कश्मीर में पत्रकारों में दहशत, "धमकी भरी चिट्ठी के बाद ख़ौफ़ तो है ही"
भारत प्रशासित कश्मीर में कई पत्रकारों को चरमपंथियों ने ऑनलाइन धमकी दी है. इन धमकियों से पत्रकार डरे हुए हैं.
भारत प्रशासित कश्मीर में कई पत्रकारों को चरमपंथियों ने ऑनलाइन धमकी दी है. उन्होंने पत्रकारों पर आरोप लगाया है कि वे कश्मीर में सेना और पुलिस के लिए काम कर रहे हैं, ये इल्ज़ाम भी लगाया गया है कि बीजेपी जो कुछ कहती है उसे पत्रकार आगे बढ़ा रहे हैं.
इन धमकियों के बाद अब तक कम से कम पाँच पत्रकारों ने अपनी नौकरियों से इस्तीफ़ा दिया है. एक स्थानीय अंग्रेज़ी अख़बार 'राइज़िंग कश्मीर' के तीन पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर अपनी नौकरियों से इस्तीफ़ा देने की बात लिखी है.
पुलिस ने इस सिलसिले में एक एफ़आईआर श्रीनगर के शीरगरी थाने में दर्ज की है. पुलिस का कहना है, "कश्मीर में काम करने वाले पत्रकारों को ऑनलाइन धमकी देने के मामले में लश्कर-ए-तैयबा और दि रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है."
ये धमकी लिखित रूप से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्हाट्सऐप और टेलीग्राम पर अपलोड की गई है और अपलोड किए गए पोस्टर में कई पत्रकारों के नाम भी लिखे गए हैं.
पत्रकारों को दी गई धमकी "कश्मीरफाइट.कॉम" नाम के प्लेटफ़ॉर्म से दी गई है. उस धमकी भरी चिट्ठी में बारह पत्रकारों के नाम शामिल हैं जबकि एक दूसरी चिट्ठी में 11 पत्रकारों के नाम शामिल हैं.
कश्मीर में इंटरनेट पर कश्मीरफाइट.कॉम नाम की इस वेबसाइट को ब्लैक-लिस्ट किया गया है.
राइजिंग कश्मीर के एक संपादक ने अपना नाम न बताने की शर्त पर बीबीसी से इस बात की पुष्टि की कि उनके अख़बार से चार पत्रकारों और एक क्लर्क ने इन धमकियों के बाद अपनी नौकरियों से इस्तीफ़ा दिया है.
ये पूछने पर कि इन धमकियों के बाद पुलिस ने क्या क़दम उठाए हैं, तो उन्होंने बताया, "पुलिस हमारे साथ पूरा सहयोग कर रही है. पुलिस हर लिहाज से हमारा साथ दे रही है. जिन पत्रकारों को धमकी दी गई है, पुलिस ने उनको बुलाया है और उनसे कहा गया कि जो भी आपको चाहिए, हम वो देने के लिए तैयार हैं."
उनका कहना था कि ''हमें समझ नहीं आ रहा है कि हमें किस लिए निशाना बनाया जा रहा है?''
उनका ये भी कहना था कि उनके मैनेजर का नाम भी लिस्ट में लिखा गया है जिनका पत्रकारिता से कोई नाता नहीं है.
हालाँकि, उनका ये भी कहना था कि उन्होंने दो नए पत्रकारों को नौकरी दी है.
पुलिस ने सतर्क रहने की सलाह दी
एक दूसरे पत्रकार ने भी नाम न बताने की शर्त पर बताया कि धमकी भरी चिट्ठी के बाद उनके अंदर एक ख़ौफ़ पैदा हो गया है. उनका ये भी कहना था कि पुलिस ने उन्हें सतर्क रहने की सलाह दी है.
उन्होंने सवालिया अंदाज़ में पूछा कि ''जिन लोगों के नाम चिट्ठी में शामिल हैं, उनमें से एक भी पत्रकार अगर किसी सुरक्षा एजेंसी के लिए काम करता हो तो मुझे बताएँ.''
इस रिपोर्ट में पत्रकारों के नाम उनकी सुरक्षा का ख़्याल करते हुए नहीं लिखे गए हैं, कुछ पत्रकारों ने बीबीसी से बात करने से इनकार कर दिया.
श्रीनगर के एसपी राकेश बलवाल ने बीबीसी को फ़ोन पर बताया कि इन ऑनलाइन धमकियों के बाद पुलिस कुछ संदिग्धों से पूछताछ कर रही है.
उनका ये भी कहना था कि जिन पत्रकारों को धमकी दी गई है, उनकी सुरक्षा के लिए हर क़दम उठाया जा रहा है. उनका ये भी कहना था कि सुरक्षा कारणों से कई जानकारियाँ साझा नहीं की जा सकती हैं.
