'कौमी एकता दल' से विलय न होना, सपा के लिए कैसा सौदा?
लखनऊ। समाजवाद के अगुवा माने जाने वाले डॉ0 राम मनोहर लोहिया ने कहा था ''मोती को चुनने के लिए कूड़ा निगलना जरूरी नहीं है और न ही कूड़ा साफ करते वक्त मोती को फेंकना।''
मुख्तार अंसारी बोले कौमी एकता दल का सपा में विलय नहीं होगा
हालांकि खुद को उसी मार्ग पर बताने वाली समाजवादी पार्टी, बतौर आदर्श राम मनोहर लोहिया को पूजने वाले सपा के सियासतदां क्या वाकई लोहिया की नीति पर चल रहे हैं, जनता जानना चाहती है। बहरहाल सवाल ये है कि सपा के लिए कौन कूड़ा और क्या मोती ? दरअसल हम मोती का आशय सपा को होने वाले सियासी फायदे के तौर पर ले रहे हैं और कूड़े का मतलब व्यर्थ की राजनीति पर दिमाग खपाने से।
'नफा या नुकसान'
कौमी एकता दल समाजवादी पार्टी में विलय के करीबन आखिरी दौर में थी। लेकिन यह विलय न तो विपक्षी दलों को पच रहा था और न ही कौएद के मुखिया के साथ जुड़े आपराधिक रिकॉर्ड के डंके को सुनने वाली जनता को...हालांकि जनता का भला क्या दोष.... जैसा दिखाया जाएगा, उसी आधार पर यकीं करना लाजिमी है।
मुख्तार अंसारी बीजेपी एमएलए कृष्णानंद राय की हत्या के मुख्य आरोपी
और इसमें कोई दोराय भी नहीं कि मुख्तार अंसारी बीजेपी एमएलए कृष्णानंद राय की हत्या के मुख्य आरोपी रहे हैं। लेकिन प्रमुख वजह अपराध के इतर सियासत में नफा और नुकसान है। माना जा रहा है कि अगर सपा और कौएद एक हो जाते तो समाजवादी पार्टी खेमे को निश्चित तौर पर फायदा मिलता।
मुलायम भी थे फैसले के पक्ष में
इसी वजह से शिवपाल यादव कौमी एकता दल के सपा में विलय को खासा जोर देते दिखाई भी दिए हैं। जिसका समर्थन सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह के द्वारा भी किया गया। बीते कुछ दिनों पहले शिवपाल द्वारा इस्तीफे की धमकी पर मुलायम ने फ्रंट में आते हुए कहा कि शिवपाल के खिलाफ पार्टी में साजिश हो रही है।
मुलायम को कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय के मायने अच्छी तरह से पता
और अगर वे सपा छोड़कर गए तो पार्टी टूट जायेगी। दरअसल सियासत में एक अच्छा खासा अनुभव रखने वाले मुलायम को कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय के मायने अच्छी तरह से पता थे।
सेंधमारी से आगे बढ़ रही भाजपा बन सकती है बड़ा 'खतरा'
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों को देखते हुए सभी दल अपने अपने हिसाब से पुरजोर तैयारियां करने में जुटे हुए हैं। लेकिन सत्तारूढ़ होने की वजह से समाजवादी पार्टी को इसका फायदा मिल सकता है। जिसका जिक्र मीडिया के सर्वे भी कर चुके हैं। लेकिन जहां भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी में सेंध लगाकर अपनी ताकत में लगातार इजाफा करती जा रही है, अब यदि सपा खेमे में कुछ फीसदी डर की आशंकाएं आती भी हैं तो कोई बड़ी बात नहीं।
माया, ओवैसी और मुलायम, मुख्तार
भाजपा के साथ सवर्ण वोटबैंक के एक हिस्से के साथ दलितों का एकजुट होना भी शुरू हो गया है। जिसकी वजह है भाजपा का दलित मतदाताओं पर ध्यानाकर्षण। जबकि बसपा में रहे स्वामी प्रसाद मौर्या, फिर आरके चौधरी, और हाल ही में बृजेश पाठक जैसे नेताओं के जाने से सुप्रीमों मायावती का जनाधार कमजोर पड़ने लगा है।
विपक्षी दलों के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं
ऐसे में एआईएमआईएम का प्रस्ताव यदि बसपा स्वीकार भी कर ले तो विपक्षी दलों के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। आखिर इससे पहले असदुद्दीन ओवैसी कह ही चुके हैं कि वे सपा, कांग्रेस और भाजपा के इतर गठबंधन करने को तैयार हैं। तो विकल्प के तौर पर बसपा ही शेष रह जाती है। लेकिन इस बात की आशंकाएं काफी कमजोर नजर आ रही हैं कि मायावती एआईएमआईएम के साथ गठबंधन करें। लेकिन इन आशंकाओं को सिरे से खारिज भी नहीं किया जा सकता।
ये था विलय के पीछे सपा का मकसद
इसी क्रम में कयास लगाई जा रही थी कि पूर्वांचल के गाजीपुर, बलिया, मऊ और वाराणसी की 20 सीटों पर पिछले चुनाव के समाजवादी पार्टी और कौमी एकता दल के विलय के बाद यह सारी सीटें वह जीत लेंगे। जिसका मजबूत असर विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा।
मुलायम और शिवपाल पहले से इसके हक में
मुलायम सिंह के बंगले पर सोमवार को यादव परिवार की जो पंचायत बैठी उसमें कौमी एकता दल का विलय भी एक मुद्दा था। मुलायम और शिवपाल पहले से इसके हक में हैं जबकि विलय का विरोध करने वाले रामगोपाल कल इसके लिए तैयार हो गए। लेकिन अखिलेश यादव इस पर राजी नहीं हुए। और अब मुख्तार विलय न करने की जिद पर अड़ गए हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में कौएद का अच्छा प्रभाव
विश्लेषकों की मानें तो 2010 में वजूद में आई कौमी एकता दल शुरूआती दौर में इस हद तक मजबूत नहीं थी। लेकिन धीरे-धीरे कौएद ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, बलिया, मऊ और वाराणसी वगैरह जिलों की करीब 20 विधानसभा सीटों पर मुसलमानों में, मुसहर समुदाय में, जुलाहा वर्ग में मुख्तार के परिवार ने अच्छा प्रभाव बना लिया। जिससे सपा को फायदा हो सकता था।
सपा ने दिया है खास संदेश
लेकिन मुख्तार ने विलय न करने का स्टैंड लेकर अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में यह संदेश देने कि कोशिश की कि लोग ये न समझें अब पार्टी विशेष के सहारे कौएद के चलने के दिन आ गए हैं। सूबे में आगामी विधानसभा चुनाव के लिहाज से पलायन किसमें, क्या, क्यों होता है ये आने वाला वक्त ही निर्धारित करेगा। साथ ही सियासी दलों के साथ जुड़ने वाला लाभ या फिर हानि चुनावी नतीजों के जरिए पता चल पाएगी।