क्या 2011 में सोनिया गांधी का इलाज कांग्रेस के रंगदारी टैक्स से हुआ था ?
नई दिल्ली, 26 अप्रैल। सोनिया गांधी 2011 में इलाज के लिए अमेरिका गयीं थीं। उनका ऑपरेशन हुआ था और उन्हें करीब एक महीने तक अमेरिका में रुकना पड़ा था। राणा कपूर के आरोप के बाद यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या सोनिया गांधी का इलाज कांग्रेस की उगाही वाले पैसे से हुआ था ? यस बैंक के सह संस्थापक राणा कपूर (जेल में बंद) के मुताबिक, 2010 में तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा ने उन्हें धमकी दी थी कि यदि उन्होंने प्रियंका गांधी से एक पेंटिंग नहीं खरीदी तो गांधी परिवार से उनका रिश्ता खराब हो जाएगा। उन्हें पद्म सम्मान मिलने भी कठिनाई होगी। वे पेंटिंग नहीं खरीदना चाहते थे। लेकिन इस धमकी से मजबूर हो कर राणा को यह पेंटिंग दो करोड़ रुपये में खरीदनी पड़ी।
राणा का दावा है कि इन पैसों से सोनिया गांधी का विदेश में इलाज कराया गया था। प्रियंका गांधी ने 4 जून 2010 को एक चिट्ठी लिखी थी जिससे पता चलता है कि राणा कपूर ने उनसे दो करोड़ रुपये में एक पेंटिंग खरीदी थी। यह पेटिंग राजीव गांधी की थी जिसे मकबूल फिदा हुसैन ने बनाया था। 1985 में कांग्रेस के शताब्दी वर्ष के मौके पर हुसैन ने यह पेंटिंग राजीव गांधी को भेंट की थी।
सोनिया गांधी का अमेरिका में हुआ था इलाज
अगस्त 2011 में सोनिया गांधी बहुत गोपनीय तरीके से इलाज के लिए अमेरिका गयीं थी। उनका ऑपरेशन हुआ था। उनके ऑपरेशन को बहुत गुप्त रखा गया था। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी उनके साथ थे। संयोग से उसी समय भारत में अन्ना हजारे का आंदोलन शुरू हो गया। राहुल प्रियंका को लौट कर भारत आना पड़ा। हालांकि कुछ समय के बाद वे फिर अमेरिका गये थे। उस समय सोनिया गांधी का इलाज न्यूयॉर्क के एक कैंसर अस्पताल में हुआ था। तब यही कयास लगाया गया था कि उनका कैंसर को लेकर ही ऑपरेशन हुआ था। लेकिन कांग्रेस पार्टी की तरफ से कभी इसका खुलासा नहीं किया। वे करीब एक महीना तक अमेरिका में रहीं थीं। इलाज में कितना पैसा खर्च हुआ, ये कोई नहीं जानता। उस समय कांग्रेस ही की सरकार थी। सत्ता की चाबी सोनिया गांधी के पास थी। ऐसे में सोनिया गांधी के इलाज के लिए कांग्रेस को क्या रंगदारी टैक्स की जरूरत पड़ी होगी ? सवाल कई हैं लेकिन उत्तर मालूम नहीं। इस बात की भी जानकारी नहीं है कि उस पेंटिंग की वास्तविक कीमत कितनी थी। क्या जबरन उसकी कीमत दो करोड़ रुपये थोप दी गयी थी ?
जब सोनिया गांधी ने दिया था लोकसभा से इस्तीफा
सोनिया गांधी 2004 से अप्रैल 2014 तक सत्ता की धुरी थीं। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। लेकिन शासन की असल ताकत सोनिया गांधी के पास थी। 2004 में जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी तो राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का गठन किया गया था। इसका मकसद था सरकार और समाज के बीच संवाद स्थापित करना। सोनिया गांधी को राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का अध्यक्ष बनाया गया था। उनका दर्जा कैबिनेट मंत्री के बराबर था। सांसद रहने के बावजूद सोनिया गांधी के परिषद का अध्यक्ष बनने पर विवाद हो गया। संविधान के मुताबिक कोई सांसद या विधायक वैसे किसी अन्य पद पर नहीं रह सकता जहां वेतन, भत्ते या अन्य फायदे मिलते हों। यानी वह लाभ का दोहरे पद पर नहीं रह सकता। विपक्ष उनसे इस्तीफे की मांग करने लगा। तब 2006 में सोनिया गांधी ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद और संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे से रायबरेली की सीट खाली हो गयी। तब मई 2006 में वहां उपचुनाव करना पड़ा। भाजपा ने उनके मुकाबले विनय कटियार को मैदान में उतारा था। इस उपचुनाव में सोनिया गांधी की जीत हुई और फिर वे लोकसभा में पहुंची।
इलाज के खर्चे पर हुआ था राजनीतिक विवाद
इस विवाद के बावजूद मार्च 2010 में सोनिया गांधी को फिर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का अध्यक्ष बनाया गया था। पांच महीने बाद वे इलाज के लिए अमेरिका गयी थीं। जब वे इलाज के एक महीने बाद भारत लौटीं तब इसको लेकर कई तरह की बातें होने लगीं थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मांग की थी कि सोनिया गांधी के इलाज के खर्च का खुलासा होना चाहिए। ऑर्गेनाइजर के संपादकीय में कहा गया था, सवाल यह नहीं है कि इलाज पर 1800 करोड़ रुपये खर्च हुए या 180 करोड़ रुपये, सवाल पारदर्शिता और जवाबदेही का है। सोनिया गांधी सांसद हैं और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष हैं। उनके खर्च और आर्थिक स्रोत की जानकारी जनता को होनी चाहिए। सरकार ने खंडन कर दिया है कि उसने उनके इलाज का खर्चा नहीं उठाया है। तब तो यह मुद्दा और भी विवादास्पद हो गया है। लोग जानना चाहते हैं कि उनका खर्चीला इलाज कैसे हुआ ? यानी सोनिया गांधी का अमेरिका जाना और उनका इलाज कराना, राजनीतिक विवाद का विषय बना था।
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