उत्तराखंड की आपबीती: रिजॉर्ट में दहशत के वो 24 घंटे, जब कदम-कदम पर नजर आई मौत
हालात ऐसे थे कि बारिश की वजह से पहाड़ों पर रुकना खतरे से खाली नहीं था और नीचे जाने वाले रास्तों पर बरसाती नालों ने अपना कब्जा जमा लिया था।
रामनगर, 20 अक्टूबर: उत्तराखंड में तीन दिन की बारिश ने भारी तबाही मचाई है। अभी तक की जानकारी के मुताबिक, कुदरत के इस कहर में 46 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 11 लोग लापता बताए जा रहे हैं। बारिश इस कदर भयानक थी, कि नैनीताल की नैनी झील तबाही की झील में तब्दील हो गई और सैकड़ों की संख्या में पयर्टक फंस गए। वहीं, रामनगर जिले में जिम कॉर्बेट पार्क के बीच से बहने वाली कोसी नदी में ऐसी बाढ़ आई कि पहाड़ों के खूबसूरत नजारों को देखने के लिए आए पर्यटकों को एक भयावह मंजर से गुजरना पड़ा। हालात ऐसे थे कि बारिश की वजह से पहाड़ों पर रुकना खतरे से खाली नहीं था और नीचे जाने वाले रास्तों पर बरसाती नालों ने अपना कब्जा जमा लिया था। पढ़िए एक आपबीती...
'नहीं सोचा था कोसी का ऐसा रूप दिखेगा'
रविवार को सुबह हल्की बूंदाबांदी के बाद मौसम ठीक था, लेकिन गाजियाबाद पार करते ही बारिश फिर से होने लगी। अमरोहा पहुंचे, तो मौसम विभाग की तरफ से उत्तराखंड में बारिश को लेकर रेड अलर्ट जारी होने का ट्वीट मिला। लेकिन, उस समय दिमाग में एक पल के लिए भी ये बात नहीं आई की जिम कॉर्बेट जैसी जगह पर बारिश का ये रूप भी देखने को मिल सकता है। हम शाम करीब 6:30 बजे जिम कॉर्बेट पार्क की चिल्किया रेंज में स्थित अपने बुक किए हुए रिजॉर्ट में पहुंचे और बारिश अभी भी बहुत हल्की थी। रिजॉर्ट के ठीक नीचे की तरफ बह रही कोसी में काफी कम पानी था और हमने तय किया था कि सुबह कोसी नदी देखने जाएंगे।
'ऊपर वापस लौट सकते हैं तो लौट जाइए'
सोमवार सुबह 6 बजे के आसपास आंख खुली तो बारिश हो रही थी, लेकिन कोसी में पानी अभी भी उतना ही था, जितना एक दिन पहले। हालांकि इस बीच मौसम बिगड़ने की खबरें ट्विटर पर आने लगी थी और हमने तय किया कि आज ही वापस लौट जाते हैं। करीब 12 बजे हम लोग रिजॉर्ट से निकले तो मोहान चौकी पर ट्रैफिक रुका हुआ था और पूछने पर वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने बताया कि आगे रोड पर पहाड़ों के ऊपर से पानी का बहाव बहुत तेजी से नीचे आ रहा है, इसलिए गाड़ियां नहीं जा सकती। एक पुलिसकर्मी ने यह भी सलाह दी कि अगर आप ऊपर वापस लौट सकते हैं तो लौट जाइए, क्योंकि रास्ता खुलने की अभी कोई संभावना नहीं है।
'अब माहौल में घबराहट बढ़ने लगी थी'
बारिश लगातार तेज होती जा रही थी और मन में डर था कि अगर कुछ देर और रुके तो ना नीचे जा पाएंगे और ना ही वापस ऊपर, इसलिए गाड़ी को फिर से रिजॉर्ट की तरफ घुमा लिया। रिजॉर्ट पहुंचकर तय किया कि करीब घंटे-दो घंटे इंतजार करते हैं और अगर रास्ता खुल गया तो आज ही घर लौट जाएंगे। इस बीच हमारे साथ चेक आउट करने वाले कुछ और लोग भी वापस रिजॉर्ट लौट आए और माहौल में घबराहट बढ़ने लगी। जब काफी देर तक रास्ता खुलने के कोई आसार नजर नहीं आए तो फिर से उसी रिजॉर्ट में एक रूम लिया और तय किया कि अब कल सुबह सुबह निकलेंगे। वहां मौजूद बाकी लोग भी ऐसा ही सोचकर दोबारा रिजॉर्ट में रुके थे।
'आंखों के सामने घूमने लगे केदारनाथ आपदा के मंजर'
लेकिन, सोमवार रात की बारिश बहुत ही डरावनी थी। घबराहट की वजह से रात में कई बार आंख खुली और जब-जब आंख खुली, बारिश उसी रफ्तार से होती हुई मिली। सुबह उठकर कमरे से बाहर निकले तो देखा कि जिस कोसी में पानी ना के बराबर था, उसी कोसी में अब पानी का वेग इतना प्रचंड था कि 2013 में आई केदारनाथ आपदा के मंजर आंखों के सामने घूमने लगे। कोसी का पानी किनारे बसे एक लग्जरी रिजॉर्ट में घुस चुका था और स्थानीय लोगों से पता चला कि आसपास के कुछ गांव भी बाढ़ की चपेट में आए हैं। सुबह 7 बजे रिजॉर्ट में बिजली चली गई और एक दिन पहले तक आ रहे मोबाइल सिग्नल भी अब नहीं आ रहे थे। यानी किसी से बात करने का कोई जरिया अब हमारे पास मौजूद नहीं था। मन में घबराहट की जगह, अब डर ने ले ली थी और किसी भी तरह से हम वहां से निकलना चाहते थे।
