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नए साल में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए क्या हैं चुनौतियां?

कोरोना के कारण पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे अपनी लय पकड़ती दिख रही है. लेकिन कोरोना महामारी के पहले जैसी रफ़्तार पकड़ने में अभी वक़्त लग सकता है.

By BBC News हिन्दी
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मोदी सरकार
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मोदी सरकार

पश्चिमी देश भयंकर मंदी की ओर जा रहे हैं तो दूसरी तरफ़ 2022 में अपनी तरक्की से उम्मीद पैदा करने वाले भारत के लिए अपने विकास दर को बनाए रख पाना लगातार मुश्किल होने जा रहा है.

हालांकि कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि 2023 में वैश्विक विकास दर के लिए दुनिया की नज़र भारत की ओर होगी और विश्व बैंक ने भी बेहतर आर्थिक गतिविधियों के चलते भारत के जीडीपी अनुमान को संशोधित कर 6.9 प्रतिशत कर दिया है.

लेकिन ऐसा नहीं है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वैश्विक मंदी के असर से अछूती है.

हालांकि अभी तक भारत के घरेलू उपभोग ने अर्थव्यवस्था को बड़ा सहारा दिया है.

भारत के रिज़र्व बैंक ने हाल ही में अर्थव्यवस्था की हालत पर एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा था, "ख़तरे का संतुलन लगातार गहराते वैश्विक संकट की ओर झुकता जा रहा है और उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाएं इसे लेकर बहुत संवेदनशील दिखाई देती हैं."

भारत का निर्यात पहले ही कमज़ोर हालात की ओर जा रहा है और वैश्विक मंदी इसे और कमज़ोर ही करेगा, जो देश के कुल जीडीपी में अकेले 20 प्रतिशत का योगदान करता है.

इंजीनियरिंग सामान, ज्वेलरी, टेक्सटाइल और फ़ार्मास्यूटिकल्स वाले निर्यात सेक्टरों पर इसका असर पड़ेगा जोकि श्रम प्रधान उद्योग हैं.

इस समय भारत अपनी आमदनी से अधिक खर्च कर रहा है. चालू खाता घाटा और राजकोषीय घाटा दोनों ही तेज़ी से बढ़ रहे हैं और चिंता का बड़ा सबब बने हुए हैं.

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महंगाई
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महंगाई

महंगाई और विकास दर में संतुलन बिठाने की चुनौती

पिछले कुछ महीनों से वैश्विक स्तर पर भोजन, ऊर्जा और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की क़ीमतों में नरमी के बावजूद उच्च स्तर पर महंगाई के बने रहने ने हालात को और मुश्किल किया है.

पेट्रोलियम पदार्थों के आयात पर निर्भरता भारत के लिए एक बड़ा 'रिस्क फ़ैक्टर' है क्योंकि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध और वैश्विक आपूर्ति चेन में बाधा के कारण इसकी क़ीमत में उतार चढ़ाव हो रहा है.

इसलिए इसकी पूरी संभावना है कि 2023 में बढ़ती क़ीमतों और धीमी होती विकास दर के बीच संतुलन बैठाने की चुनौती और बढ़ती जाएगी.

हालांकि लगातार चार बार ब्याज़ दरों में बढ़ोत्तरी के बाद महंगाई में मामूली राहत आई है और रिज़र्व बैंक ने संकेत दिया है कि इसे काबू करना करना उसकी अभी प्राथमिकता में है और ज़रूरत पड़ी तो ब्याज़ दरों में और इजाफे से वो पीछे नहीं हटेगा.

यह न सिर्फ आम भारतीयों के होम लोन और पर्सनल लोन को महंगा करेगा बल्कि कॉरपोरेट लोन पर भी असर डालेगा.

सरकार और आरबीआई दोनों ये उम्मीद लगाए बैठे हैं कि 2023 में निजी क्षेत्र का निवेश रफ़्तार पकड़ेगा और इससे विकास दर भी बढ़ेगी.

