कमलनाथ के गढ़ में भी सीट चाहती थीं मायावती, कांग्रेस अध्यक्ष ने अब बताई बात ना बन पाने की वजह
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नई दिल्ली। देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजे आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर काफी अहम होने वाले हैं। एक तरह से देखा जाए तो लोकसभा चुनाव से पहले का यह सेमीफाइनल है, जो भी पार्टी इस सेमीफाइनल में बेहतर प्रदर्शन करेगी, उसकी उम्मीदें आम चुनाव में मजबूत होंगी। इस बात का अंदाजा भाजपा और कांग्रेस दोनों को है, यही वजह है कि दोनों ही दल इन तमाम राज्यों में अपनी पूरी ताकत झोंकने में जरा सी भी संकोच नहीं कर रही हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश दोनों ही दलों के लिए काफी अहम है, क्योंकि इन दोनों राज्यों में कुल 430 विधानसभा सीटें हैं।
एमपी में नहीं बनी कांग्रेस-बसपा में बात
कांग्रेस और भाजपा दोनों ही चुनाव से पहले तमाम स्थानीय दलों के साथ गठबंधन किया है ताकि वह प्रदेश में अपनी स्थिति को मजबूत कर सके। 2019 के चुनाव को देखे तो सपा और बसपा को काफी अहम दल माना जा रहा है क्योंकि अकेले उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा की सीटें हैं। यही वजह है कि माना जा रहा था कि 2019 से पहले बसपा, सपा और कांग्रेस एक साथ मिलकर इन राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। लेकिन मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बसपा के बीच गठबंधन नहीं हो सका और दोनों दलों ने एक दूसरे के खिलाफ जमकर बयानबाजी की। मायावती ने खुले तौर पर कांग्रेस की आलोचना की थी। लेकिन एमपी में बसपा के साथ गठबंधन नहीं हो पाने की असल वजह आखिरकार कांग्रेस ने खुलकर सामने रखी है।
कमलाथ के गढ़ में चाहती थीं सीट
एमपी में बसपा के साथ गठबंधन नहीं हो पाने की वजह के बारे में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि मायावती चाहती थीं कि हम उन्हें इंदौर, छिंदवाड़ा में सीटें दे। लेकिन यहां उनके पास एक हजार वोट भी नहीं हैं, यूं कहें कि एक भी वोट नहीं है। ऐसे में बसपा क्यों यहां सीटें मांग रही थी यह हमारी समझ से परे हैं। कमलनाथ ने कहा कि बसपा जिस तरह की सीटें चाहती थी, अगर हम उन्हें वह सीटें दे देते तो वह भाजपा को तोहफा देने जैसा होता। गौर करने वाली बात है कि छिंदवाड़ा से कमलनाथ ने नौ बार लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की है।
50 सीटें चाहती थीं मायावती
कमलनाथ ने कहा कि हम बसपा को 25-30 सीटें देने को तैयार थे, लेकिन हम यह जानना चाहते थे कि वह कौन सी सीटें चाहती है, ताकि हम इस बात का आंकलन कर सके कि क्या बसपा इन सीटों पर जीत सकती है। हम इस बात को सुनिश्चित करना चाहते थे कि उन्ही सीटों को बसपा को दिया जाए जहां वह भाजपा को हरा सकती है। मायावती 50 सीटों की मांग कर रही थीं। लेकिन दोनों ही पार्टियों के बीच बात नहीं बन सकी और हमने कहा कि बात नहीं बन रही है।
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