'अगले दिन मुसीबत और भयावह हो गई'
रिसेप्शन से पता चला कि रिजॉर्ट में खाने-पीने का सामान लाने वाली सप्लाई गाड़ी भी कल से नहीं आई है और मोहान के आगे बरसाती नाले का पानी और ज्यादा बढ़ गया है। 10 बजे तक इंतजार करने के बाद रिजॉर्ट से दो गाड़ियां ये चेक करने के लिए नीचे गईं कि रास्तों की मौजूदा स्थिति क्या है? करीब एक घंटे बाद गाड़ियां वापस लौटीं और पता चला कि अब मोहान से पहले ही एक बरसाती नाला और बन गया है, जिसमें पानी का बहाव इतना तेज है कि उसमें गाड़ियों का निकलना मुमकिन नहीं। यानी ऊपर से नीचे की तरफ जाने वाले रास्ते पर बरसाती नालों ने पूरी तरह से कब्जा जमा लिया था। मोबाइल में सिग्नल थे नहीं, बिजली भी नहीं थी, तो बस अब एक ही उम्मीद थी कि किसी तरह बारिश कुछ घंटों के लिए रुके और उस समय नीचे जाने की कोशिश की जाए।
'अब आगे कुंआ, पीछे खाई'
रिजॉर्ट में मौजूद सभी लोग घबराए हुए थे, क्योंकि किसी के पास मन को तसल्ली देने का कोई जरिया नहीं था। हालांकि इस बीच करीब 2 घंटे ऐसे रहे, जब बारिश जारी तो रही, लेकिन रफ्तार बहुत कम थी। 1 बजे के आसपास एक बार फिर तय हुआ कि सब एक साथ नीचे की तरफ चलते हैं और देखते हैं कि बरसाती नालों का बहाव कम हुआ या नहीं। रिजॉर्ट से करीब 7 किलोमीटर नीचे उतरने पर पहला बरसाती नाला दिखा, जो अपने साथ बड़े-बड़े पत्थरों को भी बहाकर लाया था। पानी के बहाव में दो घंटे बाद भी ना के बराबर ही कमी आई थी और किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि उस बहाव के बीच से गाड़ी निकाली जाए। सोचा कुछ देर यहीं इंतजार करें, लेकिन बारिश फिर से तेज होने लगी और अब आगे कुंआ, पीछे खाई।
ये था वो पहला बरसाती नाला
इस बीच उसी रिजॉर्ट से एक इनोवा कार आई और ड्राइवर ने बहुत तेज रफ्तार के साथ उस बरसाती नाली से अपनी गाड़ी निकाली। गाड़ी तो निकल गई, लेकिन पानी के बहाव की वजह उसका बंपर टूटकर अलग हो गया। हमारे साथ वहां मौजूद सभी लोगों के पास छोटी गाड़ियां थी, इसलिए खतरा उठाने को कोई तैयार नहीं था। हालांकि हमारी गाड़ी के ड्राइवर ने कुछ हिम्मत दिखाई और अपने अनुभव का इस्तेमाल करते हुए बरसाती नाली के बीच से गाड़ी निकाल ली। अब हम बरसाती नाले के दूसरी तरफ थे। हमारे ड्राइवर ने वहां मौजूद बाकी लोगों को भी कुछ हिम्मत दी और इसके बाद एक-एक करके बाकी गाड़ियां भी निकल आईं। मन को कुछ राहत मिली तो आगे बढ़े, लेकिन अब मोहान के पास वाले बरसाती नाले पर अटक गए।
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पानी का बहाव और बीचे में बड़े पत्थर
इस बरसाती नाले में एक दिन पहले के मुकाबले पानी तो कम था, लेकिन रोड पर काफी बड़े-बड़े पत्थर थे, जिन्हें जेसीबी की मदद से हटाया जा रहा था। पानी भी इतना था कि एसयूवी के अलावा दूसरी गाड़ियां लाइन लगाकर खड़ीं थी। हालांकि पहला बरसाती नाला पार करने के बाद अब हिम्मत कुछ और बढ़ गई थी और हमने तय किया कि गाड़ी निकालते हैं। साथ में मौजूद बाकी गाड़ियों की भी सहमति बनी और रिस्क लेते हुए उस बरसाती नाले से गाड़ी निकाली गई। हालांकि पानी का बहाव काफी था और गाड़ी निकालते वक्त डिक्की में मौजूद बैग तक पानी पहुंच गया। अब दोनों बड़े नाले पार हो चुके थे और हम खुद को सुरक्षित मानकर अपने घर की तरफ लौट चले। रास्ते में कुछ छोटे-बड़े और बरसाती नाले मिले, लेकिन उनका बहाव पहले वालों की अपेक्षा कम था और गाड़ी आराम से निकल गई। नीचे उतरते वक्त कोसी नदी दिख रही थी, जिसमें पानी पूरे वेग से चल रहा था। और, आखिरकार जब हमारी गाड़ी मैदानी इलाके में पहुंच गई तो राहत की सांस ली।
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