नवाब मंसूर अली ख़ान पटौदी की बारात जब शर्मीला टेगौर के घर पहुँची
पटौदी रियासत के आख़िरी 'नवाब' और अपने समय की प्रसिद्ध अभिनेत्री के इस रिश्ते की शुरुआत चार साल पहले 1965 में उस वक़्त हुई थी, जब मंसूर अली ख़ान पटौदी की टीम का क्रिकेट मैच देखने के लिए शर्मिला टैगोर दिल्ली के स्टेडियम में आई थीं.
वो 27 दिसंबर, 1969 का दिन था, जब भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान नवाब मंसूर अली ख़ान पटौदी की बारात फ़िल्म अभिनेत्री शर्मिला टैगोर के घर पर पहुँची थी.
पटौदी रियासत के आख़िरी 'नवाब' और अपने समय की प्रसिद्ध अभिनेत्री के इस रिश्ते की शुरुआत चार साल पहले 1965 में उस वक़्त हुई थी, जब मंसूर अली ख़ान पटौदी की टीम का क्रिकेट मैच देखने के लिए शर्मिला टैगोर दिल्ली के स्टेडियम में आई थीं.
5 जनवरी, 1941 को भोपाल में जन्मे नवाब मंसूर अली ख़ान पटौदी को क्रिकेट का खेल विरासत में मिला था.
उनके पिता नवाब मोहम्मद इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी ने टेस्ट क्रिकेट में इंग्लैंड और भारत दोनों का प्रतिनिधित्व किया था.
मंसूर अली ख़ान पटौदी का ग्यारहवां जन्मदिन था, जब उनके पिता इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी की पोलो खेलते समय मृत्यु हो गई थी.
फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट
इस प्रकार बहुत ही कम उम्र में रियासत की ज़िम्मेदारी मंसूर अली ख़ान पटौदी के कंधों पर आ गई. लेकिन क्रिकेट खेलने में उनकी रुचि कम नहीं हुई.
मंसूर अली ख़ान पटौदी एक ओर बहुत अच्छे बल्लेबाज़ थे तो दूसरी तरफ़ एक तेज़ और फुर्तीले फ़ील्डर. वह चीते जैसी रफ़्तार से गेंद पर झपटते थे.
उनकी इसी फुर्ती के कारण उन्हें टाइगर कहा जाता था. सोलह साल की उम्र में उन्होंने फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट की दुनिया में प्रवेश किया.
उन्होंने इंग्लैंड के ससेक्स और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व किया. वह पहले भारतीय थे जिन्हें इंग्लिश काउंटी का कप्तान बनाया गया था.
साल 1961 में जब वे महज़ 20 साल के थे, एक कार दुर्घटना में उनकी एक आंख ख़राब हो गई थी.
सबसे कम उम्र के कप्तान
लेकिन इस कमी के बावजूद उन्होंने टेस्ट क्रिकेट खेलना जारी रखा और सिर्फ़ 21 साल और 70 दिनों की उम्र में उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी दी गई.
इसके बाद वे भारतीय क्रिकेट टीम के स्थाई कप्तान बन गए. वे अपने समय में सबसे कम उम्र के कप्तान थे.
1965 में उनकी मुलाक़ात उस समय की प्रसिद्ध अभिनेत्री शर्मिला टैगोर से हुई. वे दिल्ली में एक टेस्ट मैच खेल रहे थे और शर्मिला टैगोर वो मैच देखने आई हुई थीं.
मंसूर अली ख़ान पटौदी ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के पढ़े हुए थे, एक रियासत के नवाब थे और भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान भी थे.
उन्हें उर्दू ज़्यादा नहीं आती थी और उन्होंने शर्मिला की फ़िल्में भी ज़्यादा नहीं देखी थीं.
शर्मिला के फ़िल्मी करियर की शुरुआत
शर्मिला उस समय अपने करियर की ऊंचाई पर थीं और अपने बोल्ड फ़ोटो शूट के लिए जानी जाती थीं. ये तो नहीं पता है कि शर्मिला टैगोर पर इस मुलाक़ात का क्या प्रभाव पड़ा था.
लेकिन मंसूर अली ख़ान पटौदी इस पहली ही मुलाक़ात में शर्मिला की ख़ूबसूरती पर मोहित हो गए.
शर्मिला टैगोर एक बंगाली परिवार से थीं. उनका जन्म 8 दिसंबर, 1944 को हैदराबाद में हुआ था. उनके पिता अपने समय के प्रसिद्ध निर्देशक सत्यजीत रे के मित्र थे.
जब सत्यजीत रे ने शर्मिला को देखा, तो उन्होंने उनके पिता से कहा, कि वह उन्हें अपनी फ़िल्म 'अपूर संसार' के लिए कास्ट करना चाहते हैं.
