एनआरसी के मुद्दे पर इतनी भड़की हुई क्यों हैं ममता बनर्जी
राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर पार्थ प्रतिम विश्वास कहते हैं, 'ममता एनआरसी के तीर से एक साथ कई शिकार करने का प्रयास कर रही हैं. चाहे हिंदू हों या मुस्लिम, इस विरोध के जरिए वह जहां खुद को बंगालियों का मसीहा साबित करने का प्रयास कर रही हैं, वहीं अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में भी वह इसी हथियार को भाजपा के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने की योजना बना रही हैं.'
'केंद्र सरकार और भाजपा वोटबैंक की राजनीति के तहत नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (एनआरसी) की आड़ में असम से बंगालियों और बिहारियों को खदेड़ने का प्रयास रही है.'
'एनआरसी के प्रावधानों को लागू करने की स्थिति में देश में ख़ून-ख़राबे की नौबत आ जाएगी और गृहयुद्ध छिड़ जाएगा.'
'एनआरसी ने 40 लाख लोगों को अपने ही देश में शरणार्थी बना दिया है'.... 'इससे पड़ोसी बांग्लादेश के साथ भारत के संबंधों में भारी कड़वाहट पैदा होगी'.... असम में एनआरसी का अंतिम मसौदा प्रकाशित होने के बाद बीते तीन दिनों के दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी के इन तीखे बयानों से साफ़ है कि उनमें भारी नाराज़गी है.
ममता बनर्जी एनआरसी के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा मुखर हैं. लेकिन आख़िर ऐसा क्यों है?
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता पर अल्पसंख्यकों की तुष्टिकरण के आरोप लगते रहे हैं. ऐसे में इस मुद्दे ने उनको बांग्ला पहचान के लिए लड़ाई का चेहरा बनने का एक मौका दिया दिया है.
एनआरसी का मुद्दा क्यों उछाल रही हैं ममता?
इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठा कर ममता बंगाल में हिंदुओं के बीच अपनी पैठ और छवि को और मज़बूत करना चाहती हैं.
राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर पार्थ प्रतिम विश्वास कहते हैं, 'ममता एनआरसी के तीर से एक साथ कई शिकार करने का प्रयास कर रही हैं. चाहे हिंदू हों या मुस्लिम, इस विरोध के जरिए वह जहां खुद को बंगालियों का मसीहा साबित करने का प्रयास कर रही हैं, वहीं अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में भी वह इसी हथियार को भाजपा के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने की योजना बना रही हैं.'
प्रदेश भाजपा का आरोप है कि ममता अपनी सरकार के दामन पर लगे दाग को धोने और राज्य की समस्याओं की ओर से लोगों का ध्यान हटाने के लिए ही एनआरसी को लेकर इतनी मुखर हैं.
विश्वास का कहना है कि पश्चिम बंगाल में भी घुसपैठ की समस्या देश के विभाजन जितनी ही पुरानी है. ऐसे में भाजपा के घुसपैठ को चुनावी मुद्दा बनाने से पहले एनआरसी के जरिए ममता इस लड़ाई को भाजपा के खेमे में ले जाने का प्रयास कर रही है.
पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता को इस लड़ाई का असम में तो कोई ख़ास फ़ायदा नहीं मिलेगा क्योंकि वहां पार्टी की स्थिति ख़ास मज़बूत नहीं है. लेकिन बांग्ला पहचान के लिए लड़ने वाली जुझारू नेता की उनकी छवि इससे निखर सकती है और इसका फ़ायदा उनको बंगाल में मिलेगा.
क्या राजनीति कर रही हैं ममता?
ममता की राजनीति को क़रीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार तापस चटर्जी कहते हैं, 'ममता के ख़िलाफ़ अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के आरोप लगाते रहे हैं. ममता एनआरसी के विरोध के जरिए ऐसे आलोचकों का भी यह कर मुंह बंद कर सकती हैं कि एनआरसी के सूची से बाहर रखे गए लोगों में सिर्फ़ अल्पसंख्यक ही बल्कि हिंदू और हिंदी भाषी भी हैं.'
