प्रियंका गांधी को कांग्रेस यूपी में अपना चेहरा क्यों नहीं घोषित करती?
पार्टी नेता सलमान ख़ुर्शीद ने कहा है कि प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ से बेहतर चेहरा हैं, तो क्या वो पार्टी का ट्रंप कार्ड साबित हो सकती हैं?
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसक घटना की अलग-अलग पार्टियों के नेताओं ने निंदा की है. नेताओं में घटनास्थल की ओर जाने को लेकर होड़ मची है, लेकिन सरकार उन्हें जाने से रोक रही है.
इसी क्रम में, कांग्रेस पार्टी की नेता और पूर्वी यूपी की महासचिव प्रिंयका गांधी वाड्रा को सीतापुर में रोककर हिरासत में लिया गया है.
प्रियंका गांधी ने ट्विटर पर वीडियो पोस्ट कर कहा, "जिस तरह से किसानों को कुचला जा रहा है, उसके लिए शब्द ही नहीं हैं. कई महीनों से किसान अपनी आवाज़ उठा रहे हैं कि उनके साथ ग़लत हो रहा है, लेकिन सरकार सुनने को तैयार नहीं है. जो हुआ वो दिखाता है कि सरकार किसानों को कुचलने और ख़त्म करने की राजनीति कर रही है.''
इस वीडियो में उन्होंने कहा, ''ये देश किसानों का है और ये बीजेपी विचाराधारा की जागीर नहीं है. इसे किसानों ने बनाया और सींचा है. जब बल इस्तेमाल करना होता है तो नैतिक आधार पुलिस खो चुकी है. मैं अपने घर से निकलकर अपराध करने नहीं जा रही हूं. मैं सिर्फ़ पीड़ितों के परिवार से मिलने जा रही हूं. आंसू पोछने जा रही हूं. क्या ग़लत कर रही हूं?''
उन्होंने आगे कहा, ''यदि ग़लत कर रही हूं तो आपके पास ऑर्डर होना चाहिए, वॉरंट होना चाहिए. आप गाड़ी रोक रहे हैं. मुझे रोक रहे हैं. किसलिए रोक रहे हैं? मैं जब सीओ को बुला रही हूं, वो छिप रहा है. अगर सही काम कर रहा है, तो छिप क्यों रहा है?"
https://twitter.com/ShashiTharoor/status/1444889596223901696?s=20
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने एक वीडियो पोस्ट किया है जिसमें प्रियंका गांधी और हरियाणा के कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा पुलिस के साथ बहस करते नज़र आ रहे हैं.
इसमें प्रियंका गांधी बहुत ग़ुस्से में कह रही हैं, ''मुझे आधार दो. मुझे ऑर्डर दिखाओ. मुझे वॉरंट दिखाओ और अगर नहीं है तो आपको कोई हक़ नहीं है हमें रोकने का. हम चार लोग हैं. क्या समझते हो? लोगों को मार सकते हो, किसानों को कुचल सकते हो तो समझते हो कि हमें भी रोक लोगे."
ऐसा नहीं है कि इस तरह के कड़क तेवर प्रियंका गांधी ने पहली बार दिखाए हों या सरकार के ख़िलाफ़ इतना मुखर होकर बोली हों.
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प्रियंका गांधी के तेवर
आपको याद होगा कि प्रियंका गांधी जब पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी के परिवार से मिलने जा रही थीं, तब भी पुलिस से बहस के वीडियो वायरल हुए थे.
वे वहीं नहीं रुकी थीं और एक पार्टी कार्यकर्ता के स्कूटर पर एसआर दारापुरी के घर चली गई थीं. दारापुरी नागरिक संशोधन क़ानून (सीएए) के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे थे.
सोनभद्र में ज़मीन विवाद में आदिवासियों की हत्या का मामला हो, चाहे हाथरस गैंग रेप का मामला या कोविड के दौरान प्रवासी मज़दूरों के लिए बसें मुहैया कराने का मामला, प्रियंका गांधी हर मुद्दे पर सक्रिय रही हैं और उन्होंने राज्य में पीड़ित लोगों के बीच पहुँचने की कोशिश की है.
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राजनीति में सक्रिय क़दम
यूपी के दो संसदीय क्षेत्रों अमेठी और रायबरेली से उनका पुराना नाता रहा है. वे अपने पिता राजीव गांधी के अलावा मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के लिए प्रचार करती रही हैं. लेकिन सक्रिय राजनीति में उनका क़दम तभी माना गया, जब वो पूर्वी यूपी की महासचिव बनाई गईं.
