क्यों इतना प्रसिद्ध है सबरीमाला मंदिर, जानें किन हालातों में मंदिर का विवाद पहुंचा कोर्ट?
बेंगलुरु। कई शताब्दियों से भारत विशेषकर दक्षिण भारत के राज्यों के लाखों लोगों की सबरीमाला मंदिर पर अटूट आस्था हैं। इस तीर्थ को वैष्णों और शैवों की एकता के प्रतीक के रुप में देखा जाता है। दक्षिण विशेषकर केरल में लोगों की भावनाएं सबरीमाला के प्रति ठीक वैसी हैं जैसी किसी उत्तर भारतीय की अयोध्या राममंदिर को लेकर हैं।
यही कारण हैं कि केरल में स्थित सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश के खिलाफ दायर पुर्नविचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के गुरुवार को आने वाले फैसले पर सब निगाहें टिकी हुई थीं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने इस पर कोई अंतिम फैसला सुनाने के बजाय इस केस को बड़ी बेंच को सौंप दिया है। अब इस मामले को 7 जजों की बेंच सुनेगी। गुरुवार को पांच जजों की बेंच ने इस मामले को 3:2 के फैसले से बड़ी बेंच को सौंप दिया है।
इतना ही नहीं राजनीतिक पार्टियों, दक्षिणपंथी संगठनों और श्रद्धालुओं की निगाहें इस केस पर इस लिए भी टिकी हुई थी क्योंकि तीन दिनों बाद सबरीमाला में वार्षिक तीर्थयात्रा शुरु होने वाली है। केरल में पथनमथिट्टा जिले के पश्चिमी घाटी में संरक्षित वन क्षेत्र में स्थित पहाड़ी पर स्थित इस धार्मिक स्थल द्वार को 16 नवंबर की शाम से दो महीने तक चलने वाले मंडलम मकराविलाक्कू तीर्थयात्रा के लिए खोले जायेंगे।
दो महीने तक चलने वाली इस सबरीमाला तीर्थयात्रा में भगवान अयप्पा के मंदिर में प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। आइए जानते हैं इस प्राचीन मंदिर का क्या है इतिहास, मंदिर में विराजित अयप्पा भगवान पर भक्तों का क्या है अटूट विश्वास और कब ,किन हालातों में यह सबरीमाला मंदिर का विवाद न्याय के मंदिर न्यायाल तक पहुंच गया?
भगवान अयप्पा ने वैराग्य आने पर छोड़ दिया था महल
बता दें केरल में स्थित यह मंदिर 800 वर्ष पुराना है। यह मंदिर 18 पहाडि़यों से घिरे समुद्र तल से 1,574 फीट की उंचाई पर स्थित है। इस मंदिर में भगवान अयप्पा के बारे में मान्यता हैं कि उनके माता पिता ने उनकी गर्दन में घंटी बांध कर छोड़ दिया था। पंडालम के राजा राजशेखर ने अयप्पा को अपने बेटे की तरह पाला। लेकिन अयप्पा को ये सब नहीं भाया और उनमें वैराग्य आ गया और वह महल छोड़कर चले गए। कुछ पुराणों में अयप्पा स्वामी को शास्ता का अवतार माना जाता है।
अयप्पा भगवान को हरिपुत्र का कैसे मिला नाम
केरल समेत दक्षिण भारत के हर क्षेत्र में भगवान अयप्पा के भक्त हैं। जिनकी अटूट आस्था भगवान अयप्पा के सबरीमला मंदिर में हैं। यह विश्व के सबसे तीर्थ स्थानों में से एक हैं। मंदिर में विराजित भगवान अयप्पा का एक नाम हरिपुत्र भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी के बेटे थे। इनको दक्षिण भारत में अयप्पा के नाम से जाना जाता है।
यहां हरि का तात्पर्य विष्णु और हर का मतलब शिव। हरि के मोहनी रुप को ही अयप्पा की मां माना जाता है। धार्मिक कथा हैं कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव भगवान विष्णु रुप के मोहिनी रुप पर मोहित हो गए थे और इसी के प्रभाव से एक बच्चे का जन्म हुआ। इनका पालन 12 सालों तक राज राजशेखरा ने किया था। अयप्पा ने ही राक्षसी महिषि का भी वध किया था।
कैसे पड़ा मंदिर का नाम सबरीमाला
अगर बात करें मंदिर के नाम सबरीमाला की, तो यह रामायण में वर्णित सबरी के नाम पर पड़ा हैं। जिन्होंने भगवान राम को वनवास के समय अपने जूठे फल खिलाए थे और भगवान राम ने उस समय नवधा भक्ति का उपदेश दिया था। भगवान अयप्पा से जुड़े भक्तों को वैष्ण्यों और शैवों की एकता के प्रतीक के रुप में देखा जाता है।
मंदिर में दर्शन से पहले भक्त 41 दिन तक रखते हैं व्रत
