महाराष्ट्र का सियासी ड्रामा: अब आगे क्या
महाराष्ट्र में लगातार राजनीतिक स्थितियां बदल रही हैं.
तीन दिन पहले शिव सेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की सरकार बनती दिख रही थी लेकिन अचानक शनिवार सुबह बीजेपी से देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और एनसीपी से अजित पवार ने उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. बीजेपी और अजित पवार ने ज़रूरी संख्या में विधायकों के समर्थन का दावा किया.
महाराष्ट्र में लगातार राजनीतिक स्थितियां बदल रही हैं.
तीन दिन पहले शिव सेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की सरकार बनती दिख रही थी लेकिन अचानक शनिवार सुबह बीजेपी से देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और एनसीपी से अजित पवार ने उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली.
बीजेपी और अजित पवार ने ज़रूरी संख्या में विधायकों के समर्थन का दावा किया.
लेकिन, जैसे-जैसे दिन बीता वैसे-वैसे परिस्थितियों और बदलीं, जो बहुमत बीजेपी की मुठ्ठी में लग रहा था उसके दरकने की संभावनाएं बनने लगीं.
एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने दावा किया कि अजित पवार के पास दो तिहाई विधायकों का समर्थन नहीं है ऐसे में बीजेपी बहुमत साबित नहीं कर पाएगी.
रविवार को एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक ने कहा था कि उनके साथ 50 विधायक मौजूद हैं, बाक़ी के चार विधायकों से भी संपर्क हो रहा है, उन्हें बीजेपी के लोगों ने कहीं रखा है लेकिन वे लौट आएंगे.
- क्या अजित पवार ने शरद पवार की पार्टी को तोड़ दिया?
- दल-बदल क़ानून क्या है, जिसकी पवार दे रहे हैं दुहाई
वहीं, शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं और उन्होंने रातोरात देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के राज्यपाल को फ़ैसले को मनमाना और ग़लत बताया है. साथ ही पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट से उसी दिन बहुमत साबित करने का आदेश देने की मांग की है.
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की ओर से सरकार बनाने का न्योता देने समेत विधायकों के समर्थन की चिट्ठी कोर्ट में देने का आदेश दिया है. अब इस मामले पर सोमवार को सुनवाई होगी.
उधर कांग्रेस, शिव सेना और एनसीपी अपने विधायकों को बचाने की कोशिश में जुटी हैं और उन्हें अलग-अलग होटल में ठहराया गया है.
अजित पवार ने ट्वीट करके भाजपा नेताओं की शुभकामनाएं स्वीकारी हैं और कहा है कि वो एनसीपी में हैं और एनसीपी में ही रहेंगे और शरद पवार ही उनके नेता हैं. उन्होंने ये इशारा किया कि उनके फ़ैसले में शरद पवार की भी सहमति थी. शरद पवार ने इसे ख़ारिज़ करते हुए अजित पवार के बयान को झूठा और भ्रामक बताया है.
There is no question of forming an alliance with @BJP4Maharashtra.
— Sharad Pawar (@PawarSpeaks) November 24, 2019
NCP has unanimously decided to ally with @ShivSena & @INCMaharashtra to form the government. Shri Ajit Pawar’s statement is false and misleading in order to create confusion and false perception among the people.
आगे क्या होगा, इसमें सुप्रीम कोर्ट की भूमिका भी अब अहम हो गई है. आने वाले दिनों में क्या स्थितियां बन सकती हैं, इस पर बीबीसी संवददाता मोहम्मद शाहिद ने वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी से बात की.
नीरजा चौधरी की राय: पूरा मैदान खुला है
महाराष्ट्र में बहुत ही अजीब क़िस्सा हुआ है. लगातार इतने बदलाव हुए हैं कि आज भी स्थितियां खुली हुई हैं, आगे कुछ भी हो सकता है. शनिवार को लग रहा था कि अमित शाह ने जैसे बाज़ी मार ली है पर अब उतना निश्चित नहीं लग रहा है. संभावनाएं और भी बन गई हैं.
रविवार तक की ख़बरों के मुताबिक, शरद पवार के साथ 54 में से 50 एनसीपी विधायक हैं. इसका मतलब है कि अजित पवार साइडलाइन हो गए हैं.
