हिमाचल की राजनीति में राजपूती दबदबे की पूरी कहानी
जानकार मानते हैं कि हिमाचल में भाजपा दूर की सोच रही है और उसने परंपरा को तोड़ा है.
हिमाचल प्रदेश की नई सरकार के गठन ने प्रदेश की सियासत को पूरा बदल दिया है. कल तक जो सत्ता, दो चेहरों को आस-पास घूमती थी, वो अब पहले जैसे नहीं रही.
हाल में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल के चुनाव हार जाने से प्रदेश की सत्ता का समीकरण बिल्कुल बदल गया. और इसमें बाज़ी मारी बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले जय राम ठाकुर ने.
मंड़ी ज़िले से ताल्लुक रखने वाले जय राम ठाकुर इस ज़िले से पहले और प्रदेश के तेरहवें मुख्यमंत्री बने हैं.
इससे पहले मंड़ी के दो बड़े नेता - कर्म सिंह और पंडित सुखराम, सियासी कारणों और निजी चालों की वजह से मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे.
भाजपा ने अपर-लोअर का तगमा हटाया
हिमाचल प्रदेश में 12 ज़िले हैं. इनमें दुर्गम और पहाड़ी क्षेत्रों के अपर-हिमाचल और पंजाब से लगे तराई के क्षेत्रों को लोअर-हिमाचल से जाना जाता है. इस फर्क को हिमाचल की जनता ज्यादा तवज्जो नहीं देती है, लेकिन चुनावी मौहाल में राजनैतिक दल इसे खूब रंग देते हैं.
भाजपा से पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार कांगड़ा ज़िले हैं और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल हमीरपुर से हैं. इनका इलाका लोअर-हिमाचल कहलाता है.
भाजपा पर अभी तक लोअर हिमाचल इलाक़े से ही मुख्यमंत्री बनाने का तगमा लगा था.
वहीं कांग्रेस पार्टी से पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वाई एस परमार और स्वर्गीय राम लाल ठाकुर सिरमौर और शिमला ज़िले से थे. इसके अलावा छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह भी शिमला ज़िले से हैं, जो अपर-हिमाचल का हिस्सा है.
अगर चुनावी प्रर्दशन की बात करें तो 1993 के बाद कांग्रेस का प्रर्दशन अपर-हिमाचल में अच्छा रहा और भाजपा का लोअर-हिमाचल में, लेकिन चुनाव में भाजपा ने मंडी से जय राम ठाकुर को प्रदेश की कमान सौंप कर अपर-लोअर के फैक्टर को अच्छी तरह बेलैंस करने की कोशिश की है.
वरिष्ठ पत्रकार अश्वनी शर्मा इसे भाजपा की दूर की सोच मानते हैं.
वो कहते हैं, "भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने उनका चुनाव बेहद सोच-समझ कर किया है, जिसका मक़सद भाजपा सरकार को प्रदेश में सिर्फ़ 5 साल नहीं बल्कि 10 से 15 साल तक सत्ता में बरकार रखना है."
राजपूतों का दबदबा
हिमाचल की सियासत में भले ही कभी जाति के आधार पर राजनीति नहीं हुई, लेकिन ये सच है कि यहां हमेशा राजपूतों का सत्ता में बड़ा दबदबा रहा है.
अगर प्रदेश के पहले छह मुख्यमंत्रियों की बात करे तो इनमें पांच राजपूत और एक ब्राह्राण रहे हैं और अब प्रदेश के नए मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर भी राजपूत है.
2011 की जनगणना के मुताबिक हिमाचल में अपर कास्ट की जनसंख्या 50 फ़ीसदी से ज़्यादा है. इनमें राजपूत करीब 32 फ़ीसद और ब्राह्मण करीब 18 फ़ीसद हैं.
