केरल में भाजपा की एकलौती सीट भी छीन लेना चाहते हैं राहुल गांधी!
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तिरुवनंतपुरम। राहुल गांधी केरल के वायनाड से सांसद हैं। उनकी दिली इच्छा है कि केरल विधानसभा में भाजपा की जो एक मात्र सीट है वह भी किसी तरह छीन लिया जाय। 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की यह सीट छीनने के लिए उन्होंने राज्य के सबसे मजबूत उम्मीदवार को मैदान में उतारने की योजना बनायी है। 2016 के चुनाव में भाजपा के राजगोपाल ने निमोम विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की थी। उन्होंने सीपीआइ के सिवनकुट्टी को आठ हजार से अधिक वोटों से हराया था। कांग्रेस के उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे थे। निमोम में जीत हासिल करने के लिए राहुल गांधी इस बार किसी हैवीवेट को रिंग में उतारने की तैयारी में हैं। चर्चा है कि पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी या फिर नेता प्रतिपक्ष रमेश चेन्निथला को यहां से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया जा सकता है। इस संबंध में ओमान चांडी ने शनिवार को कहा, निमोम सीट पर कांग्रेस का उम्मीदवार कौन होगा, इसके लिए आपको थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा। रविवार को जब दिल्ली में उम्मीदवारों के नाम का एलान होगा, सारी बातें साफ हो जाएंगी। कांग्रेस निमोम सीट जीत कर यह संदेश देना चाहती है कि केवल वही भाजपा को हरा सकती है।
निमोम सीट से कौन होगा कांग्रेस प्रत्याशी ?
निमोम से किसी दिग्गज को अखाड़े में उतारा जाय, ऐसा सिर्फ राहुल गांधी सोचते हैं। राहुल गांधी की इच्छा अनुरूप केरल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष एम रामचंद्रन ने ओमान चांडी को निमोम से चुनाव लड़ने के बार में पूछा था लेकिन तब उन्होंने इंकार कर दिया था। लेकिन अब जब सीपीआइ कांग्रेस पर बीजेपी से मिलभगत का आरोप लगा रही तो केरल की चुनावी सरगर्मी बढ़ गयी है। सत्ता की दावेदार कांग्रेस अब यह दिखाना चाहती है कि वह भाजपा को केरल से उखाड़ने के लिए पूरी तरह संकल्पित है। पीसी चाको के इस्तीफे के बाद कांग्रेस में व्याप्त गुटबाजी सतह पर आ गयी है। बदली हुई परिस्थितियों में कांग्रेस नेताओं पर एकजुट रहने के लिए खुद ब खुद दबाव निर्मित हो गया है। ऐसे में अगर राहुल गांधी खुद यह प्रस्ताव देंगे तो शायद ही कोई नेता इससे इंकार कर सके।
निमोम सीट की अहमियत
निमोम पहले वामपंथियों का गढ़ था। 1977 में कांग्रेस ने पहली बार वामपंथियों के इस गढ़ में सेंध लगायी। जब पूरे देश में इंदिरा गांधी के खिलाफ हवा बह रही थी तब यहां के वोटरों ने कांग्रेस को समर्थन दिया था। 1982 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता के. करुणाकरण ने दो सीटों (निमोम और माला) से विधानसभा का चुनाव लड़ा था। दोनों जगह से जीते। लेकिन जब इस्तीफा देने की बारी आयी तो उन्होंने निमोम सीट छोड़ दी। कांग्रेस की सरकार बनी। करुणाकरण मुख्यमंत्री बने। लेकिन जब करुणाकरण ने निमोम सीट छोड़ दी तो स्थानीय जनता में नाराजगी फैल गयी। एक साल बाद जब उपचुनाव हुआ तो वोटरों ने कांग्रेस को हराने के लिए सीपीआइ के वीजे थप्पन को समर्थन दे दिया। कांग्रेस के हाथ से ये सीट निकल गयी। इसके बाद 18 साल तक कांग्रेस की किस्मत यहां रुठी रही। 2001 और 2006 में कांग्रेस यहां से जीती। 2011 में सीपीआइ को जीत मिली। लेकिन 2016 में भाजपा ने यह सीट सीपीआइ से छीन ली।
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इस बार कांग्रेस की बारी ?
केरल में अभी सीपीआइ के नेतृत्व वाले एलडीएफ का शासन हैं। पी विजयन मुख्यमंत्री हैं। 1980 के बाद से केरल में एक चुनावी ट्रेंड रहा है कि कोई सरकार लगातार दो चुनाव नहीं जीत पायी है। यानी हर बार सरकार बदलती रही है। कभी एलडीएफ को तो कभी कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ को सता मिलती रही है। इस चुनावी प्रवृत्ति के आधार पर कांग्रेस को सत्ता में लौटने की आशा है। केरल में इस बार राहुल गांधी खुद सक्रिय हैं। उन्होंने मछुआरों के साथ समुद्र में मछलियां मार कर स्थानीय लोगों में अपनी साख बढ़ायी है। राहुल कह चुके हैं केरल में आने के बाद उन्हें सुकून वाली राजनीति का एहसास हुआ। ऐसा कर कह कर उन्होंने ये संदेश दिया था कि अब भविष्य में वे केरल से ही फुलटर्म पॉलिटिक्स करेंगे। अगर राहुल इस आधार पर लोगों का भरोसा जीत लेते हैं तो इस चुनाव में कांग्रेस पिछले 30 साल का इतिहास दोहरा सकती है।
भाजपा भी लगा रही जोर
इस चुनाव में भाजपा का लक्ष्य है कि कैसे उसकी सीटों की संख्या इकाई से दहाई में दाखिल हो। सीपी राधाकृष्णन को केरल में भाजपा का चुनाव प्रभारी बनाया गया है। वे तमिलनाडु के कोयम्बटूर से 1998 और 1999 में भाजपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। उन्हें तमिलनाडु और केरल की राजनीति का अच्छा अनुभव है। उनका कहना है कि भाजपा इस बार केरल की दो ध्रुवीय ( एलडीएफ-यूडीएफ) तस्वीर बदलना चाहती है। वह जनता के बीच एक तीसरे विकल्प के रूप में जा रही है। पिछले कुछ समय में भाजपा का केरल में प्रभाव बढ़ा है। उम्मीद है कि इस बार भाजपा को 30 से 32 फीसदी वोट मिल सकते हैं। पार्टी ने 70 प्लास सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है। केरल में बहुमत के लिए 71 सीटें चाहिए। यानी एक सीट वाली भाजपा भी सरकार बनाने के इरादे से चुनाव लड़ रही है। भाजपा के दावों में अतिशयोक्ति हो सकती है लेकिन उसने केरल में अपनी धमक बढ़ायी है। ऐसे में कांग्रेस के सामने एक नयी चुनौती आ गयी है।