एक अन्य राजनीतिक पर्यवेक्षक विश्वनाथ चौधरी कहते हैं, 'ममता अगले लोकसभा और उसके दो साल बाद होने वाले चुनावों में एनआरसी के ज़रिए ख़सकर अल्पसंख्यकों और बंगाली हिंदुओं को यह कह कर भड़का सकती हैं कि भाजपा बंगाल में भी एनआरसी लागू करेगी. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष पहले ही ऐसा एलान कर चुके हैं.'
पर्यवेक्षकों का कहना है कि भाजपा बांग्लादेश से लगे बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में खासकर सीमापार से आकर बसे हिंदुओं में धीरे-धीरे अपनी ज़मीन मज़बूत करने का प्रयास कर रही हैं.
हाल के वर्षों में उस इलाके में हुए दंगों से साफ़ है कि सियासी हितों का टकराव तेज़ हो रहा है. चौधरी कहते हैं कि यही वजह है कि ममता असम के अल्पसंख्यकों के अलावा एनआरसी के मसौदे से बाहर रखे गए हिदुंओं का भी ज़िक्र कर रही हैं.
गृहयुद्ध के बयान से पलटीं ममता
असम में रोजी-रोटी और कारोबार के सिलसिले में बंगाल के 1.20 लाख लोग रहते हैं. इनमें से महज 15 हज़ार को ही एनआरसी में जगह मिल सकी है.
ममता का सवाल है कि बंगाल के लोग कई पीढ़ियों से असम में रह कर नौकरी और कारोबार कर रहे हैं. अब एनआरसी में जगह नहीं मिलने के बाद उनका भविष्य क्या होगा?
तृणमूल कांग्रेस प्रमुख का कहना है कि आखिर ऐसे लोग कहां जाएंगे? क्या उनको बांग्लादेश भेजा जाएगा और क्या बांग्लादेश उनको वापस लेने पर राजी होगा?
उनकी दलील है कि देश के तमाम राज्यों में बाकी राज्यों के लोग रहते हैं. लेकिन अगर एनआरसी की आड़ में लाखों-करोड़ों लोगों को विदेशी घोषित कर दिया गया तो देश में गृहयुद्ध से हालात पैदा हो जाएंगे.
हालांकि ममता बनर्जी अपने इस बयान से अब पलट गई हैं.
तृणमूल कांग्रेस महासचिव पार्थ चटर्जी कहते हैं, 'एनआरसी महज वोट बैंक की राजनीति है. भाजपा को वोट देने वालों के नाम मसौदे में है जबिक उसके विरोधियों के नाम इससे बाहर हैं.'
बंगाल में घुसपैठ
पश्चिम बंगाल में घुसपैठ का मुद्दा देश के विभाजन जितना ही पुराना है. राज्य की 2,216 किलोमीटर लंबी सीमा बांग्लादेश से लगी है. इसका लंबा हिस्सा जलमार्ग से जुड़ा होने और कई जगह सीमा खुली होने की वजह से देश के विभाजन के बाद से ही पड़ोसी देश से घुसपैठ का जो सिलसिला शुरू हुआ था वह अब तक थमा नहीं है.
14 जुलाई 2004 को तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने लोकसभा में बताया था कि देश में 1.20 करोड़ बांग्लादेशी रहते हैं. इनमें से 50 लाख असम में हैं और 57 लाख बंगाल में. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने 16 नवंबर 2016 भारत में रहने वाले बांग्लादेशी अप्रवासियों की तादाद दो करोड़ बताई थी.
बंगाल में बढ़ी है अल्पसंख्यकों की आबादी
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष का दावा है कि बंगाल में एक करोड़ बांग्लादेशी रहते हैं. घोष कहते हैं, 'पहले सीपीएम की अगुवाई वाले लेफ्टफ्रंट ने वोटबैंक की राजनीति के तहत इन लोगों को राज्य में बसाया और अब ममता बनर्जी सरकार भी ऐसा ही कर रही है.'