सबरीमाला मंदिर में भगवान का स्वरूप नैश्तिका ब्रह्मचारी का है। यह भगवान का वह स्वरूप है जो परंपराओं और पुराणों में है। इसी को आधार बनाकर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाई गई थी। मंदिर की मानें तो मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 सीढि़यों को चढ़कर आना होता है, जिन्हें बेहद पवित्र माना जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु इसके लिए 41 दिनों का व्रत रखते हैं। यहां पर आने वाले श्रद्धालु काले या नीले रंग के कपड़े पहनते हैं। जब तक ये यात्रा पूरी नहीं हो जाती तब तक श्रद्धालु नंगे पैर रहते हैं और दाढ़ी तक नहीं बनाते हैं।
सबकी मन्नत पूरी करते हैं अयप्पा भगवान
मान्यता है कि श्रद्धालु तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहन, व्रत रख और सिर पर नैवेद्य लाते हैं। इससे उनकी इच्छाएं पूरी हो जाती है। भक्तों के लिए मान्यता है कि वह तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर कर आते हैं। इस मंदिर में श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर पहुंचते हैं जिसे नैवेद्य कहा जाता है।
इसमें भगवान को चढ़ाई जाने वाली सारी सामग्री होती है। भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए 41 दिन पहले से तैयारी करनी होती है। इस पूरी तैयारी को भक्त मंडम व्रतम कहा जाता है जिसे भक्त करते हैं । मंदिर में दर्शन के लिए जाते समय पर अपने सिर पर एक पल्लिकेट्टू रखना अनिवार्य है। पल्लिकेट्टू एक कपड़े का थैला होता हैं जिसमें गुड़, नारियल, और चावल समेत अन्य प्रसाद रखा रहता है।
कब और कैसे शुरु हुआ विवाद
इम मंदिर में महिलाओं का प्रवेश को लेकर विवाद दशकों पुराना हैं। यहां मान्यता हैं कि मंदिर में विराजित भगवान अयप्पा ब्रम्हचारी थे। जिसकी वजह से मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं का आना वर्जित है। इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब मंदिर के मुख्य ज्योतिषि परप्पनगडी उन्नीकृष्णन ने कहा कि भगवान अयप्पा की ताकत मंदिर में किसी महिला के प्रवेश करने की वजह से कम हो रही है।
ज्योतिषि के इस बयान के बाद दक्षिण भारत की अभिनेत्री जयमाला ने यह बता कहीं कि 1987 में वह अपने पति के साथ मंदिर में दर्शन के लिए गई थीं। लेकिन वहां पर भीड़ अधिक होने के कारण धक्का-मुक्की के कारण वह मंदिर के गर्भगृह तक पहुंच गईं और भगवान अयप्पा के चरणों में गिर गईं। उस वक्त वहां मौजूद पुजारी ने उन्हें फूल भी दिए थे। उन्होंने ये भी कहा कि उनके इस कृत्य से अयप्पा नाराज हुए हैं जिसका उन्हें अब प्रायश्चित करना है। इस दावे के बाद मंदिर का शुद्धिकरण करवाया गया। इस दावे के बाद ही सामने आया कि यहां पर महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।
पहली बार जब यह विवाद पहुंचा कोर्ट
इस प्रथा का विरोध हुआ और मांग की गई कि मंदिर में जाने की इजाजत सभी आयु वर्ग की महिलाओं को दी जाए। 1990 ने इसके खिलाफ केरल हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई। 1991 में हाईकोर्ट ने महिलाओं के खिलाफ फैसला सुनाते हुए कहा कि सदियों पुरानी इस परंपरा को सही ठहराया था। कोर्ट का कहना था कि मासिक धर्म की उम्र वाली महिलाओं का मंदिर में प्रवेश निषेध न तो संविधान का और न ही केरल के कानून का उल्लंघन है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में महिलाओं के प्रवेश को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर मंदिर के फैसले को सही ठहराया था।
