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हिंडनबर्ग रिपोर्ट: गौतम अदानी का साम्राज्य हिलाने वाली रिसर्च रिपोर्ट के पीछे क्या कोई एजेंडा है?

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ऐसे वक्त जारी हुई जब दो दिन बाद गौतम अदानी की कंपनी शेयर बाज़ार में सेकेंड्री शेयर जारी करने वाली थी. ऐसे में उसकी मंशा को लेकर शक ज़ाहिर किया जा रहा है.

By BBC News हिन्दी
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गौतम अदानी
REUTERS/Amit Dave
गौतम अदानी

अमेरिकी फॉरेंसिक फ़ाइनेंशियल कंपनी हिंडनबर्ग ने अदानी समूह को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं. अदानी ग्रुप के रिपोर्ट को निराधार बताते हुए कुछ सवालों के जवाब भी दिए हैं, लेकिन इसके बावजूद निवेशकों में घबराहट का माहौल है.

'अदानी ग्रुपः हाउ द वर्ल्ड्स थर्ड रिचेस्ट मैन इज़ पुलिंग द लार्जेस्ट कॉन इन कॉर्पोरेट हिस्ट्री' नाम की यह रिपोर्ट 24 जनवरी को प्रकाशित हुई थी.

ये तारीख़ इसलिए अहम है कि इसके दो दिन बाद ही 27 जनवरी को गौतम अदानी की कंपनी शेयर बाज़ार में सेकेंड्री शेयर जारी करने वाली थी. ये कोई छोटा-मोटा इश्यू नहीं है, बल्कि अब तक का सबसे बड़ा 20 हज़ार करोड़ रुपये का एफ़पीओ है.

https://twitter.com/HindenburgRes/status/1618077612680818688

बात हो रही है अमेरिका की फाइनेंशियल फ़ॉरेंसिक रिसर्च कंपनी हिंडनबर्ग की जो भारतीय मीडिया में लगातार सुर्खियां बटोर रही है.

वजह है उसकी रिपोर्ट में शामिल वो 88 सवाल, जो उसने अरबपति कारोबारी गौतम अदानी के नेतृत्व वाले अदानी ग्रुप से पूछे हैं. इसमें कई सवाल बेहद गंभीर हैं और सीधे-सीधे अदानी ग्रुप की कॉर्पोरेट गवर्नेंस पर निशाना साधते हैं.

रिपोर्ट के सार्वजनिक होते ही अदानी ग्रुप के निवेशकों में खलबली मच गई. ग्रुप के शेयरों पर बिकवाल हावी हो गए और देखते ही देखते अदानी ग्रुप के निवेशकों और प्रमोटर्स के लाखों करोड़ रुपये की बाज़ार पूंजी स्वाहा हो गई.

फ़ोर्ब्स बिलिनियर्स इंडेक्स के मुताबिक गौतम अदानी की नेटवर्थ में 18 फ़ीसदी की गिरावट आई और दुनिया के अरबपतियों की फ़ोर्ब्स मैग्ज़ीन की रियल टाइम लिस्ट के मुताबिक़ वह अमीरों की सूची में चौथे स्थान से खिसककर सातवें पायदान पर पहुँच गए.


  • एक रिसर्च रिपोर्ट और सवालों के घेरे में गौतम अदानी और उनका समूह.
  • एक रिसर्च रिपोर्ट और अदानी समूह के निवेशकों में मची खलबली
  • एक रिसर्च रिपोर्ट और अदानी समूह की बाज़ार पूंजी को 4 लाख करोड़ रुपये का नुक़सान
  • एक रिसर्च रिपोर्ट और दुनिया का चौथा सबसे अमीर शख़्स लुढ़ककर सातवें पायदान पर पहुँचा
  • अदानी समूह ने विदेशी निवेशकों को दिया प्रेजेंटेशन, दिए कुछ सवालों के जवाब

अदानी ग्रुप ने इस रिपोर्ट को ख़ारिज करते हुए पूरी तरह निराधार बताया है.

पृष्ठभूमि में भारत के राष्ट्रीय ध्वज के साथ अदानी ग्रुप के सीएफ़ओ जुगेशिंदर सिंह ने एक वीडियो संदेश में कहा कि इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने से पहले ग्रुप से किसी तरह का संपर्क नहीं किया गया और न ही फैक्ट्स को वेरिफ़ाई करने का प्रयास किया गया.

