लोकसभा चुनाव 2019 : सोलापुर लोकसभा सीट के बारे में जानिए
नई दिल्ली: महाराष्ट्र की सोलापुर लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद भाजपा के शरद बंसोदे हैं। उन्होंने साल 2014 के चुनाव में इस सीट पर पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को 149,674 वोटों से हराया था। शरद बंसोदे को 517,879 वोट मिले थे तो वहीं सुशील कुमार शिंदे को 368, 205 वोटों पर संतोष करना पड़ा था। शिंदे को पहली बार इतनी करारी शिकस्त मिली थी, जो कि उनके और उनकी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका थी।
सोलापुर संसदीय सीट का इतिहास
सोलापुर संसदीय सीट के अंतर्गत विधानसभा की 6 सीटें आती हैं। पश्चिमी महाराष्ट्र की सोलापुर लोकसभा सीट कांग्रेस के लिए देश की सबसे सुरक्षित सीटों में से एक मानी जाती रही है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि 1951 में इस सीट से PWP की जीत के बाद 1957 से 1991 तक के लगातार 9 आम चुनावों में कांग्रेस ही यहां जीती। 1996 में बीजेपी के बाद 1998, 1999 में कांग्रेस यहां से विजयी हुई। 2003 उपचुनाव और 2004 संसदीय चुनाव में बीजेपी को यहां सफलता मिली लेकिन साल 2009 में यह सीट फिर कांग्रेस के खाते में चली गई। सोलापुर केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे का क्षेत्र कहा जाता है। वह यहां से 1998, 1999, 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते और साल 2014 में भी उन्होंने यहां पर दावेदारी पेश की लेकिन वो सफल नहीं हो पाए और भाजपा के शरद बंसोदे ने उन्हें करारी शिकस्त दे दी।
सोलापुर, परिचय-प्रमुख बातें-
सोलापुर जिला मध्य रेलवे के 5 डिवीजनों में से एक है, यह राज्य के दक्षिण पूर्व किनारे पर स्थित है और पूरी तरह से भीमा और सीना घाटी में स्थित है, यह जिला महाराष्ट्र के भारतीय सिगरेट बीड़ी के उत्पादन में विशेष रूप से जाना जाता है। यहां की जनसंख्या 20,18,949 है, जिसमें से 60 प्रतिशत लोग ग्रामीण और 39 प्रतिशत लोग शहरी हैं, यहां 14 प्रतिशत आबादी SC और 2 प्रतिशत आबादी ST वर्ग की है। यह सीट SC के लिए आरक्षित है। साल 2014 के चुनाव में यहां पर कुल मतदाताओं की संख्या 17,02,755 थी जिसमें से मात्र 9,51,201 लोगों ने अपने मतों का प्रयोग यहां पर किया था, जिनमें पुरुषों की संख्या 5,27,346 और महिलाओं की 4,23,855 थी।
माना जाता है कि दलित लॉबी जिसके साथ रहती है, वही जीत का परचम लहराता है। चुनाव में दलित लिंगायत मराठा और मुस्लिम समाज के वोट निर्णायक होते हैं। हालांकि मुख्य लड़ाई दलित और मराठों के बीच ही होती रही है, लेकिन वर्ष 2009 से आरक्षित सीट होने के कारण अब यहां दलित बनाम दलित मुकाबला हो गया है, जिसका फायदा मोदी लहर में भाजपा के शरद बंसोदे को मिला और वो यहां विजयी हुए, यही नहीं साल 2014 के चुनाव में यहां विकास के नाम पर मतदान हुआ क्योंकि इस सीट पर अधिकतर कांग्रेस का कब्जा रहा और इसके बाद भी यहां के लोगों को उसका पूरा लाभ नहीं मिला, यह क्षेत्र आज भी विकास से वंचित है, यहां बीड़ी और कपड़ा कामगार बड़ी संख्या में है, लोगों के पास खेती है, लेकिन व्यवसाय नहीं है, जिसे मुद्दा बनाकर भाजपा पिछले चुनाव के रण में उतरी थी और उसने शिंदे जैसे कद्दावर नेता को यहां हराकर इस सीट पर अधिकार कर लिया लेकिन ये ही मु्द्दे ही इस बार उसकी वापसी यहां पर तय करेंगे। देखते हैं इस बार यहां की जनता किसे सोलापुर की सत्ता सौंपती हैं, कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इस सीट पर मुकाबला काफी जबरदस्त होगा।
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