े का दौरा करते हुए प्रियंका गांधी किसी बूढ़ी महिला का हाथ थाम कर बैठ जाती हैं. कभी उनके साथ परांठा अचार का नाश्ता करती है तो कभी रिक्शे पर अपने बच्चों को घुमाती हैं.
सूत्रों के मुताबिक़ एसपीजी इस बात से हमेशा परेशान रहते हैं क्योंकि लोगों के बीच जब वो घुलती मिलती हैं तो सुरक्षा का ध्यान नहीं रखती.
रायबरेली और अमेठी में ज़्यादातर लोगों को हर तरह की सरकारी योजना का लाभ मिलता है क्योंकि प्रियंका ये ध्यान रखती हैं कि एक-एक व्यक्ति तक योजना की जानकारी पहुंचे और अगर वो उन योजनाओं के योग्य हैं, तो उसका लाभ मिले.
प्रियंका की तुलना अक्सर उनकी दादी इंदिरा गांधी से होती रही है. प्रियंका के हेयरस्टाइल, कपड़ों के चयन और बात करने के सलीके में इंदिरा गांधी की छाप साफ़ नज़र आती है.
प्रियंका गांधी ने अपना पहला सार्वजनिक भाषण 16 साल की उम्र में दिया था.
महत्वपूर्ण पद से बचते रहे राहुल
वहीं राहुल गांधी की बात करें, तो वे प्रियंका से क़रीब दो साल बड़े हैं. उन्होंने 2004 में सक्रिय राजनीति में क़दम रखा और अमेठी से पहला चुनाव लड़ा. उनके पिता राजीव गांधी ने भी इसी सीट से चुनाव लड़ा था.
उसके बाद लगातार वो चुनाव लड़ते रहे, जीतते रहे लेकिन सरकार या पार्टी में कोई महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी नहीं उठाई. 2004 से लेकर 2014 तक कांग्रेस नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी. तब विपक्षी पार्टी मनमोहन सिंह पर यही आरोप लगाती थी कि वो रिमोट कंट्रोल सरकार चलाते हैं.
मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहाकार रहे संजय बारू ने अपनी किताब में लिखा भी था कि मनमोहन सिंह मानते थे कि राहुल गांधी आने वाले समय में सरकार और पार्टी दोनों संभालेंगे और वो 'भरत' की भूमिका में हैं. यही वजह थी कि राहुल गांधी हमेशा आलोचना का शिकार होते थे.
बीजेपी के उपहास के पात्र बने राहुल
बीजेपी ने इसका जमकर फ़ायदा उठाया और राहुल को उपहास का पात्र बनाया. उन्हें शहजादा कहा गया, जो अनिच्छुक राजनेता और गलाकाट प्रतिस्पर्धी राजनीति में नौसिखए थे, जिनकी पार्टी कल्पना से परे सिकुड़ गई थी.
उन्हें पप्पू कहा गया, जो काम नहीं कर सकता था. राहुल गांधी ने पार्टी की कमान 2017 में संभाली हालांकि उससे पहले वो पार्टी के स्टार प्रचारक के रूप में थे लेकिन बावजूद इसके कांग्रेस संसदीय व विधानसभा चुनावों में एक के बाद एक हार का सामना करती रही.
2014 में पार्टी के सबसे बुरी दुर्दशा के लिए भी राहुल गांधी को ही ज़िम्मेदार माना गया.
कांग्रेस की स्थिति लगातार ख़राब होती जा रही है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बीमारी ने उनके लिए नई सीमाएं खड़ी कर दी हैं.
राहुल की राजनीतिक परिपक्वता और समझ पर उनकी अपनी पार्टी के लोग कभी खुल कर तो कभी चुपचाप सवाल उठाते रहते हैं.
राहुल गांधी के बारे में यह बात सभी को मालूम है कि वो न तो लोकसभा चुनाव में अपना राजनीतिक अस्तित्व बचा पाए और न ही राज्यों के विधानसभा चुनावों में ही अपना राजनीतिक कौशल दिखा पाए.