वह कहते हैं कि राज्य में अल्पसंख्यकों की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है. फिलहाल आबादी में इनका हिस्सा लगभग 30 फ़ीसदी है और यह लोग लोकसभा और विधानसभा की कई सीटों पर निर्णायक स्थिति में हैं.
उत्तर 24-परगना ज़िले के सामाजिक कार्यकर्ता दुलाल चौधरी कहते हैं, 'बीते कुछ दशकों के दौरान ज़िले में आबादी का स्वरूप तेज़ी से बदला है. बांग्लादेश से आने वालों का सिलसिला अभी थमा नहीं है.'
वह कहते हैं कि बोली और पहनावे में ख़ास अंतर नहीं होने की वजह से स्थानीय और सीमा पार से आने वालों के बीच अंतर करना मुश्किल है.
राजनीति चमकाने की कोशिश
उत्तर 24-परगना ज़िले के भाजपा नेता मोहित राय दावा करते हैं, 'बंगाल में कम से कम 80 लाख बांग्लादेशी रहते हैं. इनकी वजह से राज्य के युवकों को रोजगार नहीं मिल रहा है और वह दूसरे राज्यों का रुख कर रहे हैं.'
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष घोष कहते हैं, 'लगातार वोट बैंक की राजनीति के तहत राज्य में सीपीएम से लेकर मौजूदा सरकार तक सभी बांग्लादेशियों की सहायता करती रही हैं. किसी भी राज्य सरकार ने अब तक घुसपैठ पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस पहल नहीं की है.'
वह कहते हैं कि ममता एनआरसी मुद्दे पर अपनी छवि और राजनीति चमकाने का प्रयास कर रही हैं.
उत्तरबंगाल के एक राजनीतिक विश्लेषक गौतम नाथ कहते हैं, "घुसपैठ 60 के दशक से ही बंगाल की राजनीति की धुरी रही है. हर राजनीतिक पार्टी इसे अपने-अपने तरीके से भुनाती रही है. अब भाजपा भी खासकर सीमापार से आने वाले हिंदुओं को लुभाने की रणनीति पर बढ़ रही है.
क्या संदेश देना चाहती हैं ममता?
पर्यवेक्षकों का कहना है कि एनआरसी के मुद्दे पर आक्रामक रुख अपना कर ममता बनर्जी राज्य के लोगों को यह संदेश देने का प्रयास कर रही हैं कि हिंदुत्व का नारा देने वाली भाजपा अपने सियासी फायदे के लिए असम में हिंदू बंगालियों को भी निशाना बनाने से नहीं चूक रही है.
वैसे भी ममता बनर्जी बीते कुछ समय से बंगाली पहचान की राजनीति की दिशा में मजबूती से बढ़ रही हैं. बीते साल उन्होंने स्कूलों में बांग्ला की पढ़ाई अनिवार्य की थी. इसके अलावा वह तमाम कवियों और नेताओं की जयंती और तरह-तरह के उत्सवों का आयोजन करती रही हैं.
अब असम में एनआरसी के विरोध से बंगाल की सियासत में उनको कितना फ़ायदा होगा, इसका पता तो बाद में चलेगा. लेकिन ममता इस मुद्दे पर अपने तरकश के तमाम तीर चलाने से पीछे नहीं हट रही हैं.
2005 में ममता ने क्या कहा था?
हालांकि 2005 में ममता बनर्जी का मानना था कि पश्चिम बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है और वोटर लिस्ट में बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल हो गए हैं.
अरुण जेटली ने ममता बनर्जी के उस बयान को ट्वीट भी किया. उन्होंने लिखा, '4 अगस्त 2005 को ममता बनर्जी ने लोकसभा में कहा था कि बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है. मेरे पास बांग्लादेशी और भारतीय वोटर लिस्ट है. यह बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है. मैं यह जानना चाहती हूं कि आख़िर सदन में कब इस पर चर्चा होगी?'
https://twitter.com/arunjaitley/status/1024634495448870912
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