उनके पिता मना नहीं कर सके और इस तरह 12-13 साल की शर्मिला टैगोर ने सत्यजीत रे जैसे निर्देशक की फ़िल्म में मुख्य भूमिका निभाई.
'कश्मीर की कली'
'अपूर संसार' के बाद सत्यजीत रे और कई अन्य बंगाली निर्देशकों ने उन्हें अपनी फ़िल्मों में मौक़ा दिया.
बंगाल के ही एक फ़िल्म निर्माता और निर्देशक शक्ति सामंत 'कश्मीर की कली' नाम से एक फ़िल्म बना रहे थे.
उन्होंने इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका के लिए शर्मिला टैगोर को पेशकश की. शर्मिला ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया.
इस तरह फ़िल्म उद्योग के दरवाज़े उनके लिए खुल गए और वह जल्दी ही एक व्यस्त अभिनेत्री बन गईं.
1960 के दशक में उनकी जो फ़िल्में प्रदर्शित हुई उनमें 'वक़्त', 'एन इवनिंग इन पेरिस', 'आमने-सामने', 'आराधना' और 'सफ़र' शामिल थीं.
शर्मिला के सामने शादी की पेशकश
मंसूर अली ख़ान पटौदी और शर्मिला टैगोर की अगली मुलाक़ात पेरिस में हुई. जहां मंसूर अली ख़ान पटौदी ने शर्मिला के सामने शादी का प्रस्ताव रखा.
शर्मिला ये पेशकश सुनकर हैरान रह गईं. मंसूर अली ख़ान पटौदी ने शर्मिला को एक रेफ्रिजरेटर तोहफ़े में दिया.
हालांकि इस गिफ़्ट का शर्मिला पर कुछ ख़ास असर नहीं हुआ. लेकिन कामदेव ने अपना तीर चला दिया था.
तीन या चार साल मुलाक़ातों में, एक दूसरे को समझने और अपने परिवार वालों को मनाने में बीत गए और 27 दिसंबर, 1969 को दोनों ने शादी कर ली.
मंसूर अली ख़ान पटौदी पहले की तरह क्रिकेट खेलते रहे और शर्मीला ने फ़िल्मों में काम करना जारी रखा.
मंसूर अली ख़ान पटौदी ने अपने करियर में 46 टेस्ट मैच खेले, जिसमें से 40 मैच उनके नेतृत्व में खेले गए.
शर्मिला का करियर
1970 के दशक में शर्मिला टैगोर की फ़िल्में 'अमर प्रेम', 'दाग़', 'मौसम', 'चुपके-चुपके', 'नमकीन' और 'दूरियां' थीं.
2010 तक उनका फ़िल्मी सफ़र जारी रहा. शर्मिला टैगोर को उनकी बेहतरीन अदाकारी के लिए दो राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और एक फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार मिला.
उन्हें फ़िल्म फ़ेयर लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड के लिए भी नामांकित किया गया था. भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया.
साल 2004 से 2011 तक वह भारत के केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड की अध्यक्षा रहीं और साल 2005 में उन्हें यूनिसेफ़ गुडविल ऐम्बैस्डर बनाया गया.
नवाब मंसूर अली ख़ान पटौदी का 22 सितंबर, 2011 को निधन हो गया. शर्मिला टैगोर से उनकी शादी भारतीय फ़िल्म उद्योग में सबसे सफल विवाह में से एक है.
उनके तीन बच्चे हैं, सैफ़ अली ख़ान और बेटी सोहा ख़ान, जो भारतीय फ़िल्म उद्योग में शामिल हैं, जबकि उनकी एक बेटी, सबा अली ख़ान, ज्वेलरी डिज़ाइनर हैं.
क्रिकेट और फ़िल्मी दुनिया का मिलन
मंसूर अली ख़ान पटौदी और शर्मिला टैगोर की शादी क्रिकेट और फ़िल्मी दुनिया के मिलन का पहला उदाहरण नहीं थी.
उनसे पहले पाकिस्तानी टेस्ट क्रिकेटर वक़ार हसन फ़िल्म अभिनेत्री जमीला रज़्ज़ाक़ के साथ शादी के बंधन में बंध गए थे.
उनसे भी पहले नज़र मोहम्मद और नूरजहां के प्रेम संबंधों को अपने समय के प्रसिद्ध प्रेम संबंधों में से एक माना जाता है.
मंसूर अली ख़ान पटौदी और शर्मिला टैगोर के बाद, जो क्रिकेटर और अभिनेत्रियां शादी के बंधन में बंधे हैं, उनमें सरफ़राज नवाज़ और रानी, मोहसिन हसन ख़ान और रीना रॉय, मोहम्मद अज़हरूद्दीन और संगीता बिजलानी, हरभजन सिंह और गीता बसरा, युवराज सिंह और हेज़ल केच, ज़हीर ख़ान और सागरिका, विराट कोहली और अनुष्का शर्मा जैसे महत्वपूर्ण नाम शामिल हैं.