अगर अमिताभ बच्चन कांग्रेस में रहे होते तो क्या पार्टी का भविष्य कुछ और होता ?
नई दिल्ली, 04 अप्रैल। अमिताभ बच्चन 79 साल के हो चुके हैं। उम्र के इस पड़ाव पर भी उनका जलवा बरकरार है। उनकी काम करने की ऊर्जा प्रेरणादायी है। कई झंझावात आये। लेकिन उनकी अभिनय यात्रा निरंतर जारी है। वे अब भी लोगों के दिलों पर राज करते हैं। शुक्रवार को अमिताभ बच्चन फिल्म की शूटिंग से वक्त निकाल कर पूजा करने के लिए ऋषिकेश पहुंचे थे। उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ जुट गयी।
साधु संतों ने भी उनके प्रति विशेष स्नेह दर्शाया। कहते हैं कामयाबी की उम्र बहुत छोटी होती है। लेकिन अमिताभ बच्चन ने इस मिथक को तोड़ दिया है। उनकी यह सफलता देख कर कुछ जानकारों का कहना है कि अगर अमिताभ बच्चन कांग्रेस की राजनीति में रमे-जमे रहते तो उसका भविष्य कुछ और होता।
अमिताभ बच्चन- कला, साहित्य और राजनीति की त्रिवेणी
मायानगरी के फलक पर कई सितारे उभरे और अस्त हो गये। लेकिन अमिताभ बच्चन आज भी अपनी चमक बिखेर रहे हैं। उनके जीवन में कला, साहित्य और राजनीति की त्रिवेणी प्रवाहित है। जैसे प्रयाग राज के संगम से अब सरस्वती नदी विलुप्त हो गयी है वैसे ही उनके जीवन से राजनीति का भी अंत हो गया है। अमिताभ बच्चन एक संवेदनशील कलाकार हैं। जब वे राजनीति में आये थे तब उनकी सोच किसी आम नेता से बिल्कुल अलग थी। लेकिन सवाल ये है कि इतने टैलेंटेड और एनर्जेटिक एक्टर होने के बाद भी वे राजनीति में क्यों नहीं जम पाये ? जबकि उनकी पत्नी जया बच्चन उनके बाद राजनीति में आयीं और मुस्तैदी से जमी हुई हैं। अमिताभ बच्चन के पिता डॉ. हरिवंश राय बच्चन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्रोफेसर थे। वे हिंदी के प्रतिष्ठित कवि थे। इलाहाबाद में डॉ. बच्चन और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की दोस्ती की नींव पड़ी। फिर इंदिरा गांधी और अमिताभ बच्चन की मां तेजी बच्चन पक्की सहेली बनीं। इस तरह साहित्य का राजनीति से मेल हुआ। दोनों परिवारों के बच्चे भी आपस में दोस्त बन गये। अमिताभ बच्चन की राजीव गांधी से और अमिताभ बच्चन के छोटे भाई अजिताभ बच्चन की संजय गांधी से दोस्ती हुई। ये दोस्ती परवान चढ़ी। जून 1973 में जब अमिताभ बच्चन की जया भादुड़ी से शादी हुई थी तब संजय गांधी खास तौर पर दिल्ली से मुम्बई आये थे। बारात के दिन संजय गांधी सफेद कुर्ता पाजामा पर गुलाबी पगड़ी बांध कर पूरी व्यवस्था संभाल रहे थे। प्रतिष्ठित पत्रकार डॉ. धर्मवीर भारती की पत्नी पुष्पा भारती ने अमिताभ के राजनीतिक और फिल्मी करियर के बारे में काफी कुछ लिखा है।
अमिताभ बच्चन की राजनीतिक सोच क्या थी ?
इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी के कहने पर अमिताभ बच्चन राजनीति में आये। 1984 में इलाहाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ा। जब वे चुनाव प्रचार के लिए इलाहाबाद के सुदूर गांवों में जाते थे तब उनकी संवेदनाएं नेता की तरह नहीं होती थीं। एक बार चुनाव प्रचार के दौरान वे वोट मांगने एक गांव में गये थे। लोगों ने कहा कि उनके गांव में पानी का एक भी नल नहीं है। कृपया एक नल दे दीजिए। मुम्बई के आलीशान घर में रहने वाले अमिताभ बच्चन ये सुन कर असहज हो गये। उनके घर के बाथरूम, किचेन, बेसिन, गार्डन, कहां- कहां नल नहीं था। जब चाहे घुंडी घुमाइए, पानी हाजिर। और ये एक जगह है जहां पूरे गांव में एक भी नल नहीं है। कितनी असमानता है जीवन में। कितने दुख की बात है कि आज छोटी जरूरत के लिए भी आम आदमी को नेता के सामने अनुनय-विनय करना पड़ता है। किसी गांव में बिजली के पोल तो हैं लेकिन बिजली नहीं है। गांव के लोगों की दशा देख कर अमिताभ बच्चन बहुत द्रवित हो गये थे। तब उन्होंने तय किया था कि अगर वे सांसद बने तो गांवों में सबसे पहले बिजली, पानी की सुविधा बहाल करेंगे। उस समय उन्होंने कहा था, अगर में जीत गया तो इस बात की जांच करूंगा कि कौन सा तंत्र है जो सरकारी सुविधाओं को लोगों तक नहीं पहुंचने दे रहा है।
“मुझे इस तरह वोट नहीं चाहिए”
इलाहाबाद चुनाव प्रचार चरम पर था। एक दिन एक प्रतिष्ठित वकील उनसे मिलने पहुंचे। उन्होंने कहा, देखिए मैं तो कायस्थ हूं, आपके साथ रहूंगा ही। लेकिन आप 'उनके" साथ भी घूमिए। वे ब्रह्मण हैं। उनके साथ प्रचार में जाइएगा तो आपको ब्राह्मण वोट भी मिलेगा। अमिताभ यह सुन कर आवाक रह गये। उन्होंने वकील महोदय से तो कुछ नहीं कहा, लेकिन मन ही मन कहा, मुझे इस तरह वोट नहीं चाहिए। अमिताभ बच्चन को यह सुझाव इसलिए दिया गया था क्योंकि उनके सामने लोकदल के मजबूत नेता हेमवती नंदन बहुगुणा खड़े थे। वे ब्राह्मण थे। लेकिन अमिताभ बच्चन जातिवाद के आधार पर वोट नहीं मांगना चाहते थे। उस समय वे सुपरस्टार थे। लोकप्रियता बुलंदी पर थी। ऐसे में उन्हें किसी समीकरण की जरूरत ही क्या थी। लोग तो उनके दीवाने थे। लेकिन कुछ लोगों का कहना था कि फिल्म की लोकप्रियता अलग बात है और चुनाव लड़ना अलग बात है। हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके थे। इलाहाबाद में पढ़े थे। मंझे हुए नेता थे। लेकिन जब चुनाव के नतीजे आये तो अमिताभ बच्चन ने धमाका कर दिया। उन्होंने एक लाख 87 हजार 795 वोटों से हेमवती नंदन बहुगुणा को हरा दिया। अमिताभ बच्चन ने राजनीति को जनसेवा समझा था। लेकिन तीन साल बाद ही उनका राजनीति से मोहभंग हो गया और उन्होंने 1987 में संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। अगर वे कांग्रेस में रहे होते तो क्या कांग्रेस की स्थिति ऐसी होती ? क्या कांग्रेस को नेतृत्व संकट से जूझना पड़ता ?
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