अदानी ग्रुप के लीगल हेड जतिन जालुंधवाला ने भी कहा कि अदानी ग्रुप हिंडनबर्ग रिसर्च के ख़िलाफ़ भारत और अमेरिका में 'सुधारात्मक और दंडात्मक' कार्रवाई करने पर विचार कर रहा है.

https://twitter.com/bqprime/status/1618203528727756801

वहीं, हिंडनबर्ग रिसर्च अपनी रिपोर्ट पर कायम है. ट्विटर पर अपने जवाब में हिंडनबर्ग ने कहा, "अभी तक अदानी ने एक भी जवाब नहीं दिया है. साथ ही जैसा कि हमें उम्मीद थी, अदानी ने धमकी का रास्ता चुना."

मीडिया को एक बयान में अदानी ने हमारी 106 पन्नों की, 32 हज़ार शब्दों की और 720 से ज़्यादा मिसालों वाली दो सालों में तैयार की गई रिपोर्ट को "बिना रिसर्च का" बताया और कहा कि वो हमारे ख़िलाफ़, "दंडात्मक कार्रवाई के लिए अमेरिकी और भारतीय कानूनों के तहत प्रासंगिक प्रावधानों का मूल्यांकन कर रहे हैं."

"जहां तक कंपनी के द्वारा क़ानूनी कार्रवाई की धमकी की बात है, तो हम साफ़ करते हैं, हम उसका स्वागत करेंगे. हम अपनी रिपोर्ट पर पूरी तरह से कायम हैं, और हमारे ख़िलाफ़ उठाए गए क़ानूनी कदम आधारहीन होंगे."

"अगर अदानी गंभीर हैं, तो उन्हें अमेरिका में केस दायर करना चाहिए. दस्तावेज़ों की एक लंबी लिस्ट है. क़ानूनी प्रक्रिया के दौरान हम उनसे इनकी मांग करेंगे."

https://twitter.com/HindenburgRes/status/1618602694436081668

हालाँकि इन 88 सवालों के जवाब में दो अहम सवाल हिंडनबर्ग से भी पूछे जा रहे हैं- पहला, ख़ुद को 'एक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग' बताने वाली कंपनी अरबों रुपये का मुनाफ़ा भुनाने के लिए तो ऐसा नहीं कर रही और दूसरा सवाल रिपोर्ट की टाइमिंग को लेकर है.

शुक्रवार को अदानी एंटरप्राइसज़ेज का 20 हज़ार करोड़ रुपये का एफ़पीओ आने वाला था, उससे ठीक पहले क्या इसे जानबूझकर जारी किया गया?

अदानी
REUTERS/Amit Dave
अदानी

क्या है शॉर्ट सेलिंग?

इस पूरे मामले को समझने से पहले ये जान लेते हैं कि शॉर्ट सेलिंग आख़िर है क्या, जिसे लेकर कई लोग हिंडनबर्ग की मंशा पर शक जता रहे हैं.

दरअसल, शॉर्ट सेलर उसे कहते हैं, जो अपने पास शेयर न होते हुए भी इन्हें बेचता है. (आप सोच रहे होंगे कि ये क्या बात हुई, जब शेयर हैं ही नहीं हैं तो बेचा क्या जा रहा है.)

इसे ऐसे समझिए... अगर एक शॉर्ट सेलर को उम्मीद है कि 100 रुपये का शेयर 60 रुपये तक के स्तर तक टूट सकता है तो वह ब्रोकर से शेयर उधार लेकर इसे उन दूसरे निवेशकों को बेच देगा, जो इसे 100 रुपये के भाव पर ख़रीदने को तैयार हैं. जब यह शेयर 60 के स्तर तक गिर जाएगा तो शॉर्ट सेलर इसे ख़रीदकर ब्रोकर को लौटा देगा. इस तरह हर शेयर पर वह 40 रुपये मुनाफ़ा कमा सकता है.

हिंडनबर्ग ने उठाए गंभीर सवाल

अदानी ग्रुप ने विदेशों में बनाई अपनी कई कंपनियों का इस्तेमाल टैक्स बचाने के लिए किया?

रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि टैक्स हेवन देशों (मॉरीशस और कई कैरेबियाई देश- इन देशों में पैसा जमा करने या व्यापार के लिए लगाई गई रकम का स्रोत बताना ज़रूरी नहीं है. साथ ही इन देशों में टैक्स भी काफी कम या नहीं देना पड़ता है) में कई ऐसी फर्जी कंपनियां हैं जिनके पास अदानी समूह की कंपनियों की हिस्सेदारी है.

अदानी समूह ने इस सवाल का सीधे-सीधे कोई जवाब नहीं दिया है. लेकिन कहा, "जहाँ तक कॉर्पोरेट गवर्नेंस का सवाल है तो समूह की चार बड़ी कंपनियां उभरते बाज़ारों ही नहीं बल्कि दुनिया की उस सेगमेंट या सेक्टर की चोटी की सात कंपनियों में शामिल हैं."

गौतम अदानी के छोटे भाई राजेश अदानी को ग्रुप का एमडी क्यों बनाया गया है, जबकि उनके ख़िलाफ़ कस्टम टैक्स चोरी, आयात से जुड़े फ़र्ज़ी काग़ज़ात तैयार करने और अवैध कोयले का इंपोर्ट करने का आरोप लगाया गया था.

गौतम अदानी के बहनोई समीर वोरा अहम पद पर क्यों? समीर का नाम बेनामी कंपनियों के ज़रिये डायमंड ट्रेडिंग में आने के बाद भी उन्हें अदानी ऑस्ट्रेलिया डिवीजन का एक्जीक्यूटिव डायेरक्टर क्यों बनाया गया है.

गौतम अदानी के भाई विनोद अदानी के ख़िलाफ़ भी सरकारी एजेंसियां जाँच कर रही हैं. उनके ख़िलाफ़ विदेशों में फ़र्जी कंपनियों के ज़रिये अरबों डॉलर अदानी की कंपनियों में लगाने के आरोप हैं, जिसमें हवाला की रकम भी शामिल है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस रकम के ज़रिये अदानी ग्रुप की कंपनियों के शेयरों के भाव बढ़ाए गए.

अदानी
Getty Images
अदानी

अदानी समूह का कहना है कि हिंडनबर्ग के 88 में से 21 सवाल वो हैं जो पहले से ही सार्वजनिक हैं. हिंडनबर्ग का ये दावा ग़लत है कि ये उनकी दो साल से अधिक की जाँच पर आधारित हैं, जबकि जिन नतीजों पर वो पहुँचा है वो दस्तावेज़ 2015 के बाद से कंपनी ने ख़ुद अलग-अलग मौकों पर जारी किए (डिस्क्लोज़र) हैं. ये सवाल लेन-देन, राजस्व विभाग और अदालती मामलों से जुड़े हैं.

अदानी समूह की कुछ कंपनियों के ऑडिटर्स पर सवाल- अदानी इंटरप्राइसेज़ और अदानी टोटल गैस का ऑडिट ऐसी कंपनी से कराया गया जो बहुत छोटी है और इसकी कोई वेबसाइट तक नहीं है. इसके चार पार्टनर्स और 11 कर्मचारी हैं और ये ऑडिट कंपनी सिर्फ़ एक और सूचीबद्ध कंपनी का ऑडिट ही करती है. रिसर्च कंपनी का आरोप है कि ऐसे में इस कंपनी के लिए ऑडिट और भी मुश्किल हो जाता है, जबकि अदानी इंटरप्राइसेज़ की 156 सब्सिडियरियां हैं और कई जॉइंट वेंचर्स हैं.

इस पर अदानी समूह का जवाब है कि सूचीबद्ध नौ में से 8 कंपनियों की ऑडिटिंग 6 बड़े ऑडिटर्स करते हैं. अदानी टोटल गैस की ऑडिटिंग भी छह बड़े ऑडिटर्स में से किसी एक को सौंपे जाने की योजना है.

आय और बैलेंसशीट में हेर-फेर? हिंडनबर्ग ने अपनी रिसर्च रिपोर्ट में दावा किया है कि अदानी समूह की कुछ कंपनियों में आय को वास्तविक से अधिक दिखाया गया और बैलेंसशीट के साथ हेरफेर किया गया.

जहाँ तक ग्रुप की कंपनियों की आय बढ़ाकर दिखाने या इनकी बैलेंसशीट में हेरफेर के आरोप की बात है तो नौ सूचीबद्ध कंपनियों में से छह कंपनियां आय, लागत और विस्तार पर खर्च के लिए उस सेक्टर विशेष की नियामक संस्था की समीक्षा के दायरे में आती हैं, जो नियमित रूप से होती है.

अदानी समूह पर कर्ज़ का भारी बोझ? रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रमोटर्स ने शेयरों को गिरवी रखकर उधार लिया है, अदानी ग्रुप पर कर्ज़ का भारी बोझ बड़ी समस्या है.

अदानी समूह: जहाँ तक शेयरों पर उधार लेने का सवाल है तो ये उधारी प्रमोटर्स होल्डिंग की चार फ़ीसदी से भी कम है.

निवेशक और विश्लेषक पहले भी अदानी समूह की शेयर बाज़ार में लिस्टेड कंपनियों पर कर्ज़ के बोझ को लेकर चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं. स्टॉक एक्सचेंज को दी गई जानकारी के मुताबिक मार्च 2022 के अंत तक अदानी समूह की छह कंपनियों अदानी इंटरप्राइसेज़, अदानी ग्रीन एनर्जी, अदानी पोर्ट्स, अदानी पावर, अदानी टोटल गैस और अदानी ट्रांसमिशन पर 1.88 लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ था.

रेफ़िनिटिव ग्रुप द्वारा जारी आंकड़े भी बताते हैं कि अदानी ग्रुप की सात सूचीबद्ध कंपनियों पर कर्ज़ उनके इक्विटी से ज़्यादा है. अदानी ग्रीन एनर्जी पर तो इक्विटी से दो हज़ार प्रतिशत ज़्यादा कर्ज़ है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अदानी ग्रुप की भारतीय शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध सात कंपनियों के शेयरों की कीमत इसी सेक्टर की प्रतिस्पर्धी कंपनियों के मुक़ाबले बहुत अधिक मूल्य पर हैं और इनका वैल्यूएशन 85 प्रतिशत से अधिक है.

हिंडनबर्ग अपनी रिपोर्ट में कहता है, "अगर आप हमारी जाँच रिपोर्ट को नकार भी दें और अदानी समूह के वित्तीय लेखा-जोखा का बारीक विश्लेषण करें तो आप पाएंगे कि इसकी सात लिस्टेड कंपनियों में 85 पर्सेंट तक की गिरावट की संभावना है और वजह साफ़ है कि शेयरों का वैल्यूएशन आसमान की ऊँचाई पर है."

मोदी के साथ अरबपति
ANI
मोदी के साथ अरबपति

रिपोर्ट की विश्वसनीयता का दावा

हिंडनबर्ग का दावा है कि उसकी रिपोर्ट दो साल तक चली रिसर्च के बाद तैयार हुई है और इसके लिए अदानी ग्रुप में काम कर चुके पूर्व अधिकारियों के साथ-साथ कई अन्य लोगों से भी बात की गई है और कई दस्तावेज़ों को आधार बनाया गया है.

कंपनी का दावा है कि उसके पास निवेश को लेकर दशकों का अनुभव है. वैसे तो फाइनेंशियल रिसर्च वाली हर कंपनी ऐसा दावा करती है, लेकिन इस कंपनी के पास ऐसा क्या खास है?

कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि निवेश के लिए फ़ैसले देने के लिए वो विश्लेषण को आधार तो बनाती है ही, साथ ही वह इन्वेस्टिगेटिव रिसर्च और सूत्रों से मिली ऐसी गुप्त जानकारियों पर रिसर्च करती है, जिन्हें खोज निकालना काफी मुश्किल होता है. इस कंपनी के नाम के पीछे भी एक ख़ास कहानी है.

हादसे पर क्यों नाम रखा हिंडनबर्ग?

कंपनी का नाम हिंडनबर्ग हादसे पर रखा गया है. 1937 के हिंडनबर्ग हादसे में 35 लोगों की मौत हो गई थी.

हिंडनबर्ग एक जर्मन एयर स्पेसशिप था. आग लगने की वजह से ये तबाह हो गया था. रिसर्च कंपनी का मानना है कि चूंकि हाइड्रोजन के गुब्बारों में पहले भी हादसे हो चुके थे, ऐसे में यह हादसा टाला जा सकता था.

एयरलाइंस ने इस स्पेसशिप में जबरन 100 लोगों को बिठा दिया था. कंपनी का दावा है कि हिंडनबर्ग हादसे की तर्ज़ पर ही वो शेयर बाज़ार में हो रहे गोलमाल और गड़बड़ियों पर नज़र रखते हैं. उनकी पोल खोलना और सामने लाना हमारा उद्देश्य है.

अदानी
SUJIT JAISWAL/AFP via Getty Images
अदानी

हिंडनबर्ग का ट्रैक रिकॉर्ड

कंपनी की वेबसाइट ने दावा किया है कि हिंडनबर्ग रिसर्च कंपनी अपनी रिपोर्ट्स और अन्य तरह की कार्रवाइयों से पहले भी कई कंपनियों के शेयर्स गिरा चुकी है.

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ हिंडनबर्ग ने साल 2020 के बाद से 30 कंपनियों की रिसर्च रिपोर्ट उजागर की है और रिपोर्ट सार्वजनिक होने के अगले ही दिन उस कंपनी के शेयर औसतन 15 फ़ीसदी तक टूट गए.

रिपोर्ट में बताया गया है कि अगले छह महीने में इन कंपनियों के शेयरों में औसतन 26 फ़ीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज की गई. अगर अदानी समूह की ही बात करें तो रिपोर्ट आने के बाद दो कारोबारी सत्रों में कंपनियों के शेयर 25 फ़ीसदी से अधिक टूट चुके हैं.

हालाँकि एक रिसर्च कंपनी में विश्लेषक आसिफ़ इक़बाल का कहना है कि क्योंकि हिंडनबर्ग ने ख़ुद माना है कि उसकी अदानी ग्रुप के शेयरों में शॉर्ट पॉज़िशन है, इसलिए किसी के लिए भी यह कहना आसान है कि इस रिसर्च रिपोर्ट के पीछे 'एक एजेंडा' है.

आसिफ़ कहते हैं, "क्योंकि इस रिपोर्ट से हिंडनबर्ग को सीधे-सीधे आर्थिक लाभ होना है, इसलिए इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसके पीछे एजेंडा हो सकता है, लेकिन रिपोर्ट में भारी-भरकम कर्ज़, हाई वैल्युएशन समेत जो आरोप लगाए गए हैं, कई निवेशक उनके बारे में लंबे समय से बातें कर रहे हैं."

शेयर बाज़ार विश्लेषक अरुण केजरीवाल भी हिंडनबर्ग की मंशा को लेकर सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना है, "जो शेयरहोल्डर एक्टिविस्ट है, उसका मकसद पैसा कमाना नहीं होता है. शेयर को शॉर्ट करना और फिर पूछना कि हमारे सवालों का जवाब दो. ये तो साफ़-साफ़ ब्लैकमेलिंग है. इसके लिए रेग्युलेटर है, उसे लिखा जाना चाहिए. ये 88 सवाल सेबी से पूछे जाने चाहिए थे और सेबी को ही इसके जवाब तलाशने चाहिए थे."

https://twitter.com/business/status/1619004060341772288

पहले भी उठे हैं सवाल

फ़िंच ग्रुप की कंपनी क्रेडिट-साइट्स ने पिछले साल अगस्त में एक रिपोर्ट जारी कर बताया था कि अदानी ग्रुप पर भारी कर्ज़ का बोझ है उसने इसे 'डीपली ओवरलीवरेज्ड' बताया था. इसके बाद अदानी ग्रुप की कई कंपनियों के शेयरों की कीमतें भी गिर गई थीं.

लेकिन अदानी ग्रुप के फाइनेंस और मैनेजमेंट से जुड़े कुछ अधिकारियों से बात करने के बाद एक महीने के भीतर ही संशोधित रिपोर्ट जारी कर दी गई.

दावा किया गया कि ग्रुप के कर्ज़ का स्तर अभी इतना नहीं बढ़ा है कि उसे मैनेज न किया जा सके. साथ ही यह भी कहा गया कि समूह की विस्तार योजनाओं की फंडिंग मुख्य तौर पर कर्ज़ के ज़रिए नहीं की जा रही है.

अदानी ग्रुप मैनेजमेंट का पक्ष जानने के बाद क्रेडिट-साइट्स ने समूह की जिन दो कंपनियों के आंकड़ों में संशोधन किया था, वे थीं अदानी ट्रांसमिशन और अदानी पावर. हालांकि करेक्शन के बावजूद क्रेडिट-साइट्स ने अदानी समूह की कंपनियों के बारे में अपनी सिफ़ारिशों में कोई बदलाव नहीं किया.