इसके बाद केरल के यंग लॉयर्स असोसिएशन ने वर्ष 2006 में इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस याचिका पर कोर्ट ने मंदिर के ट्रस्ट त्रावणकोर देवासम बोर्ड से जवाब मांगा था। बोर्ड ने अपने जवाब में कहा कि क्योंकि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे, लिहाजा यहां पर महिलाओं का प्रेवश वर्जित है। अपने जवाब में उन्होंने महिलाओं को होने वाले मासिक धर्म को एक प्रमुख वजह बताया था।
कोर्ट ने जब महिलाओं के प्रवेश को हरी झंडी दे दी
11 जुलाई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए संवैधानिक पीठ को भेजने की बात कही थी, जिसके बाद 2017 में इसको इस पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ को सौंप दिया गया था। 28 सितंबर 2018 को तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने सबीरमाला मामले पर फैसला सुनाया था।
5 सदस्यों की संवैधानिक पीठ ने 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाया था। फैसले में सबसे बड़ी बात यह थी कि पांच जजों की बेंच के चार पुरुष सदस्यों ने जहां महिलाओं के मंदिर में प्रवेश के पक्ष में फैसला सुनाया, वहीं महिला न्यायधीश इंदु मल्होत्रा ने असहमति दिखाई थी।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भारतीय संस्कृति में महिलाओं का सर्वोच्च है। यहां पर उन्हें देवी के रूप में पूजा जाता है ऐसे में मंदिर में उनका प्रवेश रोकना स्वीकार्य नहीं है। सितम्बर में दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमला मंदिर में अब सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश को हरी झंडी दे दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को हटा दिया और इस प्रथा को असंवैधानिक करार दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब सबरीमाला मंदिर के दरवाजे सभी महिलाओं के लिए खोल दिये गये।
इस फैसले के बाद जमकर हुआ था विरोध
अक्टूबर 2018 को जस्टिस दीपक मिश्रा के विरोध में केरल की वो महिलाएं आ गयीं थीं जो सबरीमाला को लेकर उनके फैसले से सहमत नहीं थीं। कई मामले ऐसे भी आए थे जब महिलाओं ने दीपक मिश्रा के फैसले के विरोध में न केवल जमकर बवाल काटा बल्कि कइयों ने खुद को आग लगाने का प्रयास भी किया।
मामला क्योंकि लोगों की आस्था, विश्वास और श्रद्धा से जुड़ा था तो पूरे दक्षिण में तांडव होता रहा। मामले को लेकर केरल के अलावा कर्नाटक में भी कई जगहों पर कर्फ्यू जैसे हालात थे और स्थिति संभालने के लिए कई बार पुलिस तक को बल का इस्तेमाल करना पड़ा।
फैसले पर दाखिल की गयी पुर्नविचार याचिका
इसी फैसले के बाद एक वर्ग वो भी सामने आया जिसने शीर्ष अदालत के इस फैसले का विरोध किया और धर्म को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की। इस याचिका में कहा गया है कि सबरीमला पर संविधान पीठ के फैसले पर फिर से विचार हो। ये फैसला धार्मिक अधिकार का उल्लंघन है। ये पुनर्विचार याचिका नेशनल अयप्पा डिवोटी एसोसिएशन की तरफ से दाखिल की गई। याचिका में कहा गया है कि जो महिलाएं आयु पर प्रतिबंध लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आईं थीं वे अयप्पा भक्त नहीं हैं। ये फैसला लाखों अयप्पा भक्तों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता हैं।
अब 7 सदस्सीय जजों की बेंच करेगी सुनवाई
याचिका में यह भी कहा गया है, "याचिकाकर्ताओं का मानना है कि कोई भी कानूनी विद्वान यहां तक कि सबसे बड़ा न्यायवादी या न्यायाधीश भी जनता के सामान्य ज्ञान और ज्ञान का एक मैच नहीं हो सकता। इस देश में उच्चतम न्यायिक न्यायाधिकरण की कोई न्यायिक घोषणा नहीं है। इस पुर्नविचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने गुरुवार को फैसला नहीं ले पाई अब इस मामले को 7 जजों की बेंच को सुनने के लिए सौंप दिया है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को लागू करना है या नही इसका फैसला राज्य सरकार पर छोड़ दिया है।
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