हालांकि भारत के कॉरपोरेट जगत के एक हिस्से द्वारा नए निवेश के कुछ शुरुआती संकेत मिले हैं लेकिन अभी ये आंकड़ों में परिवर्तित नहीं हो पाया है.

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फ़ैक्ट्री उत्पादन
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भारत को मौका

फ़ैक्ट्री उत्पादन पर नज़र रखने वाले इंडेक्स ऑफ़ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (आईआईपी) के मुताबिक़, अक्टूबर 2022 में फ़ैक्ट्री उत्पादन 26 माह के निम्नतम स्तर पर पहुंच गया. लेकिन मौके लगातार बढ़ रहे हैं.

एक तरफ़ दुनिया के बाकी देश अपने सप्लाई चेन को चीन से अलग करने की कोशिशों में हैं, दूसरी तरफ़ मोदी सरकार मुक्त व्यापार में तेज़ी लाने की कोशिश में है, ऐसे में भारत निजी क्षेत्र के बड़े निवेशों को आकर्षित करने की स्थिति में है.

परफ़ार्मेंस लिंक्ड इंसेटिव (पीएली) जैसी मैन्युफ़ैक्चरिंग योजनाओं में सरकार ने अपनी रुचि दिखाई है.

रिसर्च एंड आउटरीच (ईसीआरए) के प्रमुख रोहित आहूजा ने अपनी नवंबर की रिपोर्ट में कहा था, "साल 2024 भारत के मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में उछाल ला सकता है."

विशेषज्ञों का कहना है कि इसके बावजूद विकास दर को बढ़ाने के लिए सरकार को सार्वजनिक खर्च को बढ़ाने की ज़रूरत होगी.

हाल की एक रिपोर्ट में क्रेडिट सुइस के इंडिया रिसर्च हेड और एशिया प्रशांत इलाके के इक्विटी स्ट्रेटजी सह प्रबंधक नीलकांत मिश्रा ने कहा, "सरकारी खर्च, कम आमदनी वाली नौकरियों में वृद्धि और सप्लाई चेन की बाधाओं को ख़त्म करने से महंगाई के असर और वैश्विक मंदी को आंशिक रूप से कम किया जा सकता है."

उनका ये भी कहना है कि भुगतान असुंतलन घाटे को कम करने की ज़रूरत है.

भारत को ज़्यादा से ज़्यादा व्यापार समझौतों के सहारे, बढ़ते वैश्विक बाज़ार में अपनी पहुंच को बढ़ाने के लिए भारत अपनी पूरी ताक़त लगाएगा.

ऑस्ट्रेलिया और यूएई के साथ व्यापार समझौते के बाद ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और गल्फ़ कोऑपरेशन काउंसिल के साथ भारत की बातचीत चल रही है.

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मोदी
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बजट में लोकलुभावन घोषणाएं कर पाएगी सरकार?

जी-20 की अध्यक्षता के साथ भारत 2023 में वैश्विक पटल पर होगा. हालांकि चिंता की बात ये है कि वैश्विक मंदी के बीच पूरी दुनिया में संरक्षणवाद (विदेशी व्यापार पर अंकुश) का भी बोलबाला रहने वाला है.

अपने निर्यात को बढ़ाने और विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने की कोशिशों के बीच भारत को बड़ी चतुराई से काम लेना होगा और ये एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है.

संयोग से ये वही साल है जिसके तुरंत बाद 2024 में आगामी आम चुनाव होने वाले है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी अपने तीसरे कार्यकाल के लिए चुनाव में उतरेगी.

फ़रवरी में जो आगामी बजट पेश किया जाना है, उसमें कुछ लोकप्रिय घोषणाओं की उम्मीद है. यह आम चुनावों के पहले अंतिम पूर्ण बजट भी होगा.

लेकन समस्या ये है कि बढ़ते राजकोषीय घाटे के चलते सरकार के पास पैसे खर्च करने की क्षमता बहुत कम बची है.

मोदी सरकार अपनी आर्थिक जटिलताओं और राजनीतिक महत्वकांक्षा में कैसे सामंजस्य बिठाती है, ये देखने वाली बात होगी.

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English summary
What are the challenges for the Indian economy in the new year?
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