जब कांग्रेस कोटा के मंत्री ने हेमंत सोरेन को कहा था सबसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री, कैसे निभेगी 2019 में ?
रांची-
एग्जिट
पोल
के
संकेतों
के
मुताबिक
झारखंड
में
हेमंत
सोरेन
के
नेतृत्व
में
कांग्रेस
और
राजद
की
सरकार
बन
सकती
है।
टिकट
बंटवारे
से
पहले
कांग्रेस
ने
हेमंत
को
नेता
मानने
से
इंकार
कर
दिया
था।
भाजपा
के
भय
से
कांग्रेस
ने
हेमंत
सोरेन
को
सीएम
पद
का
प्रत्याशी
माना
था।
2019
में
दोनों
एक
साथ
तो
हैं
लेकिन
कई
अंतर्विरोध
भी
हैं।
इनके
बीच
विरोध
के
बुलबुले
कब
फूट
जाएंगे,
कहना
मुश्किल
है।
जुलाई
2013
में
हेमंत
सोरेन
ने
कांग्रेस
और
राजद
के
सहयोग
से
सरकार
बनायी
थी।
लेकिन
छह
महीने
बाद
ही
सीएम
हेमंत
और
उनके
कांग्रेसी
मंत्री
के
बीच
झगड़ा
शुरू
हो
गया
था।
महात्वाकांक्षा
और
निजी
हितों
की
यह
लड़ाई
सड़क
पर
आ
गयी
थी
और
हेमंत
सोरेन
की
खूब
फजीहत
हुई
थी।
मिलीजुली
सरकार
में
स्वार्थ
की
राजनीति
कितनी
प्रबल
होती
है,
इसको
2014
की
घटना
से
समझा
जा
सकता
है।
जब कांग्रेस के मंत्री ने हेमंत को बताया था सबसे भ्रष्ट सीएम
जुलाई 2013 में हेमंत सोरेन ने कांग्रेस और राजद के सहयोग से मिलीजुली सरकार बनायी थी। जनवरी 2013 में झामुमो ने भाजपा की अर्जुन मुंडा सरकार गिरा दी थी। नयी सरकार का गठन नहीं हुआ तो राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा था। इस बीच हेमंत और कांग्रेस में खिचड़ी पकती रही। आखिरकार जुलाई में हेमंत इनकी मदद से सीएम बन गये थे। कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे हेमंत सोरेन की कैबिनेट में ग्रामीण विकास मंत्री थे। उनके और सीएम के बीच जनवरी 2014 से अनबन शुरू हो गयी थी। फरवरी 2014 में मंत्री ददई दुबे ने मीडिया से बातचीत अपने ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को झारखंड के इतिहास का सबसे भ्रष्ट सीएम कह दिया था। ददई दुबे के इस बयान से हेमंत आपे से बाहर हो गये थे। वे मंत्री पर सीधे एक्शन लेते तो सरकार गिर सकती थी। मजबूर हेमंत सोनिया के दरबार में पहुंचे । अपना दुखड़ा सुनाया। आरजू मिन्नत की। लेकिन कांग्रेस ने उस समय हेमंत को कोई आश्वासन नहीं दिया। मिलीजुली सरकार का मुख्यमंत्री कितना कमजोर होता है इसका अंदाजा हेमंत की हालत से लगाया जा सकता है। मुख्यमंत्री अपनी तौहीन से बेचैन थे। एक हफ्ते बाद कांग्रेस ने ददई दुबे को कैबिनेट से हटाने की मंजूरी दी तब हेमंत उन्हें बर्खास्त कर सके थे।
स्वार्थ के टकराव में झगड़ा
मंत्री रहते ददई दुबे अपने मुख्यमंत्री से क्यों नाराज हुए थे ? उस समय इस बात की चर्चा थी कि ददई दुबे का निजी हितों के लिए हेमंत सोरेन से झगड़ा हुआ था। चर्चा के मुताबिक ददई दुबे 2014 में अपने पुत्र को बाल श्रमिक आयोग का अध्यक्ष बनाना चाहते थे। इस पद धारक को राज्य मंत्री की सुविधाएं मिलती हैं। इस नियुक्ति की फाइल सीएम के पास रुकी पड़ी थी। हेमंत सोरेन ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था। फाइल के रुकने से ददई दुबे नाराज हो गये थे। इसी नाराजगी में उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ ये विस्फोटक बयान दे दिया था। मंत्री पद से हटाये जाने के बाद भी झारखंड के इस दिग्गज नेता ने हेमंत के खिलाफ आग उगलना बंद नहीं किया था। ददई दुबे ने 2019 में भी विश्रमापुर से चुनाव लड़ा है। इस चुनाव में उनका मुकाबला रघुवर सरकार के मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी से हुआ है। इसबार ददई दुबे के चुनाव जीतने की संभावना जतायी जा रही है। ददई दुबे कांग्रेस के वरिष्ठ और मजबूत नेता हैं। वे चार बार विधायक और एक बार सांसद चुने जा चुके हैं। अगर झामुमो और कांग्रेस की सरकार फिर बनती है तो क्या हेमंत सोरेन ददई दुबे को मंत्री बनाएंगे ?
हेमंत को कांग्रेस पर कितना भरोसा?
कांग्रेस के समर्थन से चलने वाली सरकारों का जीवन अल्पकालिक रहा है। हेमंत सोरेन भी कांग्रेस पर आखं मूंद कर भरोसा नहीं करते। 2018 में राज्यसभा चुनाव के समय उनकी कांग्रेस से समझौते के लिए बातचीत चल रही थी। इस समझौता में राज्यसभा, लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए दोनों दलों को अपने-अपने वायदे तय करने थे। राहुल गांधी से मिलने के बाद भी बातें तय नहीं हो पा रही थीं। तब हेमंत ने धमकी दी थी अगर कांग्रेस ने लिखित रूप से अपने वायदों की लिस्ट नहीं दी तो चुनाव में झामुमो अपने रुख पर पुनर्विचार करेगा। 2019 के विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे के समय भी दोनों दलों में गंभीर मतभेद उभरे थे। लेकिन 2014 के नतीजों से डर कर वे मेल के लिए राजी हुए थे। 2014 में अलग अलग लड़ने के कारण कांग्रेस को 6 तो झामुमो 19 सीटें ही मिलीं थी। अगर एग्जिट पोल के संकेतों को सही माने तो इस बार झामुमो-कांग्रेस का मेल कमाल करता नजर आ रहा है। लेकिन घुम-फिर कर बात वहीं पहुंच जाती है कि हितों के टकराव में ये दोस्ती कितने दिनों तक चलेगी ।