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Exclusive: 1965 की जंग में भारतीय वायुसेना ने कैसे जीता 'ग्रैंड स्लेम'

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नयी दिल्‍ली। 1965 में भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध में दोनों देशों के हजारों सैनिक और नागरिक मारे गए। दोनों ही देशों ने एक दूसरे की सीमा में घुसकर भारी तबाही मचाई जिसमें जान और माल की भारी क्षति हुई। उसी जंग में विंग कमांडर विनोद नेब ने दुश्‍मन का एक जहाज मार गिराया था जिसके लिए उन्‍हें वीर चक्र मिला था। जंग के दौरान सरहद पर जो कुछ भी हुआ, उसके कुछ क्षण रिटायर्ड विंग कमांडर विनोद नबे ने वनइंडिया से विशष बातचीत में शेयर किये।

Memories of Wing Commander about 1965 India-Pakistan war
इतिहास के पन्नों से- 5 अगस्त 1965 को करीब 40 हजार पाकिस्तानी सैनिक एलओसी पार करके कश्मीर में घुस आए थे। सभी ने स्थानीय लोगों की वेशभूषा बना ली थी। इसके बाद जो हुआ उसे याद करके भी रूह कांप जाती है। भारतीय सेना के जवानों ने जिस तरह मोर्चा संभाला वो काबिले तारीफ था और ऐसा इसलिए क्‍योंकि 1962 में चीन के हाथों हारने के बाद सेना का मनोबल काफी गिर गया था।

भारतीय सेना से डर कर पाकिस्‍तान ने शुरु किया 'ग्रैंड स्लेम'

विंग कमांडर विनोद नेब ने बताया कि हाजी पीर दर्रे पर अपना झंडा लहराने के बाद भारतीय सेना फतह की गाड़ी पर सवार हो चुकी थी। एक वक्‍त ऐसा आ गया कि पाकिस्‍तान को लगने लगा कि उसका प्रमुख शहर मुजफ्फराबाद भी भारत के हाथ में चला जाएगा। इसी डर से पाकिस्‍तान ने भारतीय सेना से लड़ने के लिए 'ग्रैंड स्लेम' अभियान शुरु किया। इस अभियान के तहत पाकिस्‍तान ने कश्मीर के अखनूर और जम्मू पर हमला बोल दिया। सेना को राहत सामाग्री पहुंचाने के लिए अखनूर खास इलाका था और इसपर हमला देख भारत को झटका लगा। बस इसी के बाद से वायु सेना ने मोर्चा संभाला।

नबे के अनुसार वायु सेना ने पाकिस्‍तान के श्रीनगर और पंजाब में हवाई हमले शुरु कर दिए। भारत यह जानता था कि अगर अखनूर पर पाकिस्‍तान का कब्‍जा हो गया तो पूरा कश्‍मीर हाथ से निकल जाएगा। कुछ दिनों तक वायु सेना ने मोर्चा संभाले रखा और पाकिस्तान के 'ग्रैंड स्लेम' अभियान को फेल कर दिया। भारत के लिए यह एक बड़ी राहत थी।

12 सितंबर को आया युद्ध में ठहराव

रिटायर्ड विंग कमांडर बताते हैं कि 8 सितंबर को पाकिस्तान ने मुनाबाओ पर हमला कर दिया। दरअसल पाकिस्तान लाहौर में हमला करने को तैयार भारतीय सेना का ध्यान बंटाना चाहता था। मुनाबाओ में पाकिस्तान को रोकने के लिए मराठा रेजिमेंट भेजी गई। मराठा सैनिकों ने जमकर पाक का मुकाबला किया लेकिन रसद की कमी और कम सैनिक होने के चलते मराठा सैनिक शहीद हो गए। फलस्वरूप 10 सितंबर को पाकिस्तान ने मुनाबाओ पर कब्जा कर लिया। 12 सितंबर तक जंग में कुछ ठहराव आया।

ताशकंद समझौता के रूप में आया युद्ध का परिणाम

इस जंग में भारत और पाकिस्‍तान ने बहुत कुछ खोया। भारतीय सेना के 3000 जवान तो पाकिस्‍तानी सेना के लगभग 3800 जवान मारे गये। हालांकि इस लड़ाई में भारत फायदे में था। भारत ने पाकिस्‍तान के सियालकोट, लाहौर और कश्‍मीर के कुछ ऐसे हिस्‍सों पर कब्‍जा कर लिया था जो बेहद उपजाऊ हैं। लेकिन तभी युद्ध विराम के लिए रुस के ताशकंद में 11 जनवरी, सन 1966 को भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्‍त्री और पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री अयूब खां के बीच समझौता हुआ। दोनों ने एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करके अपने विवादित मुद्दों को बातचीत से हल करने का भरोसा दिलाया और यह तय किया कि 25 फरवरी तक दोनों देश नियंत्रण रेखा अपनी सेनाएं हटा लेंगे। दोनों देश इस बात पर राजी हुए कि 5 अगस्त से पहले की स्थिति का पालन करेंगे और जीती हुई जमीन से कब्जा छोड़ देंगे।

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English summary
Here are some memories of Retired Wing Commander Vinod Nabe about 1965 India-Pakistan war, which he exclusively shared with Oenindia.
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