कांग्रेस अध्यक्ष के तौर राहुल गांधी ने पूरा किया एक साल, उनके खाते में आई ये उपलब्धियां
नई दिल्ली। राहुल गांधी ने रविवार को कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर एक साल पूरा कर लिया। अध्यक्ष के तौर पर साल का अंत राहुल गांधी ने एक धमाकेदार जीत के साथ किया। हाल ही में राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने अपनी प्रतिद्वद्धि बीजेपी को तीन राज्यों में पटखनी दी है। अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी की पहली सालगिरह ऐसे समय पर आई है जब उनकी पार्टी के तीन मुख्यमंत्री शपथ लेने जा रहे हैं। राहुल गांधी ने अध्यक्ष के तौर एक साल पूरा होने पर ट्विटर पर एक संदेश लिखकर सबको धन्यवाद दिया है। राहुल गांधी ने ट्वीट कर लिखा कि, कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पदभार संभालने की पहली सालगिरह पर, मैं एक मजबूत, एकजुट और जीवंत कांग्रेस पार्टी बनाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराता हूं। मैं आज अभिवादन और संदेशों से अभिभूत हूं और आपके स्नेह और समर्थन के लिए आप सभी को धन्यवाद देता हूं।
पहली जीत का स्वाद राजस्थान में चखा
बता दें पिछले साल वह पार्टी के अध्यक्ष के रूप में निर्विरोध निर्वाचित हुए थे, वह अपनी मां और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के उत्तराधिकारी बने। 48 वर्षीय राहुल गांधी-नेहरू परिवार से देश की सबसे पुरानी पार्टी का नेतृत्व करने वाले पांचवें व्यक्ति हैं। उनके नेतृत्व में, कांग्रेस ने जनवरी 2018 में पहली जीत दर्ज की, जब पार्टी ने अलवर और अजमेर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के उप-चुनाव जीते थे। जिन पर सत्तारूढ़ बीजेपी का कब्जा था।
कर्नाटक में मिली पहली बड़ी जीत
हालांकि, उन्हें मेघालय विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। जहां कांग्रेस और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी की गठबंधन सरकार को राष्ट्रीय पीपुल्स पार्टी की अगुवाई वाली सरकार सत्ता से बेदखल कर दिया। कांग्रेस ने अपनी पहली सबसे बड़ी जीत मई में कर्नाटक में दर्ज की। हालांकि पार्टी यहां चुनाव हार गई लेकिन कांग्रेस जेडीएस के साथ गठबंधन कर सत्ता में वापसी करने में सफल रही। यह बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ। क्योंकि राज्य में बीजेपी को सबसे अधिक सीटें मिली थी लेकिन वह बहुमत हासिल नहीं कर सकी।
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पार्टी को अल्पसंख्यक पक्ष वाली छवि से छुटकारा दिलाया
राहुल गांधी ने ना केवल राजनीतिक बदलावों पर काम किया है बल्कि उन्होंने अपनी पार्टी की छवि को बदलने की दिशा में कड़ी मेहनत की है। उन्होंने एक मंदिर से दूसरे मंदिर में जाकर पार्टी को अल्पसंख्यक पक्ष वाली छवि से कुछ हद तक छुटकारा दिलाया है। चुनावों में उन्होंने खुद को भगवान शिव के भक्त के रूप में पेश किया और कैलाश मानसरोवर यात्रा की। आने वाले समय में उनकी राजनीतिक समझ गैर-बीजेपी दलों के गठबंधन बनाने की उनकी क्षमता के आधार पर आंकी जाएगी।
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