राहुल अपने उस परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी निभाने में भी कमज़ोर पड़ते दिखे, जिसने नेताओं की पांच पीढ़ियां देश को दी. कांग्रेस का करिश्मा और अपील ख़त्म हो गई.
राहुल प्रियंका की तुलना
राहुल-प्रियंका में जब-जब तुलना हुई तब ये कहा गया कि प्रियंका में लोगों से जुड़ने की प्रतिभा ज़्यादा है, जबकि राहुल पहले लोगों का सामना करने से हिचकते थे.
प्रियंका अच्छी वक्ता भी हैं. वो लोगों के हिसाब से भाषण देती हैं हालांकि वो बड़ी रैलियों के बजाय छोटी-छोटी भीड़ में लोगों से जुड़ना ज़्यादा पसंद करती हैं.
बताया जाता है कि मुंबई में उद्यमियों के महिला संगठन ने सोनिया गांधी को बुलाया लेकिन उनकी तबियत नासाज होने की वजह से प्रियंका गांधी ने अपनी मां की जगह ली और वहां की महिलाओं से बात की.
बंद कमरे में हुई इस बैठक में प्रियंका के भावुक भाषण ने वहां की महिलाओं की वाहवाही बटोरी. वहां पर उनके बोलने की क्षमता ने लोगों को बहुत प्रभावित किया था.
प्रियंका 47 साल की उम्र में राजनीति में सक्रिय हो रही हैं. इससे पहले गांधी परिवार में उनके अलावा सिर्फ़ मोतीलाल नेहरू और सोनिया गांधी ही हैं, जिन्होंने इससे ज़्यादा उम्र में अपनी सियासी पारी शुरू की थी.
ये भी संयोग है कि जब प्रियंका राजनीति में आ रही हैं, तब नेहरू-गांधी परिवार से राजनीति में आने वाले पहले व्यक्ति यानी मोतीलाल नेहरू के सियासत में 100 साल पूरे हो रहे हैं.
पर क्या कांग्रेस में प्रियंका के आने के बाद राहुल और प्रियंका की तुलना फिर ज़ोर पड़ेगी. कांग्रेस के नेताओं और लोगों के बीच ये चर्चा का विषय तो रहेगी लेकिन जानकारों का मानना है कि राहुल ने पिछले दो सालों में अपने आप को साबित कर दिया है.
गुजरात के बाद, कर्नाटक और फिर मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ़ में कांग्रेस की जीत ने राहुल के नाम का डंका बजा दिया है. लेकिन बावजूद इसके उन्हें बाकी विपक्षी पार्टियां नेता के रूप में स्वीकार नहीं कर रही.
प्रियंका गांधी अपनी मां सोनिया गांधी के साथ राजनैतिक गतिविधियों में देखी जाती रही हैं. माना जाता है कि प्रियंका का बाक़ी पार्टियों के साथ वैसे ही रिश्ता है, जैसे सोनिया गांधी का था.
यानी वहां पर प्रियंका की पहचान भी है और स्वीकृति भी. अब कांग्रेस की तीन राज्यों में जीत ने राहुल गांधी को कांग्रेस का निर्विवाद 'चेहरा' बना दिया है. जानकारों का मानना है कि प्रियंका की पर्दे के पीछे की भूमिका से कांग्रेस को ज़रूर मज़बूती मिलेगी.
हालांकि राबर्ट वाड्रा पर भ्रष्टाचार का आरोप प्रियंका के लिए समस्या बन सकते हैं लेकिन कांग्रेस जानकारो का कहना है कि अब जबकि प्रियंका मज़बूती से अपने भाई के साथ खड़ी दिखेंगी तो लोकसभा चुनाव 2019 में में गांधी भाई-बहन एक और एक ग्यारह की भूमिका में दिख सकते हैं.
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