जानिए क्या है माओवादियों और नक्सलियों में अंतर
झारखंड के गुमला जिले में नरसंहार हुआ, जिसमें 100 से ज्यादा गुरिल्लों ने एक गांव पर हमला किया। लूटपाट की और 7 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। कई घायल भी हुए। किसी ने कहा यह नक्सली हमला है, किसी ने कहा माओवादियों ने इसे अंजाम दिया। क्या किसी ने यह सोचा कि वास्तव में हमलावर थे कौन? जाहिर है इन दोनों में से एक नाम ही आयेगा, तो क्या आपको इन दोनों में फर्क मालूम है? अगर नहीं, तो चलिये हम आपको बताते हैं।
माओवादी
माओवादियों की उत्पत्ति चीन में हुई थी। चीनी राजनेता माओ जेदांग के उपदेशों को ग्रहण करने वाले लोग माओवादी हैं। इनकी उत्पत्ति 1950 से 1960 के बीच हुई। इसकी विचारधारा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना से आयी। इस विचारधारा के लोग नेपाल में भी हैं।
माओवादियों का मकसद- इनका मकसद हथियारों के बल पर लोगों का सामाजिक और आर्थिक उत्तथान करना होता है। ये राजनीतिक वर्चस्व हासिल करने के लिये भी हथियारों का प्रयोग करना ज्यादा सही समझते हैं। यह हर चीज को गोलियों की धांय-धांय से पाना चाहते हैं।
नक्सली अथवा नक्सलवादी
नक्सलियों की उत्पत्ति पूर्वी भारत के ग्रामीण इलाकों में हुई। पश्चिम बंगाल, झारखंड और छत्तीसगढ़ इसकी मुख्य बेल्ट बनकर उभरीं। नक्सली शब्द की उत्पत्ति बंगाल के एक गांव नक्सलबारी से हुआ। असल में मूलत: वहीं से इसकी शुरुआत हुई थी।
शुरुआत में इनकी विचारधारा मुख्य रूप से मार्क्सवादी-लेलिनवादी थी। लेकिन आगे चलकर ये माओजेदोंग की विचारधारा से प्रभावित हुए और वही रास्ता अख्तियार कर लिया जो माओवादियों ने शुरू से अख्तियार कर रखा था। वर्तमान में दोनों की विचारधारा में बहुत ही महीन फर्क है।
क्या चाहते हैं माओवादी
माओवादी चाहते हैं कि उनका नियंत्रण सरकार पर हो और राज्य में उनकी सरकार चले। वो चाहते हैं कि पूरे देश में उनकी विचारधारा का वर्चस्व हो।
क्या चाहते हैं नक्सलवादी
नक्सलवादी चाहते हैं कि उनका वर्चस्व उनका हो, नियंत्रण भी उनका हो, लेकिन जब बात उत्थान की आये तो समाज में सबको बराबरी का अधिकार भी देना चाहते हैं। ये लोग पिछड़ों की उपेक्षा बर्दाश्त नहीं करते।
भारत में वर्तमान हालात
वर्तमान में नक्सली और माओवादी मिल चुके हैं। दोनों का मकसद भी एक है और दोनों माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) 2004 में एक हो गये। वर्तमान में नक्सली सीपीआई-माओवादी से प्रभावित होकर काम कर रहे हैं। इन लोगों के हिंसक विद्रोह को देखते हुए भारत सरकार इन्हें आतंकी संगठन के रूप में देखने लगी है।