मणिपुर विधानसभा चुनाव: राज्य में फुटबॉल है जुनून और CM हैं पूर्व फुटबॉलर
नई दिल्ली, 13 दिसंबर। मणिपुर में फुटबॉल खेल नहीं जुनून है। यह भारत का पहला राज्य है जहां एक राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी (फुटबॉल) मुख्यमंत्री बना। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह मशहूर फुटबॉल खिलाड़ी रहे हैं। फुटबॉल के कारण ही उनका बीएसफ में चयन हुआ था। वे बीएसएफ की फुटबॉल टीम का अहम हिस्सा थे।
बीएसएफ की टीम 1981 के डुरंड कप प्रतियोगिता के फाइनल में पहुंची थी। फाइनल में उसका मुकाबला जेसीटी मिल्स फगवाड़ा से हुआ। बीएसएफ ने 1-0 से मुकबला जीत कर भारत की सबसे पुरानी फुटबॉल प्रतियोगिता का चैम्पियन बनने का गौरव प्राप्त किया था। इस विजेता टीम में एन बीरेन सिंह भी शामिल थे।
बेटे को पेले के नाम से बुलाते हैं
भाजपा के एन बीरेन सिंह आज मुख्यमंत्री हैं। लेकिन उनका फुटबॉल प्रेम पहले की तरह बरकरार है। उनके घर के मुख्य दरवाजे पर आज भी डुरंड कप विजेता टीम की वह तस्वीर लगी हुई जिसमें वे शामिल थे। फुटबॉल के प्रति दिवानगी की वजह से ही एन बीरेन सिंह ने अपने बेटे का नाम जीको रख दिया है। जीको ब्राजील के स्टार फुटबॉलर रहे हैं। वे जीको को घर में पेले के नाम से बुलाते हैं। पेले फुटबॉल के महानतम खिलाड़ी माने जाते हैं। मणिपुर में फुटबॉल एक लोकप्रिय खेल है। वहां के बच्चों का बचपन गेंद की किक से शुरू होता है। ये 1979 की बात है। एन बीरेन सिंह की उम्र तब 18 साल की थी। वे एक उभरते हुए फुटबॉल खिलाड़ी थे। राजधानी इम्फाल में एक फुटबॉल प्रतियोगिता हो रही थी जिसमें बीएसएफ के अधिकारी भी आये हुए थे। वे बीरेन सिंह के खेल से बहुत प्रभावित हुए और बीएसएफ में भर्ती का प्रस्ताव दे दिया। बीरेन सिंह बीएसएफ की तरफ से फुटबॉल खेलने लगे। डुरंड कप प्रतियोगिता जीतने के बाद उन्होंने बीएसएफ छोड़ दी और मणिपुर की टीम से खेलने लगे। करीब दस साल तक उन्होंने फुटबॉल में अपना कमाल दिखाया। फिर पत्रकार बन गये। उसके बाद राजनीति में आये और 41 की उम्र में विधायक बन गये।
मणिपुर भारत का मणि
मणिपुर भारत का 'मणि' है। भारतीय गौरव का प्रतीक है। विश्व में भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाने में अग्रणी। इसकी खूबसूरती गुलाब की तरह है। कुछ कांटे तो हैं लेकिन सुगंध से पूरा भारत सुवासित है। अलगावाद, हिंसा, जातीय संघर्ष, गरीबी, अफीम जैसी कई समस्याओं से ग्रसित है मणिपुर। लेकिन इसके बाद भी यह भारत का मुकुटमणि है। यह छोटा सा राज्य यशस्वी खिलाड़ियों के कारण भारत का सिरमौर है। टोकिये ओलम्पिक में भारत को पहला पदक मणिपुर की मीरा बाई चानू ने दिलाया था। भारतीय ओलम्पिक में मणिपुर के छह खिलाड़ी शामिल थे- मीरा बाई चानू (भारोत्तोलन), मेरी कॉम ( बॉक्सिंग), सुशीला चानू (महिला हॉकी), एक नीलकांता (पुरुष हॉकी), देवेन्द्रो सिंह (बॉक्सिंग), एल सुशीला देवी (जुडो)। मणिपुर की एक पहचान फुटबॉल भी है। विश्वकप फुटबॉल 2022 क्वालिफायर्स प्रतियोगिता के लिए जो भारतीय टीम चुनी गयी थी उसमें मणिपुर के छह खिलाड़ी शामिल थे। 2017 में जूनियर विश्वकप फुटबॉल प्रतियोगिता के लिए चुनी गयी भारतीय टीम में मणिपुर के आठ खिलाड़ी शामिल थे।
राजनीति के उबड़-खाबड़ रास्ते
इस सुंदर गुलाब में कुछ कांटे भी हैं। अलगाववादी हिंसा यहां की एक बड़ी समस्या है। पिछले महीने ही आतंकियों ने असम राइफल्स के कमांडिग ऑफिसर कर्नल बिप्लव त्रिपाठी के काफिले पर हमला कर दिया था जिसमें सात लोग मारे गये थे। भारत की अखंडता को कायम रखने और आतंकवाद की समस्या पर नियंत्रण के लिए पूर्वोत्तर के राज्यों में सशस्त्र बल (विशेष शक्ति) अधिनियम यानी अफस्पा लागू किया गया है। लेकिन नगालैंड की घटना के बाद अफस्पा अब मणिपुर में चुनावी मुद्दा बनता दिख रहा है। कांग्रेस ने घोषणा की है कि अगर उसकी सरकार बनी तो इस कानून को हटा दिया जाएगा। यहां तक कि भाजपा की सहयोगी पार्टी नगा पीपल्स फ्रंट और नेशनल पीपल्स पार्टी ने भी इस कानून को वापस लेने की मांग कर दी है। मणिपुर में अफस्पा हटाने का वायदा उसी तरह है जैसे देश से गरीबी हटाने का वायदा है। इसके पहले कांग्रेस यहां 15 साल तक सत्ता में रही। लेकिन उसने कभी इस कानून को हटाने के लिए पहल नहीं की। सिर्फ वोट के लिए इस मुद्दे को उछाला जाता है। मणिपुर के लोग इस कठोर कानून का विरोध तो करते हैं लेकिन जब राजनीतिक फैसले का वक्त आता है तो भटक जाते हैं। 2017 के चुनाव में भी अफस्पा एक चुनावी मुद्दा था। अफस्पा के खिलाफ लौहमहिला इरोम शर्मिला ने 16 साल तक लगातार अनशन किया था। उनके आंदोलन का देश और दुनिया भर में नाम था। लेकिन जब वे 2017 के चुनाव में खड़ी हुईं तो उनकी शर्मनाक हार हो गयी। उन्हें सिर्फ 90 वोट मिले थे। मतदान की यह प्रवृति अचंभित करने वाली है। ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि 2022 में अफस्पा कितना बड़ा चुनावी मुद्दा बन पाएगा।