पीएम मोदी के जम्मू के दौरे पर जाने और कश्मीर न जाने के मायने
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को जम्मू दौरे पर जा रहे हैं और उनके दौरे से पहले सुरक्षाबलों की बस पर चरमपंथी हमला हुआ है वहीं पीएम कश्मीर नहीं जाएंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्धारित दौरे से केवल दो दिन पहले भारतीय प्रशासित कश्मीर के दक्षिणी राज्य जम्मू के सुंजवां में सैन्य छावनी पर हमला हुआ है. प्रधानमंत्री रविवार को सांबा के पाली गांव में 'राष्ट्रीय पंचायत दिवस' के अवसर पर लोगों को संबोधित करेंगे. सुंजवां कैंप पाली से महज़ 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
इस हमले के बाद से सुरक्षा बढ़ा दी गई है, लेकिन कश्मीर में राजनीतिक और सामाजिक हलकों में मायूसी है कि 2019 में जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता समाप्त करने के बाद, प्रधानमंत्री ने इस क्षेत्र की अपनी पहली यात्रा को केवल जम्मू तक ही सीमित कर दिया है, जिसका मतलब यह निकाला जा रहा है कि वह कश्मीर से संबंधित किसी राजनीतिक रियायत की कोई बड़ी घोषणा नहीं करेंगे.
जम्मू में हमला क्यों?
जम्मू के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक मुकेश सिंह के अनुसार, सशस्त्र चरमपंथियों ने शुक्रवार को तड़के सवेरे सहरी से पहले जम्मू के सीमावर्ती ज़िले सांबा के सुंजवां इलाक़े में सैन्य छावनी के पास एक बस पर हमला किया. यह बस सेन्ट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फ़ोर्स (सीआईएसएफ़) के जवानों को सुबह की शिफ्ट के लिए लेकर जा रही थी, चरमपंथियों ने बस पर फ़ायरिंग की और ग्रेनेड दागे.
इस हमले में सीआईएसएफ़ के एक असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर एसपी पाटिल की मौत हो गई और अर्धसैनिक बल के नौ जवान घायल हो गए. पुलिस अधिकारी के मुताबिक लंबे ऑपरेशन के बाद दोनों हमलावरों को मार गिराया गया और उनके पास से हथियार और गोला-बारूद बरामद हुआ है.
जम्मू के मुख्य पुलिस अधिकारी मुकेश सिंह ने ऑपरेशन के बाद जम्मू में संवाददाताओं को बताया कि "हमें पहले से ही ये सूचना थी कि प्रधानमंत्री के आने से पहले आतंकवादी किसी बड़ी कार्रवाई की योजना बना रहे हैं. इसलिए अलर्ट फ़ोर्सेज़ ने तुरंत जवाबी कार्रवाई की."
जम्मू-कश्मीर के पुलिस प्रमुख दिलबाग़ सिंह ने इस घटना को आत्मघाती हमले की कोशिश बताया है. उनके डिप्टी मुकेश सिंह ने इस बात की पुष्टि करते हुए बताया कि "जिस प्रकार के हथियार और उपकरण बरामद हुए हैं, उससे तो स्पष्ट तौर पर यही लगता है कि आतंकवादी आत्मघाती हमले को अंजाम देने आए थे."
उनका कहना था कि बस पर हमले के बाद आतंकवादियों ने छावनी के पास मोहम्मद अनवर नाम के एक शहरी के घर में शरण ली. जहां उनका घेराव करके उन्हें मार दिया गया.
भाजपा की जम्मू-कश्मीर शाखा के प्रमुख रविंदर रैना ने इस हमले के लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा, "हमारे सैनिकों ने पाकिस्तान के इरादों को विफल कर दिया है." ग़ौरतलब है कि प्रधानमंत्री के दौरे से पहले कश्मीर में भी आतंकवादियों के ख़िलाफ़ अभियान तेज़ कर दिया गया है.
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जम्मू में हुए हमले से कुछ घंटे पहले, गुरुवार शाम उत्तरी कश्मीर के बारामूला में हुई एक झड़प के दौरान तीन आतंकवादी मारे गए और संघर्ष के दौरान पांच सेना के जवान भी घायल हो गए. पुलिस का कहना है कि पिछले 22 साल से सक्रिय लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर यूसुफ़ कॉन्ट्रो भी संघर्ष में मारा गया, जो पुलिस की भी वांटेड लिस्ट में था.
जम्मू में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक तरुण उपाध्याय का कहना है कि सुंजवां में हुआ हमला असल में मोदी सरकार के उस बयान के ख़िलाफ़ आतंकवादियों की प्रतिक्रिया थी, जिसमें कहा जाता है कि 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर में सब कुछ ठीक है और अब समृद्धि आ रही है.
उन्होंने कहा, "जब तक मिलिटेंट ज़िंदा है, तब तक मिलिटेंट अपनी मौजूदगी का अहसास कराते रहेंगे. उन्होंने प्रधानमंत्री के दौरे से पहले यही संदेश दिया है. अतीत में जब मनमोहन सिंह ने भी प्रधानमंत्री के तौर पर कश्मीर का दौरा किया था तब भी हमला हुआ था. अगस्त 2019 के बाद, जो दावे किये गए कि यहां सब कुछ ख़त्म हो गया है और अब यहां दूध की नदियां बह रही हैं, यह हमला उस दावे के ख़िलाफ़ मिलिटेंट्स की प्रतिक्रिया है, कि स्थिति अभी भी ठीक नहीं है."
