जानिए, भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद से प्रियंका की मुलाकात के क्या हैं सियासी मायने?
नई दिल्ली- कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश के चुनावों की जिम्मेदारी सौंपी है। लेकिन, कांग्रेस अध्यक्ष की बहन पश्चिमी यूपी में भी पार्टी के लिए वोटों की जुगत में लग चुकी हैं। एक दिन पहले यूपी में दलितों की सबसे बड़ी नेता मानी जाने वाली मायावती ने कांग्रेस से तालमेल की सभी संभावनाओं को ठुकरा दिया था। दूसरे दिन वो यूपी में दलितों के एक चर्चित युवा नेता भीम आर्मी (BHIM ARMY)के चीफ चंद्रशेखर आजाद से मिलने मेरठ के एक अस्पताल में पहुंच गईं। हालांकि, दोनों नेताओं ने अचानक हुई इस मुलाकात को सियासी चश्में से देखने से मना किया है,लेकिन मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में इसके सिर्फ और सिर्फ सियासी मायने ही निकाले जा सकते हैं।
दोनों के विरोधी एक हैं
आज की तारीख में कांग्रेस और भीम आर्मी (BHIM ARMY) का राजनीतिक दुश्मन सिर्फ बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। यह भी दिलचस्प है कि प्रियंका गांधी से अस्पताल में हुई मुलाकात के तुरंत बाद भीम आर्मी (BHIM ARMY) चीफ चंद्रशेखर आजाद ने वाराणसी से खुद नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने की बात भी कह डाली। एनडीटीवी की खबर के मुताबिक भीम आर्मी (BHIM ARMY)चीफ ने कहा है कि पहले वो अपने संगठन से मोदी के खिलाफ कोई मजबूत प्रत्याशी खोजेंगे, लेकिन नहीं मिला तो खुद ही मोर्चा संभाल लेंगे। उन्होंने यहां तक कहा कि वो किसी भी सूरत में मोदी को आसानी से जीतने नहीं देंगे। अब अगर प्रियंका कहें कि उनके बीच मुलाकात में राजनीति नहीं खोजनी चाहिए, तो इसपर भरोसा करना बहुत मुश्किल है।
कांग्रेस की रणनीति
दरअसल, हाल के समय में कांग्रेस की सियासी रणनीति पूरी तरह बदल चुकी है। वो दलितों और पिछड़ों को पार्टी के साथ ज्यादा से ज्यादा जोड़ने की कोशिशों में जुटी हुई है। गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान उसने जिग्नेश मेवाणी को अपने खेमे में किया था, तो मंगलवार को पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को भी शामिल करा चुकी है। उसे यूपी में भी दलित वोट चाहिए। मायावती एक दिन पहले ही उसे रेड सिंग्नल दिखा चुकी हैं। लोकप्रियता के लिहाज से इस वक्त यूपी के दलित युवाओं में भीम आर्मी (BHIM ARMY)चीफ का क्रेज बहुत बढ़ा हुआ है। यूपी में उन पर जब भी कार्रवाई होती है, दलितों में उनके प्रति सहानुभूति बढ़ती चली जाती है। ऐसे में उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में कांग्रेस के लिए भीम आर्मी से बेहतर बीएसपी का विकल्प क्या हो सकता है,जिसने बीजेपी सरकार के दौरान पश्चिमी यूपी में अपना अच्छा-खासा जनाधार तैयार कर लिया है।
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भीम आर्मी (BHIM ARMY) चीफ की रणनीति
दूसरी तरफ भीम आर्मी (BHIM ARMY)के चीफ चंद्रशेखर आजाद खुद को बीएसपी सुप्रीमो मायावती के राजनीतिक वारिश के रूप में पेश करने की तैयारियों में जुटे रहे हैं। सियासी तौर पर माया उनसे दूरी बनाकर रखना चाहती हैं। क्योंकि, उन्हें डर है कि युवाओं में भीम आर्मी (BHIM ARMY) चीफ के क्रेज के कारण बीएसपी का जनाधार चंद्रशेखर आजाद की ओर शिफ्ट हो सकता है। लेकिन, आदाज की रणनीति ये है कि वो न केवल मायावती को हमेशा दलितों की मसीहा के तौर पर पेश करते रहे हैं, बल्कि उन्हें पूरा सम्मान भी देते हैं। चुनावों में भी उन्होंने बीएसपी उम्मीदवारों के समर्थन करने की घोषणा की हुई है। लेकिन, विशुद्ध दलित नेता के रूप में अपनी छवि बनाने के लिए वो समाजवादी पार्टी से उतनी दूरी भी बनाकर रखते हैं। आज जब यूपी में एसपी-बीएसपी का गठबंधन है, फिर भी वो बीएसपी को तो सपोर्ट करते हैं, लेकिन एसपी से प्रमोशन में एससी-एसटी आरक्षण की गारंटी चाहते हैं।
छवि बदलने का खेल
दलितों के मसीहा के रूप में उभरने की भीम आर्मी (BHIM ARMY)चीफ की रणनीति कांशीराम और मायावती से अलग है। वो खुद को दलितों की परंपरागत छवि से बाहर निकालने पर जोर देते हैं। मसलन, बड़ी-बड़ी मूंछें रखना और बुलेट की सवारी करना उनकी पसंद है। उनकी यही शख्सियत उन्हें दलित युवाओं का मसीहा बना चुका है। प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अपनी दावेदारी की बात भी उनकी इसी रणनीति का हिस्सा है। जाहिर है कि अगर उन्होंने वाराणसी से चुनाव लड़ा तो उनकी चर्चा और भी जोर-शोर से होगी। यूपी के बाहर भी वे एक स्मार्ट दलित नेता के तौर पर उभरने लगेंगे, जो भविष्य में उन्हें मायावती की सियासी विरासत को अपने पक्ष में करने में सहायता करेगा।
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