लेकिन, बीजेपी चाह रही है कि विधानसभा में तुरंत ही फ्लोर टेस्ट न हो. हालात उसके पक्ष में हो सकते हैं.
आज अगर सुप्रीम कोर्ट बहुमत साबित करने को लेकर कुछ कहता भी है तो दो दिन तो ख़त्म हो ही गए, दो-तीन दिन और लग जाएंगे. तो छह-सात दिनों में ही सब कुछ साफ़ हो पाएगा.
- क्या जमीयत ने सोनिया को शिवसेना के ख़िलाफ़ पत्र लिखा है?
- महाराष्ट्र में BJP का दांव उल्टा भी पड़ सकता है?
राष्ट्रपति शासन या सरकार
बीजेपी शिव सेना और कांग्रेस दोनों के विधायकों को तोड़ना चाहेगी. वो कर पाएगी या नहीं, अजित पवार कितनों लोगों को साथ ले पाएंगे, ये अभी नहीं कहा जा सकता.
फ़िलहाल तो शरद पवार और अजित पवार दोनों ही विधायकों के समर्थन का दावा कर रहे हैं.
हालांकि, बीजेपी के पास शक्ति है, पैसा है और वो केंद्र में भी है तो उसका तो फ़ायदा होता ही है.
लेकिन, बीजेपी के लिए सिर्फ़ निर्दलीयों से बात नहीं बनने वाली. अजित पवार अगर आधी पार्टी लेकर आते हैं तभी आँकड़ा पूरा हो सकता है.
बीजेपी के पास 105 विधायक हैं और 13 निर्दलीय हैं. इसके अलावा 16 और अलग-अलग दलों के विधायक हैं, जिनमें सभी के बीजेपी के साथ आने की संभावना नहीं है. फिलहाल विधानसभा में बहुत साबित करने के लिए 144 विधायकों की ज़रूरत है.
ऐसे में अगर जल्दी बहुमत साबित करने को कहा जाता है तो ये साफ़ हो जाएगा कि सरकार बनेगी या राष्ट्रपति शासन लागू होगा.
उपचुनाव की कोशिश
दरअसल, ये मामला यहां तक भी नहीं नहीं रुकता है. बहुमत साबित हो भी गया तो फिर सवाल होगा कि विधायक दल-बदल क़ानून के तहत आते हैं या नहीं.
शिव सेना, कांग्रेस या एनसीपी से इतने विधायक आना आसान नहीं है. अगर इतने विधायक अयोग्य हो जाएंगे तो फिर राज्य उपचुनाव की तरफ़ बढ़ेगा.
बीजेपी का ये सोचना हो सकता है कि फ़िलहाल दूसरे दलों को सरकार बनाने से रोका जाए. फिर अगर उपचुनाव होते हैं तो बीजेपी को उसमें अकेले लड़ने से फ़ायदा होगा.
हालांकि, लोगों की शिव सेना और एनसीपी की तरफ़ भी सहानुभूति हो सकती है क्योंकि वो भी सरकार बनाने की पूरी कोशिश कर रहे थे.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
पिछले साल जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो बीजेपी बहुमत से सात विधायक पीछे रह गई थी.
चुनावों में एक दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ने वाली कांग्रेस और जनता दल सेकुलर ने हाथ मिलाते हुए सरकार के गठन का दावा कर दिया था.
उस वक्त राज्यपाल वजूभाई वाला ने सरकार गठन का पहला मौका बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को दिया.
शपथ ग्रहण की तारीख 17 मई, 2018 तय हुई लेकिन एक रात पहले कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
हालांकि, उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने येदियुरप्पा के शपथ दिलाए जाने पर कोई रोक तो नहीं लगाई लेकिन उन्हें बहुमत साबित करने के लिए अगले दिन शाम तक का वक़्त दिया.
तब येदियुरप्पा बहुमत साबित नहीं कर पाए थे और जेडीएस नेता एचडी कुमारास्वामी ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली थी.
महाराष्ट्र में राज्यपाल ने देवेंद्र फडणवीस को बहुमत साबित करने के लिए 30 नवंबर तक का वक़्त दिया है.
यही वजह है कि सबकी नज़रें सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र को लेकर सोमवार को होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं.