इंदू सरकार: इंदिरा गांधी के नाम पर इतनी इंटॉलरेंस क्यों है भाई?
1975, ये साल हिंदुस्तान के इतिहास में बेहद महत्व रखता है। इसी साल 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया। फिल्मों की बात करें तो 'शोले' ने रूपहले पर्दे पर इसी साल सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले थे। 1975 में फरवरी के महीने में एक और फिल्म आई थी- 'आंधी'।
गुलजार ने यह फिल्म उस वक्त बनाने की हिम्मत की थी, जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। 'आंधी' में सुचित्रा सेन और संजीव कुमार ने प्रमुख भूमिकाएं निभाईं थी। सुचित्रा सेन का किरदार इंदिरा गांधी से प्रभावित था। यह फिल्म इमरजेंसी लागू किए जाने से कुछ महीने पहले रिलीज की गई थी।
यह काम उस वक्त आसान नहीं था और आज भी उतना ही मुश्किल है। भारतीय राजनीति में 'फर्स्ट फैमिली' का दर्जा प्राप्त गांधी परिवार की निजी जिंदगी की कहानी पर्दे उतारने बॉलीवुड में हर किसी के बूते की बात नहीं है।
मधुर भंडारकर की फिल्म है इंदू सरकार
रियल लाइफ स्टोरीज पर फिल्म बनाने के लिए मशहूर मधुर भंडारकर ने हिम्मत की है और उनकी फिल्म 'इंदू सरकार' 28 जुलाई को रिलीज हो रही हैं। उम्मीद के मुताबिक फिल्म रिलीज से पहले ही विवादों से घिर गई है। कांग्रेस के नेता लगातार मधुर भंडाकर को धमकियां दे रहे हैं। कोई मुंह पर कालिख पोतने की बात कह रहा है तो कोई कुछ और।
आज कहां है वो लोग!
सवाल यह उठता है कि कांग्रेस को 'इंदू सरकार' पर आपत्ति क्यों है? कांग्रेस को तो छोड़ ही दीजिए। वे लोग कहां हैं, जो कुछ महीने पहले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश में इंटॉलरेंस उर्फ असहिष्णुता की दुहाई देते हुए अवॉर्ड वापसी की पवित्र मुहिम का हिस्सा बने हुए थे। ये बात तो खैर पुरानी हो गई। हाल में जंतर-मंतर पर 'नॉट इन माय नेम' नाम का जादू दिखाने वाले बॉलीवुड, राजनीतिक जगत और सो कॉल्ड 'बाजीगर' (मतलब वो क्लास जिसे देश की चिंता एसी रूम में बैठकर कॉफी के मग के साथ होती है) आज कहां हैं?
इसकी चाबी सिर्फ कांग्रेस के ताले से ही खुलती है?
क्या अभिव्यक्ति नाम का ये जो यंत्र है, इसकी चाबी सिर्फ कांग्रेस के ताले से ही खुलती है? क्या कांग्रेस विरोधियों को बोलते का अधिकार इस देश में नहीं होना चाहिए। राम गोपाल वर्मा लगातार सेमी पॉर्न शॉर्ट मूवीज बना रहे हैं। तीसरे दिन वाहियात बयान दे रहे हैं, उनके खिलाफ बोलने के लिए किसी के पास वक्त नहीं, लेकिन जहां बात विचारधारा की आती है, वहां देश को खतरा पैदा हो जाता है। (तस्वीर में इंदू सरकार के ट्रेलर का यूट्यूब ग्रैब)
तो ऐसी फिल्मों पर आपत्ति क्यों?
क्या इस देश में 'देव' नाम की फिल्म 2004 में रिलीज नहीं हुई, जिसमें अमरीश पुरी ने मुख्यमंत्री का किरदार निभाया था। गुजरात दंगों पर आधारित इस फिल्म में अमरीश पुरी का किरदार नेगेटिव शेड में था। क्या तब कांग्रेस को नहीं पता था वह किरदार किससे प्रभावित था? वह फिल्म रिलीज हुई, उसके बाद न जाने कितनी फिल्में बनीं, जिनमें गुजरात दंगे दिखाए गए। आरएसएस समेत न जाने कितने ही हिंदूवादी संगठनों को फिल्मों में दर्शाया जाता है। दिक्कत क्या है, जब वैसी फिल्में बन सकती हैं तो ऐसी फिल्मों पर आपत्ति क्यों? (तस्वीर में गांधी परिवार)
मधुर भंडारकर की फिल्म के विरोध
मधुर भंडारकर की फिल्म के विरोध पर सो कॉल्ड इंटेलुक्चअल धीरे से सो सॉरी बोलकर कहां निकल गए हैं? उन्हें बोलना चाहिए, हमें बीजेपी, जदयू, आरजेडी से मिलते-जुलते किरदार फिल्मों में दिखाए जाने पर कोई आपत्ति नहीं, तो कांग्रेस की बात आते ही ये गैंग कहां से खड़े हो जाते हैं? जवाब बेहद सरल है, जब से देश में 24 घंटा खबरिया चैनलों का डंका बजने लगा है, तब से विरोध प्रदर्शन फैशन बन गया है। ये शगल कुछ ऐसा ही है, जैसे कुछ लोग मंदिर सिर्फ इसलिए चले जाते हैं, क्योंकि वहां कचौडि़यां बड़ी अच्छी मिलती हैं। मैंने दिल्ली के हनुमान मंदिर में कई लोगों को ऐसा कहते सुना है।
तो उसका भी पूरा समर्थन करूंगा।
अब इससे ज्यादा और क्या कहा जाए...अब आपकी बारी है, आप मुझे भगवा, संघी, बीजेपी समर्थक जैसी बातें कह सकते हैं, लेकिन मैं अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता के नाम पर आपकी बातें सुन लूंगा, सहन कर लूंगा, क्योंकि मैं जानता हूं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता क्या होती है, इसलिए मधुर भंडाकर के साथ हूं। 'इंदू सरकार' आए और छा जाए, कल अगर पीएम नरेंद्र मोदी से जुड़ी कोई फिल्म बनती है तो उसका भी पूरा समर्थन करूंगा।