प्रधानमंत्री जम्मू में क्या करेंगे
अधिकारियों के मुताबिक़, प्रधानमंत्री मोदी जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय पंचायत दिवस मनाना चाहते हैं. यह दिन हर साल 24 अप्रैल को मनाया जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को जम्मू के सीमावर्ती ज़िले सांबा के पाली गांव में एक समारोह में देशभर के पंचायत अधिकारियों को संबोधित करेंगे. इस अवसर पर वह सौर ऊर्जा से चलने वाली बिजली परियोजना का भी उद्घाटन करेंगे. इस संबंध में लगभग ढाई करोड़ रुपये की लागत से निर्मित सौर ऊर्जा संयंत्र का काम पूरा हो गया है, जिससे कम से कम साढ़े तीन सौ घरों को बिजली मिलेगी.
चूंकि पाली गांव सुंजवां कैंप के पास स्थित है, जहां शुक्रवार को हमला किया गया था, इसलिए सुरक्षा व्यवस्था और भी कड़ी कर दी गई है. एक सुरक्षा अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर नज़र रखने के लिए कार्यक्रम स्थल के आसपास कई किलोमीटर तक हेलीकॉप्टर और विशेष ड्रोन तैनात किए गए हैं. ध्यान रहे कि जम्मू राज्य में हिंदुओं की संख्या ज़्यादा है और 2014 से ही इस राज्य में भाजपा की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है.
मोदी कश्मीर क्यों नहीं आए?
प्रधानमंत्री मोदी का दौरा निर्धारित होते ही, कयास लगाए जाने लगे थे कि वह कश्मीर का भी दौरा करेंगे और यहां किसी बड़ी राजनीतिक रियायत की घोषणा करेंगे. लेकिन पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री कार्यालय ने साफ़ कर दिया कि मोदी का दौरा जम्मू तक ही सीमित रहेगा. जम्मू में रहने वाले भाजपा के कई नेताओं का कहना है कि मोदी जम्मू-कश्मीर को पूरे देश में विकास और समृद्धि का मॉडल बनाना चाहते हैं.
जम्मू में ही भाजपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी को बताया कि "कश्मीर के राजनेता 70 साल से नई दिल्ली को कश्मीर मुद्दे के नाम पर ब्लैकमेल करते रहे हैं. मोदी जी कश्मीर के हालात को अपनी शर्तों पर ठीक करना चाहते हैं. वह आम आदमी को विकास और समृद्धि में शामिल करके पाकिस्तान और उसके समर्थकों को सबक सिखाना चाहते हैं."
हालांकि, कश्मीर के राजनीतिक हलके पिछले कई वर्षों से प्रधानमंत्री मोदी से अपील करते रहे हैं कि वो अपने पूर्ववर्ती और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तरह कश्मीर के प्रति सामंजस्य का रवैया अपनाएं.
पूर्व मंत्री और अतीत में भाजपा के साथ गठबंधन सरकार बनाने वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता नईम अख़्तर कहते हैं, कि "वाजपेयी ने श्रीनगर से भारत-पाक वार्ता की शुरुआत की थी. अगर यह दौरा भी उसी तरह से होता तो अच्छे दिनों की उम्मीद की जा सकती थी."
लेकिन जम्मू की तरह, कश्मीर में भी यही धारणा बढ़ रही है कि मोदी की कश्मीर नीति पिछली सरकारों की तुलना में गैर लचकदार है. विश्लेषकों का कहना है कि मोदी सरकार कश्मीर को लेकर अपरंपरागत नीति अपना रही है.
पत्रकार और विश्लेषक हारून रेशी कहते हैं कि "नवंबर 2015 में जब नरेंद्र मोदी ने श्रीनगर में एक रैली को संबोधित किया, तो उनके भाषण से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने उनसे कहा था कि कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव को पाकिस्तान की तरफ़ से एक इशारा समझते हुए, पड़ोसी देश के साथ बातचीत की जानी चाहिए. लेकिन मुफ़्ती के बाद अपने भाषण में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि कश्मीर के बारे में उन्हें दुनिया में किसी की सलाह या विश्लेषण की ज़रूरत नहीं है."
हारून कहते हैं कि उसी क्षण से भारत समर्थक राजनेताओं का गुट और कार्यक्षेत्र कम हो गया है, उनके मुताबिक़, मोदी सरकार कश्मीर मुद्दे को लेकर कश्मीरी नेताओं को कोई भूमिका नहीं देना चाहती.
ग़ौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने 2019 और 2021 में जम्मू के राजौरी और नौशेरा सेक्टरों में सेना के जवानों के साथ दिवाली मनाई थी. इस संबंध में हारून रेशी कहते हैं कि 'कश्मीर को लेकर किसी भी प्रधानमंत्री का नज़रिया इस बात पर निर्भर करता है कि भारत के पाकिस्तान के साथ कैसे संबंध हैं.'
इस संबंध में एलओसी पर 15 महीने से चल रहे भारत-पाकिस्तान सेना के बीच सफल संघर्ष विराम का हवाला देते हुए कुछ पर्यवेक्षकों का कहना है कि "पाकिस्तान में राजनीतिक स्थिरता के बाद, भारत किसी न किसी स्तर पर पाकिस्तान के साथ संबंध बहाल करने की कोशिश कर सकता है. लेकिन इससे कश्मीर के हालात बदलेंगे या नहीं यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी."
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