गौतम अदानी के लिए झटका

साल 2022 में दुनिया के शीर्ष 10 अमीरों में गौतम अदानी इकलौते शख्स थे, जिनकी दौलत में इज़ाफा हुआ था.

साल 2023 में अभी तक गौतम अदानी चोटी के 10 अमीरों में इकलौते हैं, जिनकी दौलत अरबों डॉलर कम हो गई है. अदानी ग्रुप की सूचीबद्ध 10 कंपनियां, जिनमें हाल ही में ख़रीदी गई अंबुजा सीमेंट्स और एनडीटीवी भी शामिल हैं, बिकवाली का शिकार हुईं.

ब्लूमबर्ग बिलियनर्स इंडेक्स की ताज़ा रैंकिंग में गौतम अदानी चौथे स्थान से फिसलकर सातवें स्थान पर पहुँच गए हैं.

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से क्या निवेशकों को घबराना चाहिए?

बाज़ार विश्लेषक मानते हैं कि इस रिसर्च रिपोर्ट का असर अदानी समूह के शेयरों के अलावा बाज़ार पर भी दिखा है. रिपोर्ट में जो सवाल उठाए गए हैं, लोग उनके जवाब अदानी समूह के बजाय सेबी से जानना चाहते हैं.

शेयर एनालिस्ट आसिफ़ इक़बाल का कहना है कि इस तरह की रिपोर्ट छोटी अवधि में काफ़ी नुक़सान पहुँचाती है.

आसिफ़ कहते हैं, "अगर कंपनी के फंडामेंटल्स मज़बूत हैं और अदानी समूह इन आरोपों का सही से जवाब देता है तो निवेशकों का घाटा थम सकता है. लेकिन एक बात तय है अदानी समूह जितना बड़ा है और जितना उस पर कर्ज़ का बोझ है इसकी आँच कुछ बैंकों पर भी पड़नी तय है."

बाज़ार विश्लेषक अरुण केजरीवाल कहते हैं, "जहाँ तक इस रिपोर्ट के असर की बात है तो अदानी इंटरप्राइसेज़ के एफ़पीओ पर तो इसका असर होना तय है. और क्योंकि कंपनी ये एफ़पीओ बैंकों का कुछ कर्ज़ उतारने के लिए लाई है, इसलिए इसके नाकाम होने की स्थिति में कुछ बड़े बैंकों और वित्तीय संस्थाओं पर इसका असर पड़ेगा ही."

गौतम अडानी
INDRANIL MUKHERJEE/AFP via Getty Images
गौतम अडानी

एयूएम कैपिटल के रिसर्च प्रमुख राजेश अग्रवाल मानते हैं कि रिसर्च रिपोर्ट में कुछ आरोप बेहद गंभीर हैं. राजेश कहते हैं, "ऐसा तो नहीं लगता कि हिंडनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट का असर अदानी समूह की कंपनियों पर लंबे समय तक रहेगा. विदेशी निवेशक इससे प्रभावित ज़रूर हो सकते हैं, लेकिन क्योंकि उनके पास ख़ुद की रिसर्च टीम होती है, तो वो निवेश करने या शेयर बेचने का फ़ैसला इस तरह की रिपोर्ट के आधार पर कम ही लेते हैं."

राजेश कहते हैं, "शेयरों की कीमतों को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं, लेकिन ऐसा सिर्फ़ अदानी समूहों के शेयरों के साथ नहीं है. इस रिपोर्ट से निश्चित तौर पर निवेशकों का सेंटिमेंट प्रभावित हुआ है और यही वजह है कि अदानी समूह के अलावा बैंकिंग और आईटी शेयरों में भी बिकवाली हुई है."

अमेरिकी निवेशक बिल एकमैन ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है. रॉयटर्स ने एकमैन के हवाले से लिखा है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट 'बेहद विश्वसनीय और अच्छी तरह से रिसर्च कर तैयार की गई है.'

हालाँकि उन्होंने दूसरे निवेशकों को आगाह भी किया कि क्योंकि उन्होंने ख़ुद स्वतंत्र तौर पर अदानी समूह पर रिसर्च नहीं की है, इसलिए इसे निवेश सलाह के रूप में न लिया जाए.

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