क्या यूपी में कांग्रेस ने चुनाव से पहले ही हथियार डाल दिए हैं?
नई दिल्ली- उत्तर प्रदेश 80 सांसदों को चुनकर लोकसभा में भेजता है। देश की सत्ता पर काबिज होने की इच्छा रखने वाली कोई भी पार्टी 80 सांसद भेजने वाले राज्य में चुनाव को हल्के में नहीं ले सकती है। कांग्रेस भी दशकों तक केंद्र की सरकार चलाती रही तो वह भी यूपी के भरोसे ही संभव होता था। लेकिन, इस बार कांग्रेस की रणनीति थोड़ी बदली हुई है। एक के बाद एक कई ऐसे संकेत मिल रहे हैं, जिससे लगता कि कांग्रेस को 2019 में यहां से ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं। ऐसे में प्रियंका का कार्यकर्ताओं से इस चुनाव की जगह अगले चुनाव की तैयारियों के बारे में पूछना संकेतों को और भी स्पष्ट कर देता है। ऐसे में सवाल उठना जायज है कि क्या कांग्रेस ने यूपी में चुनाव शुरू होने से पहले ही हथियार डाल दिए हैं?
2019 नहीं, 2022 के चुनाव पर कांग्रेस की नजर
इस साल 23 जनवरी को जब राहुल गांधी अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को सक्रिय राजनीति में लेकर आए तो ऐसा लगा कि वो राज्य में कांग्रेस को फिर से जिंदा करने के लिए गंभीर हैं। उन्होंने प्रियंका को पूर्वी यूपी का प्रभारी महासचिव बनाकर साफ कर दिया कि वो इस चुनाव में पहली बार अमेठी और रायबरेली से बाहर निकलकर पूर्वांचल के बाकी इलाकों में भी पार्टी के संगठन में जान फूंकने की कोशिश करेंगी। अपनी बहन के साथ-साथ वे मध्य प्रदेश के एक और युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी यूपी में लेकर आए और उनको पश्चिमी यूपी के कार्यकर्ताओं में जोश भरने की जिम्मेदारी सौंपी। लेकिन, अब अगर प्रियंका कह रही हैं कि वो तो इस चुनाव की तैयारी कर ही नहीं रही हैं, तो पार्टी की चुनावी गंभीरता को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है। दरअसल, बुधवार को उन्होंने कार्यकर्ताओं से जो कुछ कहा उससे राजनीतिक विश्लेषकों के कान खड़े हो गए हैं। प्रियंका ने कार्यकर्ताओं से पूछा था कि "तैयारी कर रहे हो आप चुनाव की? इस वाले (लोकसभा चुनाव 2022) की नहीं, 2022 के लिए? कर रहे हो?" चौंकाने वाली बात तो ये है कि प्रियंका ये सवाल अमेठी के गौरीगंज में पूछ रही थीं, जहां से उनके भैया चुनाव लड़ रहे हैं और उनकी पार्टी उन्हें यहीं के भरोसे प्रधानमंत्री बनाने का सपना संजोए है।
राहलु गांधी भी दे चुके हैं ऐसे ही संकेत
प्रियंका ने अब जो बात कही है उनके भाई ने उनकी राजनीति में सार्वजनिक एंट्री वाले दिन ही इस बात के संकेत दे दिए थे। तब कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा था कि 'मैंने प्रियंका को जनरल सेक्रेटरी बना दिया है यूपी का, मतलब अब यहां पर कांग्रेस अपना सीएम बैठाने का काम करेगी। दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के गठबंधन की सरकार और यूपी में पूरे दम से कांग्रेस पार्टी लड़ेगी।' मतलब साफ है कि राहुल गांधी अगर 2019 में किसी तरह की जोड़-तोड़ से प्रधानमंत्री बनने का सपना देख भी रहे हों, तो भी उनको इस बार यूपी से कोई ज्यादा उम्मीदें नहीं है। इस बात में इसलिए भी दम है, क्योंकि अगर 2019 में यूपी को लेकर कांग्रेस के पास कोई मास्टर प्लान होता तो प्रियंका के चेहरे को जनवरी में सार्वजनिक नहीं किया जाता, बल्कि यह काम काफी पहले ही हो जाना चाहिए था। मतलब साफ है कि वो इस चुनावी मौसम से ही मेहनत में जुट तो गई हैं, लेकिन उनका पहला लक्ष्य 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव है। ये बात तब और पुख्ता हो जाती है कि अब प्रियंका खुद चुनाव लड़ने के संकेत में देने लगी हैं। अलबत्ता उन्होंने ये कहकर परिवार की रणनीति को सार्वजनिक करने से फिलहाल जरूर टाल दिया है कि उनके चुनाव लड़ने का फैसला पार्टी करेगी।
तो इसलिए गठबंधन से बनाई दूरी!
इस बात के काफी संकेत मिल चुके हैं कि यूपी में महागठबंधन में शामिल होने के लिए कांग्रेस ने इस बार कभी गंभीर प्रयास नहीं किए। वो अपने दम पर अकेले चुनाव लड़ने की नीति पर ही आगे बढ़ती रही। क्योंकि उसे पता था कि महागठबंधन में अपने लिए सम्मानजनक सीटें हासिल करना असंभव था। राहुल के दोस्त और समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव कांग्रेस से गठबंधन के इच्छुक जरूर थे। वे चाहते तो बुआ को इसके लिए मना भी सकते थे। लेकिन, कांग्रेस ने सभी सीटों पर चुनाव लड़कर ही अपना खोया वजूद वापस पाने का रास्ता चुनना ही मुनासिब समझा। क्योंकि, जब वह बड़ी पार्टी रहकर भी कर्नाटक में गठबंधन सरकार के लिए जेडीएस के सामने घुटने टेक सकती है, तो यूपी में 10-15 सीटों पर लड़कर कुछ सीटों पर जीत पक्की क्यों नहीं कर सकती थी? कर्नाटक के अलावा वो महाराष्ट्र में भी एनसीपी के साथ गठबंधन में ही चुनाव लड़ रही है।
2022 से निकलेगा 2024 का रास्ता!
कुल मिलाकर कांग्रेस के रवैये से जो बात निकलकर आ रही है, उससे यही लगता है कि दरअसल वो 2024 के जंग की तैयारी कर रही है। इसके लिए वो 2022 तक यूपी में अपनी पुरानी ताकत वापस पा लेना चाहती है। उसे लगता है अगर देश के सबसे बड़े राज्य में उसकी अपनी सरकार बन गई तो केंद्र में अपने दम पर सरकार बनाना भी मुमकिन हो सकता है। जहां तक 2019 के लोकसभा चुनाव की बात है, तो पार्टी जानती है कि अगर गांधी-नेहरू परिवार के वारिश के रूप में राहुल को एंटी-मोदी गठबंधन सरकार की कमान मिल भी जाती है, तो उनके लिए वह सरकार चलाना कोई केकवॉक नहीं रहने वाला। इसलिए पार्टी 2024 या उससे पहले ही कांग्रेस की अपने दम पर सरकार बनाने की कोशिशों में जुट चुकी है, जिसका रास्ता वो यूपी से बनाना चाहती है।
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