भारत में महिलाओं से ज्यादा पुरुषों का हुआ टीकाकरण, सरकार बोली इस असमानता को तत्काल सुधारने की जरूरत
वर्तमान में देश में 54 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में मात्र 46 प्रतिशत महिलाओं का टीकाकरण हुआ है। यानि महिलाओं और पुरुषों के टीकाकरण में 8 प्रतिशत का अंतर है।
नई दिल्ली, 28 जून। कोरोना पर जल्द से जल्द काबू पाने के लिए देश में टीकाकरण की मौजूदा रफ्तार को बढ़ाने की हरसंभव कोशिश की जा रही है। वर्तमान में दैनिक आधार पर औसतन 60 लाख लोगों का टीकाकरण किया जा रहा है, लेकिन टीकाकरण के मामले में लिंग असमानता पर सरकार घिरती नजर आ रही है। वर्तमान में देश में 54 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में मात्र 46 प्रतिशत महिलाओं का टीकाकरण हुआ है। यानि महिलाओं और पुरुषों के टीकाकरण में 8 प्रतिशत का अंतर है। वहीं जनसंख्या की बात करें तो देश में पुरुषों की आबादी महिलाओं से केवल 5 प्रतिशत ज्यादा है। हालांकि वैक्सीन को लेकर गलत धारणा भी कम टीकाकरण के लिए जिम्मेदार हैं।
दक्षिण दिल्ली के मुनरिका के एक स्लम एरिया में रहने वाली 40 वर्षीय सरोज गुप्ता को ही ले लीजिए। वह कहती हैं कि मेरे पति सिक्योरिटी गार्ड का काम करते हैं और हमारे चार बच्चे हैं। मैं इसलिए डरी हुई हूं क्योंकि टीका लगवाने के बाद कुछ लोगों को न्यूमोनिया हो गया, कुछ को बुखार आ गया और कुछ लोगों को ऑक्सीजन की कमी हो गई। अगर वैक्सीनेशन के बाद मुझे कुछ होता है तो मेरे बच्चों की देखभाल कौन करेगा। मैं वैक्सीन नहीं लेना चाहती। उन्होंने एनडीटीवी से बातचीत में ऐसा कहा। यह पूछने पर कि क्या वैक्सीन के बारे में बताने के लिए सरकार का कोई व्यक्ति उनके पास आया। इसपर सरोज ने नहीं में जवाब दिया।
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उत्तर
प्रदेश
और
दिल्ली
में
सबसे
अधिक
लिंग
अंतर
टीकाकरण
के
मामले
में
दिल्ली
और
उत्तर
प्रदेश
में
लिंग
अंतर
सबसे
ज्यादा
है।
यहां
58
प्रतिशत
पुरुषों
के
मुकाबले
42
प्रतिशत
महिलाओं
को
ही
वैक्सीन
लगी
है।
इन
चार
राज्यों
स्थिति
सबसे
बेहतर
वहीं
आंध्र
प्रदेश,
केरल,
छत्तीसगढ़
और
हिमाचल
प्रदेश
ऐसे
राज्य
हैं
जहां
महिलाओं
को
पुरुषों
को
लगभग
समान
वैक्सीन
लगी
है।
कोविड-19 के लिए वैक्सीन प्रशासन पर राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह के अध्यक्ष डॉ वीके पॉल ने इस मुद्दे को स्वीकार करते हुए कहा कि आने वाले दिनों में लिंग असंतुलन को ठीक करने की आवश्यकता है। जहां यह असंतुलन है उसे ठीक करना होगा। हमें महिलाओं के लिए टीके की पहुंच को आसान बनाना है और यह भविष्य के लिए एक सबक है। उन्होंने कहा कि इसके लिए जमीनी स्तर पर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है।
वहीं, लैंसेट कमीशन कोविड -19 टास्क फोर्स की सदस्य डॉ सुनीला गर्ग कहती हैं कि सबसे पहले तो महिलाओं की भ्रांतियों को दूर कर टीके की झिझक को कम करना होगा। आशा कार्यकर्ताओं को घर-घर जाकर उन तक पहुंचना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि ये महिलाएं सही ज्ञान के माध्यम से सशक्त हों। दूसरा, भारतीय परिवेश में संसाधनों तक पहुंच के लिए महिलाएं पुरुषों पर बहुत अधिक निर्भर हैं इसलिए पुरुषों में भी जागरूकता पैदा करनी होगी। उन्हें बताया जाना चाहिए कि वे न केवल जाकर अपना टीकाकरण करवाएं बल्कि यह सुनिश्चित करें कि वे अपने परिवार की महिलाओं को भी अपने साथ ले जाएं।