पीएम मोदी को क्लीन चिट देने के मामले में एक चुनाव आयुक्त ने जताई थी असहमति: रिपोर्ट
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछले महीने महाराष्ट्र में दो रैलियां हुई थीं, इस रैली में पीएम मोदी के दिए गए संबोधन को लेकर चुनाव आयोग में शिकायत की गई थी। जिसमें चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी थी। हालांकि रिपोर्ट्स के मुताबिक, पीएम मोदी को संबोधन के लिए क्लीन चिट देने के मामले में चुनाव आयोग में ही दो राय देखने को मिली थी। पीटीआई की खबर के मुताबिक, दो चुनाव आयुक्त में से एक चुनाव आयुक्त ने इस फैसले पर अपनी असहमति जताई थी। इस पूरे मामले से जुड़े उच्च सूत्रों ने शुक्रवार को इसकी जानकारी दी है।
महाराष्ट्र की दो रैलियों में संबोधन को लेकर की गई थी शिकायत
दरअसल, पिछले तीन दिनों में चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस की ओर से की गई कई शिकायतों पर अपना फैसला दिया है। इसमें पार्टी की ओर से आचार संहिता उल्लंघन करने का आरोप भी लगाया गया था। सूत्रों के मुताबिक, एक चुनाव आयुक्त ने एक अप्रैल को वर्धा के संबोधन को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को क्लीन चिट के चुनाव आयोग के फैसले पर असहमति जताई थी। इस भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी पर अल्पसंख्यक बहुल वायनाड सीट से चुनाव लड़ने को लेकर निशाना साधा था।
इसे भी पढ़ें:- लोकसभा चुनाव 2019: वोटिंग से पहले राहुल गांधी ने अमेठी की जनता को लिखा इमोशनल पत्र
कांग्रेस की शिकायतों पर चुनाव आयोग ने दिया फैसला
यही नहीं, इसके अलावा 9 अप्रैल को महाराष्ट्र के लातूर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार वोट करने जा रहे युवाओं से बालाकोट एयर स्ट्राइक और पुलवामा में शहीद जवानों को लेकर वोट की अपील की थी। प्रधानमंत्री को लेकर की गई शिकायत में 'फुल कमिशन' ने फैसला लिया, इस टीम में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा, चुनाव आयुक्त अशोक लवासा और सुशील चंद्र शामिल थे।
'फुल कमिशन' ने पीएम मोदी को दी थी क्लीन चिट
एक अधिकारी ने बताया कि ये एक अर्द्ध-न्यायिक फैसला नहीं था इसलिए असहमति को दर्ज नहीं किया गया। इसमें विचार को मौखिक रूप से बैठक में रखा गया। चुनाव आयोग (Conditions of Service of Election Commissioners and Transaction of Business) अधिनियम, 1991 के मुताबिक, अगर किसी मामले में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की राय अलग-अलग होती है तो उस मामले में फैसला बहुमत के आधार पर होता है। हालांकि सभी चुनाव आयुक्त की आयोग के फैसलों में बराबर की हिस्सेदारी होती है।
लोकसभा चुनाव से संबंधित विस्तृत कवरेज पढ़ने के लिए क्लिक करें