वहीं अनुसूचित जाति करीब 25, ओबीसी 14 और अनुसूचित जाति की जनसंख्या करीब 6 फ़ीसदी थी. हिमाचल की 68 विधानसभा में से 20 सीटे रिजर्व है, इनमें में 17 अनुसूचित जाति और 3 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है.
2017 के इऩ चुनावों में सबसे रोचक पहलू ये रहा कि 48 सामान्य सीटों में से 33 विधायक राजपूत चुन कर आए.
इनमें भाजपा के 18, कांग्रेस के 12, आजाद 2, और एक विधायक सीपीआईएम के हैं. ऐसा शायद पहली बार हुआ होगा जब राजपूत विधायकों की संख्या करीब 50 फीसदी है और प्रदेश कैबिनेट में मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर सहित छह राजपूत मंत्री हैं.
अगर प्रदेश की दोनों पार्टियां के मौजूदा अध्यक्षों मे की बात करें, तो भाजपा के सतपाल सती और कांग्रेस के सुखविंद्र सुक्खू भी राजपूत सुमदाय से हैं.
युवा और जातीय समीकरण का रखा खास ध्यान
हिमाचल प्रदेश सरकार का ये शायद ये पहला ऐसा मंत्रीमडंल होगा जिसमें करीब आधी कैबिनेट यंग है. इन विधायकों की उम्र करीब 40 से 55 के बीच है इसके अलावा दोनों दलों से काफ़ी युवा चेहरे विधानसभा चुन कर पहुंचे हैं.
भाजपा ने जहां 2019 के लोकसभा चुनावों को ज़ेहन में रख-कर युवा नेताओं पर भरोसा किया है वहीं जातीय समीकरण को नज़र में रखते हुए दलित, ओबीसी और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को मंत्रीमंडल में जगह दी है.
वरिष्ठ पत्रकार अर्चना फुल्ल का कहना है, "पहली बार मंत्री बने छह नए विधायकों में से पांच का युवा होना इस बात का भी संकेत है कि भाजपा एक युवा और नई टीम बनाना चाहती है."
उनका मानना है कि प्रदेश की राजनीति में पिछले कई सालों से एक राजनीतिक चक्र बन गया था जिसमें सत्ता का केंद्र- कांग्रेस के वीरभद्र सिंह और बीजेपी के प्रेम कुमार धूमल के इर्द-गिर्द रहती थी.
वो कहती हैं, "भाजपा के अपने ताज़ा कदम से इस प्रक्रिया को तोड़ दिया है. और पहली बार ओल्ड हिमाचल से कोई मुख्यमंत्री बना है, जो एक रीजनल शिफ्ट भी है."
नई सरकार और बड़ी चुनौतियां
हिमाचल सरकार इस समय करीब 40 से 45 हजार करोड़ के कर्ज़ में है. इसके अलावा लाखों बेरोजगारों की लंबी फौज और पिछले कुछ साल में बिगड़ी क़ानून व्यवस्था, एक बड़ी चुनौती है.
प्रदेश के नए मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर मानते है कि ये एक कठिन राह ज़रूर है. लेकिन उन्हें पूरी उम्मीद है कि केन्द्र में भाजपा सरकार होने का उन्हें भरपूर फ़ायदा मिलेगा और वो अपनी नई सोच और विज़न से चुनौतियों को पार कर लेगें.
शपथ लेने के तुरंत बाद हुई पहली कैबिनेट मीटिंग में इसका कुछ असर भी दिखा. मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने इस मीटिंग में पिछली सरकार के कुछ ही महीने पहले लिए गए कुछ फ़ैसलों को बदल दिया और तेज़ी से फ़ैसले लेने की अपनी क्षमता का परिचय दिया.
फिलहाल 9 से 12 जनवरी तक नई सरकार का पहला विधानसभा सेशन, प्रदेश के विंटर कैपिटल धर्मशाला में होगा. यहां विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और नए सदस्यों को शपथ दिलाई जाएगी.
उसके बाद ही नई सरकार के काम-काज की शैली और सरकार के बदलाव की सोच का पता चलेगा.