क्या है गोरखालैंड की मांग और क्यों आज दार्जिलिंग बन गया है एक और कश्मीर
दार्जिलिंग। आजकल कश्मीर से हजारो किलोमीटर की दूरी पर स्थित दार्जिलिंग में पत्थरबाजी हो रही है। वहां का माहौल भी इस समय कश्मीर से अलग नहीं है, बस फर्क इतना है कि दार्जिलिंग में आतंकवाद की वजह से नहीं बल्कि भाषा की वजह से लोगों में डर और गुस्से का माहौल है। दार्जिलिंग पिछले करीब 10 दिनों से जल रहा है और चाय के बागानों लिए मशहूर इस जगह पर अब जगह-जगह जली हुई गाड़ियां और पुलिस का हुजूम देखा जा सकता है। रविवार को दार्जिलिंग में कर्फ्यू का चौथा दिन था और इस मौके पर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ने एक विरोध रैली का आयोजन किया हुआ था।
क्या है बवाल की वजह
दार्जिलिंग में जो वर्तमान संकट है उसकी वजह है लोगों में इस बात का डर पैदा होना कि अब स्कूलों में बंगाली भाषा पढ़ाई जाएगी। दार्जिलिंग में बड़ी संख्या नेपाली भाषा बोलन वाले गोरखा समुदाय की है। वर्ष 1961 में नेपाली भाषा को पश्चिम बंगाल में आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला था। वर्ष 1992 में नेपाली को भारत की एक आधिकारिक भाषा माना गया।
100 वर्ष पुरानी मांग
गोरखा जनमुक्ति मोर्चा यानी जीजेएम ने डर की वजह से एक बार फिर 100 वर्ष पुरानी मांग को लेकर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। जीजेएम एक अलग गोरखालैंड की मांग कर रहा है। इसके मुखिया बिमल गुरुंग ने एक अज्ञात स्थान से अपने समर्थकों से आखिरी लड़ाई लड़ने की अपील की है।
समझौते से कम लोकप्रियता
गुरुंग ने केंद्र और राज्य सरकार के साथ एक त्रिकोणीय समझौता किया जिसमें पूर्ण राज्य के दर्जे की जगह एक अनाम प्रशासनिक संघ की बात थी। इस समझौते की वजह से गुरुंग को इस बात का अहसास हुआ कि अब वह धीरे-धीरे अपनी लोकप्रियता खोते जा रहे हैं। साथ ही उन्हें अपना संघर्ष भी खतरे में लगने लगा था। वर्तमान में जो हालात दार्जिलिंग में हैं उसकी वजह से एक बार फिर गुरुंग चर्चा में हैं।
ममता बनर्जी ने की बातचीत की पेशकश
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जीजेएम के साथ बातचीत की पेशकश की है। उन्होंने इस बात को भी स्पष्ट कर दिया है कि सरकार स्कूलों में बंगाली भाषा लागू करने नहीं जा रही है। ममता का कहना है कि अगर जीजेएम बंद को खत्म करने की अपील करता है तो ही वह बातचीत करेंगी। साथ ही उन्होंने इस बात के भी आरोप लगा दिए हैं कि जीजेएम के संपर्क नॉर्थ-ईस्ट और पड़ोसी देशों में मौजूद आतंकी संगठन से हैं।
वर्ष 1980 से जारी है विवाद
वर्ष 1980 में सुभाष घीसिंग ने पहली बार देश में गोरखालैंड के लिए आवाज उठाई थी। उस समय भी ऐसा ही विरोध प्रदर्शन हुआ और करीब 1200 लोगों की मौत हुई थी। यह संघर्ष आठ वर्षों बाद यानी 1988 में तब खत्म हुआ जब दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल यानी डीजीएचसी का गठन हुआ। डीजीएचसी पिछले 23 वर्षों से दार्जिलिंग में मौजूद है और शासन कर रही है।
वर्ष 2004 में असंतोष की स्थिति
वर्ष 2004 में डीजीएससी के चुनाव होने थे लेकिन तब सरकार ने चुनाव न कराने का फैसला किया। चुनाव की जगह पर घीसिंग को इसका केयरटेकर बना दिया गया। इस वजह से संगठन में असंतोष फैलने लगा और यहां से गुरुंग ने संगठन से अलग होने का फैसला किया। गुरुंग को तेजी से समर्थन मिला।
गोरखालैंड और इंडियन आयडल
गुरुंग ने उस समय के इंडियन आयडल प्रतियोगी प्रशांत तमांग के लिए बड़े पैमाने पर समर्थन जुटाया और इस तरह से वह घीसिंग को उनकी सत्ता से उखाड़ फेंकने में सफल हुए। यहां से गुरुंग को गोरखा जनमुक्ति मोर्चा की स्थापना के लिए प्रेरणा मिली और उन्होंने इसकी शुरुआत की।
बीजेपी का चुनावी वादा
वर्ष 2009 में जब लोकसभा चुनाव होने वाले थे तो बीजेपी ने सत्ता में आने पर तेलंगाना और गोरखालैंड दो राज्यों के निर्माण का ऐलान किया था। उस समय बीजेपी ने जसवंत सिंह को यहां से अपना उम्मीदवार घोषित किया। जसवंत सिंह ने 51.5 प्रतिशत वोट्स के साथ चुनावों में जीत दर्ज की। जुलाई 2009 में ससंद का बजट सत्र हुआ तो तीन सांसदों राजीव प्रताप रूडी, सुषमा स्वराज और जसवंत सिंह ने अलग गोरख राज्य की मांग की।
2010 में हिंसक आंदोलन
21 मई 2010 को अलग गोरखालैंड की मांग ने उस समय एक नया रूप ले लिया जब अखिल भारतीय गोरखा लीग के नेता मदन तमांग की हत्या कर दी गई। जीजेएम के समर्थकों पर आरोप था कि उन्होंने तमांग को मारा है। इसके बाद दार्जिलिंग समेत कलिमपोंग और कुर्सेयांग में बंद का ऐलान हुआ।
फरवरी 2011 में फिर हिंसा
आठ फरवरी 2011 को तीन जीजेएम कार्यकर्ताओं की गोली मारकर हत्या कर दी। इनकी हत्या उस समय हुई जब गुरुंग की अगुवाई में कार्यकर्ता जलपाई गुड़ी से दार्जिलिंग में दाखिल होने की कोशिश कर रहे थे। इसके बाद यहां पर हिंसा शुरू हुई और करीब नौ दिनों तक हिंसा का तांडव जारी रहा।
2014 में फिर चुनावी वादा
वर्ष 2011 में जब पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हुए थे तो जीजेएम के उम्मीदवारों ने दार्जिलिंग हिल एसेंबली से तीन सीटें जीती थीं। वर्ष 2014 में यहां से बीजेपी के एसएस अहलूवालिया को जीत मिली और वह फिलहाल यहां से सांसद हैं। चुनाव जीतने के मकसद सत्ताधारी बीजेपी ने जो वादा किया उसे पूरा करने के आसार फिलहाल यहां के लोगों को नजर नहीं आ रहे हैं।