SC Demonetization पर सुनवाई के दौरान केंद्र से असंतुष्ट, जवाब के लिए टाइम मांगने पर कहा- शर्मनाक स्थिति
Demonetisation केस में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केंद्र के रवैये पर नाराजगी प्रकट की। पीठ ने समय की मांग को शर्मनाक करार दिया। SC Demonetisation constitution bench says Embarrassing as Centre seeks time
SC Demonetization मामले पर सुनवाई के दौरान केंद्र से असंतुष्ट और नाराज दिखा। जवाब दाखिल करने के लिए और टाइम मांगने पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि ये शर्मनाक स्थिति है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि संविधान पीठ बिना सुनवाई के मामले में अगली तारीख मुकर्रर कर दे। चिदंबरम ने भी सरकार के रवैये को शर्मनाक कहा।
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समय मांगने के पीछे क्या दलील
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी केस की सुनवाई के दौरान बुधवार को केंद्र ने अदालत से कहा कि 'हलफनामा दाखिल करने के लिए समय चाहिए।' अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने अदालत से कहा कि केंद्र को हलफनामा दाखिल करने के लिए और समय चाहिए, 'ताकि हम और बेहतर तरीके से आगे बढ़ सकें।'
संविधान पीठ के जस्टिस ने क्या कहा ?
दलीलों के बाद संविधान पीठ में न्यायमूर्ति नज़ीर ने कहा कि सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया गया था। जस्टिस नजीर ने साफ किया "जो समय आपको दिया गया, उसे कम या अपर्याप्त समय नहीं कहा जा सकता।"
संविधान पीठ इस तरह स्थगित नहीं होती
बुधवार को पांच जजों की जिस संविधान पीठ में नोटबंदी मामले की सुनवाई होनी थी, इसमें जस्टिस एस. अब्दुल नजीर, जस्टिस बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामसुब्रमण्यम, और बी.वी. नागरत्ना शामिल रहे। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने स्थगन अनुरोध पर असंतोष जताते हुए कहा, "आम तौर पर, एक संविधान पीठ इस तरह कभी स्थगित नहीं होती है। हम एक बार शुरू करने के बाद कभी भी इस तरह नहीं उठते हैं। यह इस अदालत के लिए बहुत शर्मनाक है।"
24-25 नवंबर को भी सुनवाई
विपक्षी पार्टी की ओर से पैरवी करने वाले पी चिदंबरम से भी विचार पूछा गया। उन्होंने पीठ से कहा, "यह एक शर्मनाक स्थिति है। मैं इसे इस अदालत के विवेक पर छोड़ता हूं।" विचार-विमर्श के बाद बेंच ने कहा कि इस मामले में 24 नवंबर को सुनवाई की जाएगी। जस्टिस नजीर ने सख्ती दिखाते हुए कहा, "हम इस केस को 24 तारीख को लिस्ट कर रहे हैं। भले ही 25 तारीख को मिस्लेनियस केस की सुनवाई का दिन है, लेकिन संविधान पीठ उस दिन भी नोटबंदी मामले की सुनवाई जारी रखेगी। ये कोर्ट के लिए मिस्लेनियस केस की सुनवाई के दिन नहीं होंगे।
देरी के लिए खेद प्रकट किया
बुधवार को, अटॉर्नी-जनरल ने बेंच से अनुरोध किया कि वह हलफनामे को अंतिम रूप देने के लिए एक और सप्ताह का समय दें। देरी के लिए माफी मांगते हुए उन्होंने कहा, हम हलफनामा तैयार नहीं करा सके। हमें लगभग एक सप्ताह के समय... बहुत ही कम समय की जरूरत है। हलफनामा हम सभी के लिए कुछ बेहतर और व्यापक तरीके से आगे बढ़ने में उपयोगी होगा। अन्यथा, कार्रवाई का रास्ता अनियंत्रित हो सकता है। उन्होंने कहा, बुधवार या गुरुवार तक हलफनामा प्रस्तुत करूंगा... मुझे देरी के लिए गहरा खेद है।
इस तरह का अनुरोध असामान्य
अटॉर्नी जनरल की बात के बाद वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा, इस तरह का स्थगन अदालत की स्थापित प्रथा के खिलाफ जाएगा। उन्होंने कहा, जहां तक मुझे पता है, इस न्यायालय की प्रथा है कि जब एक संविधान पीठ बैठती है तो मामलों को स्थगित करने की अपील नहीं की जाती। हर कोई इसके बारे में जानता है। संविधान पीठ सर्वोच्च प्राथमिकता है। इसलिए, इस तरह का अनुरोध असामान्य है। मैं अजीब स्थिति में हूं। मुझे नहीं पता कि कैसे प्रतिक्रिया दूं।
अटॉर्नी जरनल की बात का जवाब
वरिष्ठ अधिवक्ता दीवान ने अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क पेश किए जाने की अनुमति दी जाए। उन्होंने कहा, ये पुराने मामले हैं, तथ्य निर्विवाद हैं। सबमिशन के बाद उचित संतुलन तय हो सकता है। वे अपना सप्ताह ले सकते हैं और जवाब दे सकते हैं। वे जो भी स्टैंड लेना चाहते हैं उन्हें लेने दें। हम उनके हलफनामे के जवाब में एक ही तर्क पर जोर नहीं देंगे।
गंभीर समस्याओं के कारण टाइम मांगा
अटॉर्नी-जनरल ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि दीवान का "इस तरह का सबमिशन" ठीक नहीं। उन्होंने स्वीकार किया, हम सभी जानते हैं कि हम संविधान पीठ के समक्ष इस तरह का (टाइम मांगने) अनुरोध नहीं करते, लेकिन कुछ समस्याएं गंभीर हैं। मुझे अदालत के सवालों का जवाब देने के लिए पर्याप्त तैयारी चाहिए। इसलिए, मैंने समय दिए जाने का अनुरोध किया है।
रिजर्व बैंक के वकील ने क्या कहा ?
इस मामले में रिजर्व बैंक भी एक पार्टी है। RBI की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने भी दीवान के इस तर्क से असहमति जताई कि मामलों में तथ्य निर्विवाद और ज्ञात हैं। गुप्ता ने कहा, 6 नवंबर को एक और हलफनामा दायर किया गया जिसमें गलत तथ्य हैं। इसलिए, सभी तथ्य स्वीकार किए गए हैं, ऐसा कहना सही नहीं है। उन्होंने कहा, हम आरोपों का जवाब देने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। यह बहुत बड़ा मामला है और पहले दिन जिन आधारों पर बहस हुई उनमें से अधिकांश इस अदालत के समक्ष किसी भी दलील का हिस्सा नहीं रहे। इसके बावजूद, हमने उन सभी मामलों की एक सूची बनाई है जो पहले रखे गए हैं। अदालत और RBI इनसे व्यापक रूप से निपट रही है।
क्या है 6 साल पुराना केस
बता दें कि केंद्र सरकार ने 2016 में विमुद्रीकरण यानी नोटबंदी का फैसला लिया था। इस केस में 8 नवंबर, 2016 को पारित सर्कुलर को चुनौती दी गई है। नोटबंदी के छह साल बाद संविधान पीठ इस मामले में सुनवाई कर रही है। नोटबंदी के कारण भारत में 86 प्रतिशत पुराने बैंक नोट अमान्य हो गए थे। बता दें कि विगत 13 अक्टूबर को कोर्ट ने शीर्ष अदालत के 6 साल पुराने फैसले की समीक्षा करने पर सहमति व्यक्त की थी।