श्रीनगर पुलिस ने गुरुवार को एक ट्वीट करके मीडिया संगठनों से कहा है कि जिन पत्रकारों के नाम "धमकी वाली चिट्ठी" में लिखे गए हैं, उनके नामों को ज़ाहिर न किया जाए.
ऐसा पहली बार नहीं है जब पत्रकारों को चरमपंथियों ने इस तरह की धमकियां दी हों.
वर्ष 2018 में भी कश्मीरफाइट.कॉम ने कश्मीर के कई पत्रकारों को धमकी दी थी. उन धमकियों के बाद वर्ष 2018 में राइजिंग कश्मीर अंग्रेज़ी अख़बार के संपादक शुजात बुखारी की चरमपंथियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.
कश्मीर में वर्ष 1989 में चरमपंथ शुरू होने के बाद अब तक कई पत्रकारों को जान से मार दिया गया है.
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पत्रकारों के सामने कई चुनौतियां
बीते 33 वर्षों में कश्मीर के पत्रकारों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. कई बार ऐसा भी हुआ जब यहाँ काम करने वाले पत्रकारों का अपहरण भी किया गया.
कश्मीर के पत्रकारों के लिए काम करने वाली संस्था कश्मीर प्रेस क्लब (केपीसी ) को इसी वर्ष जनवरी में कई विवादों के बाद सरकार ने बंद कर दिया. ये एक अकेली संस्था थी जो पत्रकारों के लिए आवाज़ उठाती थी.
कश्मीर घाटी से इस समय अंग्रेज़ी, उर्दू और कश्मीरी भाषा में कुल 226 अख़बार छपते हैं. इनके इलावा कुछ न्यूज़ पोर्टल्स और न्यूज़ एजेंसीज़ भी काम करती हैं.
सोशल मीडिया की वजह से अख़बारों की बिक्री में काफी गिरावट आ चुकी है.
अनुछेद 370 हटाने के बाद कश्मीर में प्रेस को एक लम्बे समय तक इंटरनेट शटडाउन से जूझना पड़ा था. पत्रकारों के लिए उस समय सरकार ने एक मीडिया सेंटर बनाया था जहाँ कुछ कम्प्यूटरों पर सैकड़ों पत्रकारों को काम करना पड़ता था. वो दौर यहां के पत्रकारों के लिए एक मुश्किल भरा दौर रहा है .
अनुछेद 370 हटाए जाने के बाद कश्मीर में इंटरनेट लम्बे समय तक बंद रहा था.
इतना ही नहीं, पाँच अगस्त 2019 के बाद कश्मीर की किसी भी जगह से रिपोर्ट करना कोई आसान काम नहीं था. पत्रकारों को रिपोर्ट करने के लिए और श्रीनगर से 50 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए दर्जनों जगहों पर सुरक्षाबलों की चेकिंग और पूछताछ से गुज़रना पड़ता था.
बीते तीन वर्षों में न सिर्फ़ चरमपंथियों की तरफ़ से पत्रकारों को धमकी दी गई, बल्कि पुलिस ने भी कई पत्रकारों को उन्हें उनके काम के लिए अपने दफ्तरों में तलब किया और उनसे पूछताछ की.
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पब्लिक सेफ्टी एक्ट
पुलिस ने वर्ष 2022 में कश्मीर के दो पत्रकारों को गिरफ्तार कर उन पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) लगाया. पुलिस ने उनकी गिरफ्तारी के समय बताया था कि 'ये फेक न्यूज़ फैलाते हैं और 'देश विरोधी' कंटेंट शेयर करते हैं.'
अनुछेद 370 हटाए जाने के बाद कश्मीर से छपने वाले अख़बारों में एडिटोरियल पन्नों पर राजनैतिक ओपिनियन लेख छपने भी लगभग बंद हो चुके हैं. जानकारों का कहना है कि कई पत्रकार इस एहसास के साथ काम कर रहे हैं कि सरकार की उन पर गहरी निगाह है और कई मामलों को रिपोर्ट ही नहीं करना चाहते हैं.
हाल के दिनों में कश्मीर के दो पत्रकारों को भारत से विदेश जाने की इजाज़त नहीं दी गई.
पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता कश्मीर की महिला पत्रकार सना इरशाद को दिल्ली के एयरपोर्ट से विदेश जाने की इजाज़त नहीं मिली थी और उन्हें एयरपोर्ट से वापस कर दिया गया था.
एक दूसरे कश्मीरी पत्रकार आकाश हस्सान को भी दिल्ली के एयरपोर्ट पर रोक दिया गया था. आकाश के मुताबिक़, वो उस समय श्रीलंका रिपोर्टिंग के लिए जा रहे थे.
इसी वर्ष कई पत्रकारों के घरों पर पुलिस ने छापे भी मारे थे और उनके मोबाइल और लैपटॉप को अपने क़ब्ज़े में लिया था.
कश्मीर के कम-से-कम दो सीनियर पत्रकारों ने "धमकी भरी चिट्ठी" के मामले पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार किया.
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