अब चर्चाएं इस बात को लेकर हैं कि क्या उन्हें यूपी में पार्टी का चेहरा बना देना चाहिए. इसके संकेत कांग्रेस नेता सलमान ख़ुर्शीद के इस बयान से लिए जा सकते हैं. जब उनसे ये सवाल पूछा गया कि क्या प्रियंका गांधी राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को टक्कर दे सकती हैं, तो उनका जवाब था, "ये भविष्य ही बताएगा कि चुनाव में जीत किसकी होगी. प्रियंका गांधी का चेहरा उनके (आदित्यनाथ) चेहरे से बेहतर है और यही सच है."
दरअसल लखनऊ में चुनाव संकल्प पत्र को लेकर पार्टी की बैठक हुई थी जिसके बाद ख़ुर्शीद ने कहा था कि प्रियंका गांधी लोगों से मिल रही हैं और उत्तप्रदेश में एक बेहतर सरकार बनने और उसके पारदर्शी ढंग से काम करने का आश्वासन दे रही हैं. उसके बाद उनसे प्रियंका गांधी पर ये सवाल पूछा गया.
प्रियंका में क्षमता और हुनर
https://twitter.com/JhaSanjay/status/1444917162188046336?s=20
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता संजय झा बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, "ये मेरी व्यक्तिगत राय है कि प्रियंका गांधी का उत्तरप्रदेश ही नहीं, पूरे देश में एक अहम रोल हो सकता है. हम जानते हैं कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर गुज़रता है, लेकिन कई सालों में कांग्रेस राज्य में अन्य पार्टियों पर निर्भर रही है, कमज़ोर रही है. क्या वो अचानक बदल जाएगा, ये तो भविष्य ही बताएगा."
वो आगे कहते हैं, "जैसा माहौल है और इस बीच ये देखा जा रहा है कि बीजेपी कई मोर्चों पर विफल रही है. लोकतंत्र ख़तरे में रहा है. कोरोना, बदहाल अर्थव्यवस्था, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार बढ़ा है. इन हालात में प्रियंका गांधी के लिए अच्छा मौक़ा है कि वो कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष बनें और कांग्रेस पार्टी को ही नहीं देश को एक नई दिशा दिखाएं."
लेकिन इस पर वरिष्ठ पत्रकार राशिद क़िदवई कहते हैं कि साल 2012 में राहुल गांधी को लेकर यूपी में ऐसी ही आवाज़ उठी थी, लेकिन उसके लिए राहुल गांधी तैयार नहीं हुए. उसके बाद कांग्रेस का ग्राफ़ यूपी में बहुत तेज़ी से गिरता रहा.
क़िदवई कहते हैं, "सलमान ख़ुर्शीद ने जो कहा है वो एक धड़े की राय है. दूसरा धड़ा बोलेगा कि वो अध्यक्ष बनें, महासचिव बनी रहें या पार्टी में आ रही समस्याओं का समाधान निकालती रहें."
संजय झा कहते हैं, "प्रियंका गांधी के पास नज़रिया है. वो लोगों को प्रेरणा देती हैं. उनमें हुनर, क्षमता है और वो लड़ने के लिए तैयार हैं. वो बोलती अच्छा हैं. लोगों से उनका व्यवहार और रिश्ता बहुत अच्छा है. प्रचार भी अच्छा करती हैं. चुनाव के माध्यम से उनकी पार्टी अध्यक्ष के तौर नियुक्त होनी चाहिए और ऐसा हुआ तो मैं समझता हूं कि प्रियंका गांधी होनहार उम्मीदवार रहेंगी. और वो पार्टी के लिए एक ट्रंप कार्ड साबित हो सकती हैं."
वो आगे कहते हैं, "प्रियंका गांधी आगे आईं तो हम सब उनके साथ होंगे और कांग्रेस के सभी सदस्य युवा, बुज़ुर्ग, जी-23 सब उनके साथ खड़े रहेंगे."
पत्रकार स्मिता गुप्ता कई वर्षों से कांग्रेस पार्टी को कवर कर रही हैं. वो मानती हैं कि जब भी कोई घटना घटती है तो प्रियंका गांधी पूरे राजनीतिक पटल पर उसे ज़ोर-शोर से उठाती हैं, लेकिन हाथरस या लखीमपुर खीरी जैसी घटनाएं रोज़ नहीं होतीं.
'बयानबाज़ी से राजनीति नहीं चलती'
वहीं ये कहा जा रहा है कि वो पार्टी में महासचिव हैं और उन्हीं के नेतृत्व में पार्टी चुनाव लड़ेगी.
स्मिता गुप्ता कहती हैं, "लंबी अवधि के लिए पार्टी को खड़ा करने की बात है तो न प्रियंका ने, न उनके भाई राहुल ने टेलेंट दिखाया है क्योंकि ऐसी घटनाएं एक दिन होंगी, बयानबाज़ी होगी. वो भाषण देने में राहुल से प्रभावी हैं, लेकिन इसी से काम नहीं चलेगा."
स्मिता गुप्ता मानती हैं कि यूपी में राहुल या प्रियंका को चेहरा बनाया गया तो कांग्रेस के प्रदर्शन पर असर पड़ेगा. उनके अनुसार, वो एक पहचाना हुआ चेहरा हैं और पार्टी के कार्यकर्ता भी काम करेंगे, लेकिन इससे कांग्रेस पार्टी जीत जाएगी, ये कहना मुश्किल है.
प्रियंका गांधी को साल 2019 में पूर्वी यूपी का महासचिव बनाया गया था और अब कुछ ही महीनों बाद राज्य में चुनाव होने वाले हैं.
प्रियंका गांधी को राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने या पार्टी अध्यक्ष बनाने पर वो साफ़ कहती हैं, "वो पार्टी कार्यकर्ताओं में काफ़ी अलोकप्रिय हैं. अगर आप कहीं भी जाकर कार्यकर्ताओं से बात करेंगे और राहुल और प्रियंका गांधी में चुनाव की बात करेंगे तो वो राहुल को चुनेंगे क्योंकि वो (प्रियंका) बहुत एरोगेंट या अभिमानी हैं. मंच पर उनकी आक्रामकता, तुरंत जवाब देने की योग्यता अच्छी लगती है और वो राहुल में नहीं दिखती. लेकिन कार्यकर्ताओं से बातचीत में आप पाएंगे कि उनकी छवि काफ़ी ख़राब है."
स्मिता गुप्ता कहती हैं, "प्रियंका, इंदिरा गांधी नहीं हैं जो चुनाव जीत रही हों. जब वो चुनाव भी नहीं जीत रही हैं तो उनका अभिमान कोई क्यों सहेगा? साल 2014 और 2019 में चुनाव हारने के बाद क्यों कोई आपसे जुड़ना चाहेगा? जो ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे हैं, वो भी तो इज़्ज़त की अपेक्षा रखते हैं."
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अखिलेश प्रताप सिंह दूसरी राय रखते हैं. उनके अनुसार, जनता प्रियंका गांधी को गंभीरता से लेती है.
वो कहते हैं, "वो अकेली नेता हैं जो जनता के मुद्दों पर सड़क पर आई हैं. उनकी आवाज़ बनी हैं. छह बार हिरासत में ली गईं. दर्जनों बार उन्हें पकड़ा गया. कई बार उनसे धक्कामुक्की की गई. मिर्ज़ापुर में किसानों का मामला हो, इलाहाबाद में मछुआरों की बात हो, हाथरस की बेटी का मामला हो या किसानों का मुद्दा हो - ऐसे हर मामलों में वो जनता के साथ खड़ी दिखाई दीं."
उनके अनुसार, "वो महासचिव का काम बख़ूबी निभा रही हैं. महासचिव का पद भी बड़ा है, लेकिन संगठन में किसी की क्या भूमिका होगी, वो फ़ैसले केवल हाई कमान लेता है."
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संकट मोचक की छवि
रशीद क़िदवई मानते हैं कि प्रियंका गांधी अब पार्टी में एक संकट मोचक या फ़ायर फ़ाइटर की भूमिका में नज़र आती हैं और कहीं-न-कहीं अहमद पटेल की कमी को पूरा करती हैं.
क़िदवई कहते हैं, ''वो यूपी में महासचिव हैं तो यहां की राजनीतिक गतिविधियां भी देखती हैं. वहीं रूठों को मनाने का काम जैसाकि पंजाब, छत्तीसगढ़ या राजस्थान के मामले में हुआ. जो भी कांग्रेस से असंतुष्ट हैं, वो सब उन्हीं (प्रियंका गांधी) का दरवाज़ा खटखटाते हैं."
लेकिन प्रियंका गांधी क्यों यूपी के मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं हो सकतीं, इस पर रशीद क़िदवई कहते हैं कि इसके लिए थोड़ा पीछे यानी 2004 के चुनाव के वक़्त को देखना होगा. उस समय राहुल गांधी इंग्लैंड की अपनी नौकरी छोड़कर सक्रिय राजनीति में आए. उस समय सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी को लगा कि उन्होंने अपनी प्रोफ़ेशनल ज़िंदगी छोड़कर राजनीति में आकर बड़ा त्याग किया है.
क़िदवई कहते हैं, "प्रियंका गांधी राजनीति में साल 2019 में राहुल गांधी की मदद के लिए आईं न कि उनकी जगह लेने. सोनिया और प्रियंका गांधी का केवल एक मक़सद है कि राहुल गांधी राजनीति और कांग्रेस पार्टी में नंबर एक नेता रहें. इस पृष्ठभूमि में आप देखेंगी तो प्रियंका गांधी कभी ख़ुद को दावेदार नहीं बनाने वालीं."
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