आंकड़ों में जानिए भारत में कितना हुआ जॉब ग्रोथ?
नई दिल्ली। साल 2014 के लोकसभा में भाजपा ने देश के युवाओं को नौकरी का वादा किया था। नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी ने देश की जनता से वादा किया था कि उनकी सरकार देश में नौकरियों की भरमार लाएगी, लेकिन 3 साल बीत जाने के बाद भी सरकार ऐसा करने में असफल रही है। रोजगार के मुद्दे पर फेल रही सरकार को विपक्ष भी लगातार घेर रहा है। रोजगार पर डेटाबेस की कमी की वजह इसपर गहन चर्चा नहीं हो पा रही है। नई नौकरियों को लेकर किए जाने वाले सर्वे अभी पूरे नहीं हुए हैं तो वहीं विधि संबंधी मतभेद की वजह से कई डेटा की तुलाना नहीं की जा सकती है।
क्या कहते हैं आंकड़े
हालांकि नौकरी की वृद्धि में रुझानों की जांच का एक तरीका है कॉर्पोरेट और औद्योगिक आंकड़ों की तुलना करना, जिसमें देखा जाता है कि कंपनियों ने साल भर के भीतर कितनी कर्मचारियों की भर्ती की। Mint ने इसी कॉरपोरेट डेटा की विश्लेषण किया है, जिसका सोर्स प्रोवेस आईक्यू डाटाबेस ऑफ द सेंट्रल फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी(सीएमआईई) ले लिया गया है।
भारत में जॉब ग्रोथ
सीएमआईई ने 27000 कंपनियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इनमें से बहुत कम कंपनियां ही हैं, जिनका पिछले कई सालों का डेटाबेस मौजूद है। आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 में 2000 से ज्यादा कंपनियों ने करीब 6.4 लोगों रोजगार कर अपना जीवनयापन कर रहे हैं। डेटा के मुताबिक भारत में नौकरियों में औसत वृद्धि बेहद कम रही है। साल 2006 से 2009 के बीच जॉब ग्रोथ मात्र 4% रहा। वहीं साल 2010 में ये ग्रोथ और धीमा हो गया और केवल 2% रहा। हालांकि साल 2011 में इसमें थोड़ी तेजी आई और ये 5% तक पहुंच गया। साल 2014 में इसमें 1.5% ग्रोथ रहा।
बड़ी कंपनियों के मुकाबले छोटी कंपनियों में रही तेजी
सर्वे के मुताबिक भारत में बड़ी कंपनियों के मुकाबले छोटी कंपनियों में जॉब ग्रोथ में ज्यादा तेजी रही। सेल, नेटवर्थ और प्रॉफिट के आधार पर बड़ी कंपनियों के मुकाबले छोटी कंपनियों ने ज्यादा नौकरियां बांटी। हालांकि इन आंकड़ों में ये पता नहीं चल सका कि कंपनियों ने किस तरह की नौकरियां ज्यादा बांटी। जॉब नेटर को लेकर भी स्पष्ठ आंकड़े नहीं मिल सके।
नौकरी को लेकर कर्मचारी असुरक्षित
सर्वे
के
मुताबिक
भारत
में
नौकरी
को
लेकर
कर्मचारी
बेहद
असुरक्षित
महसूस
करते
है।
एक
सर्वे
के
मुताबिक
बारत
में
अधिकांश
सैलरीड
कर्मचारी
असुरक्षित,
लिखित
अनुबंधों
या
भविष्य
निधि
और
मातृत्व
अवकाश
जैसे
लाभों
से
वंचित
है।
ICE
360
डिग्री
द्वारा
साल
2016
में
किए
गए
सर्वेक्षण
से
पता
चला
है
ग्रामीण
भारत
में
68%
वेतनभोगी
कर्मचारियों
को
और
शहरी
भारत
में
71%
वेतनभोगी
कामगारों
को
लिखित
अनुबंध
नहीं
मिला
है।