सोनगाछी की वेश्याओं को दुर्गा पूजा में मिली ये खास जिम्मेदारी
इस साल की दुर्गा पूजा बंगाल की सोनागाछी के सेक्स वर्कर्स के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई है। एशिया के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया की 30 महिलाएं इस बार के पंडाल में राज्य मत्स्य पालन विभाग और दरबार महिला समन्वय समिति (डीएमएससी) की मदद से शेफ बन सभी को अपने हाथों से बना लजीज व्यंजन पका कर खिलाएंगी।
शेफ और फिश प्रोसेसिंग के लिए होंगी ट्रेन
दरबार
महिला
समन्वय
समिति
प्रदेश
में
सेक्स
वर्कर्स
के
लिए
काम
करती
है।
इस
बार
समिति
मत्स्य
पालन
विभाग
के
साथ
मिलकर
करीब
30
सेक्स
वर्कर्स
को
शेफ
की
ट्रेनिंग
दिला
रही
है।
इन
वर्कर्स
को
न
केवल
शेफ
के
लिए
ट्रेन
किया
जाएगा,
बल्कि
फिश
प्रोसेसिंग
के
लिए
भी
इन्हें
ट्रेनिंग
मिलेगी।
मत्स्य
विभाग
के
प्रबंध
निदेशक
सौम्यजीत
दास
ने
कहा,
'दुर्गा
पूजा
में
हमारे
कोलकाता
और
बंगलुरु
में
करीब
आठ
स्टॉल्स
लगते
हैं।
अधिकतर
कुक
बंगलुरु
में
हैं
जिसके
कारण
यहां
शेफ
की
कमी
हो
गई
है।
हमनें
शेफ
के
लिए
दरबार
से
बात
की
थी
और
वो
हमें
मैनपॉवर
देने
के
लिए
तैयार
हैं।
पूजा
के
दौरान
लगे
पंडाल
में
ये
वर्कर्स
खाना
बनाएंगे।'
इस
फैसले
का
स्वागत
सबसे
ज्यादा
उन
महिलाओं
ने
किया
जो
सेक्स
वर्कर
की
जिंदगी
छोड़ना
चाहती
हैं।
खास होती है वेश्या के घर के बाहर की मिट्टी
इस बार दुर्गा पूजा में वेश्याआएं सीधे तौर पर शामिल हो सकेंगी। इससे पहले वो पूजा का अहम हिस्सा होकर भी अहम नहीं थीं। मां की मूर्ति और वेश्याओं के बारे में एक और बड़ी रोचक बात है। मां की मूर्ति जिस मिट्टी से बनती है उसमें एक हिस्सा वेश्या के घर के बाहर से लाया जाता है। ये बंगाल की पुरानी परंपरा है जिसमें मूर्ति बनाने वाला खुद वेश्या के घर जाकर इस मिट्टी की भीख मांगता है। क्या आपको मालूम है कि वेश्या के घर के बाहर की मिट्टी इतनी खास क्यों होती है। कहते हैं कि जो भी शख्स वेश्या के घर में प्रवेश करता है वो अपना सारी पवित्रता और गुण को वहां छोड़ जाता है जो इस मिट्टी को और पाक बना देती है।
वेश्याओं का आशीर्वाद है जरूरी!
इसका एक कारण ये भी कहा जाता है कि मां दुर्गा उन भक्तों से नाराज हो जाती हैं जो वेश्याओं का आशीर्वाद नहीं लेते। ये भी कहा जाता है कि दुर्गा वेश्या के रूप में समाज से काम और वासना को मिटाती है।