जुनैद के परिवार को इंसाफ़ के लिए कितना करना होगा इंतज़ार
पाँच साल पहले जुनैद को चलती ट्रेन में मार डाला गया था, उनकी हत्या का मुक़दमा अब भी अदालत में लटका है.
भारत के सुप्रीम कोर्ट से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर हरियाणा के फ़रीदाबाद के खंडावली गाँव के क़ब्रिस्तान में जुनैद की क़ब्र पर लगा पत्थर अब पुराना पड़ने लगा है, लेकिन उनके हत्यारों को अब तक सज़ा नहीं मिली है.
इंसाफ़ का इंतज़ार कर रहे उनके परिवार की उम्मीदें अब कमज़ोर हो रही हैं और घटना के पाँच साल बाद भी उन्हें लगता है कि इंसाफ़ अब भी बहुत दूर है.
17 साल के जुनैद की जून 2017 में दिल्ली से लौटते वक़्त एक ट्रेन में हत्या कर दी गई थी. इस हमले में उनके दो भाई भी घायल हुए थे.
भीड़ के हाथों हिंसा की इस घटना के वीडियो वायरल हुए थे और इसे भारत में मुसलमानों पर बढ़ रहे अत्याचार के सिलसिले की एक कड़ी के रूप में देखा गया था.
जुनैद की हत्या के सभी अभियुक्तों को डेढ़ साल के भीतर ही ज़मानत मिल गई थी. कुछ अभियुक्त कुछ महीनों के भीतर ही ज़मानत पर रिहा हो गए थे.
जुनैद के परिवार ने अभियुक्तों की ज़मानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनैती दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में फ़रीदाबाद के ट्रायल कोर्ट की कार्रवाई पर स्टे लगा दिया था. हत्या का मुक़दमा अभी फ़रीदाबाद सत्र न्यायालय में ही है.
जुनैद के परिवार ने हत्या की जाँच सीबीआई से कराने की अर्ज़ी डाली थी लेकिन पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने ये मामला सीबीआई को ट्रांसफ़र करने से इनकार कर दिया था.
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जुनैद की हत्या का घटनाक्रम
22.6.2017: दिल्ली से बल्लभगढ़ लौटते वक़्त ट्रेन में जुनैद की हत्या
23.6.2017: पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज की
27.6.2017: जाँच एजेंसी ने दो चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज किए जिन्होंने पुलिस को घटना के 4 अभियुक्तों के बारे में बताया.
29.06.201: सभी चार अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया. इनके नाम हैं-- रामेश्वर, प्रदीप, गौरव और चंद्र प्रकाश
08.7.2017 : जुनैद को कथित तौर पर चाकू मारने वाले पाँचवें अभियुक्त नरेश कुमार को पकड़ा गया
24.7.2017: चंद्र प्रकाश ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश फ़रीदाबाद की अदालत में ज़मानत की अर्ज़ी डाली
28.7.2017: अभियुक्त गौरव ने भी अतिरिक्त सत्र न्यायालय में ज़मानत की अर्ज़ी लगाई
02.08.2017: गौरव, चंद्र प्रकाश और प्रदीप को सत्र न्यायालय ने ज़मानत दे दी.
19.08.2017: अभियुक्त रामेश्वर ने फ़रीदाबाद के अतिरिक्त सत्र न्यायालय में ज़मानत की अर्ज़ी डाली
06.10.2017: सत्र न्यायालय ने रामेश्वर की ज़मानत याचिका ख़ारिज की
28.03.2018: रामेश्वर दास को पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने ज़मानत दी
01.05.2018: जुनैद के परिवार ने हाई कोर्ट के निर्णय के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पेटिशन दायर की.
03.10.2018: पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने नरेश कुमार को ज़मानत दी
19.03.2018: सुप्रीम ने जुनैद के परिवार की याचिका पर निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाई
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अब भी दर्द से नहीं निकल पाया भाई
जुनैद के बड़े भाई हाशिम और शाकिर भी इस हमले में घायल हुए थे. घटना के पाँच साल बाद भी इस हमले की बुरी यादें हाशिम को परेशान करती हैं.
हाशिम कहते हैं, "पाँच साल से और आज तक जो रात गुज़री है, जो वक़्त गुज़रा है उसे मैं ही जानता हूँ. एक पल के लिए भी उस घटना को भूल नहीं पाए हैं. भूलते भी हैं तो लोग याद दिला देते हैं. मैं कहीं भी जाता हूँ तो ये कहकर ही परिचय दिया जाता है कि ये हाफ़िज़ जुनैद के भाई हैं."
"जब कोई उस बारे में पूछने की कोशिश करता है तो फ़ौरन वही सीन याद आ जाता है और मैं सर पकड़कर बैठ जाता हूँ. बहुत शर्मिंदगी होती है."
हाशिम इस समय हरियाणा वक़्फ़ बोर्ड में नौकरी करते हैं और एक मदरसे में पढ़ाते हैं. हाशिम को लगता है कि उन्हें मुसलमान होने की वजह से निशाना बनाया गया था. हालाँकि उन्होंने अपनी इस्लामी पहचान को नहीं छोड़ा है. उनकी दाढ़ी है, वो कुर्ता-पाजामा पहनते हैं और टोपी लगाते हैं.
हाशिम कहते हैं, "हमको नाजायज़ और बेरहमी से मारा गया था. क्या हम मुसलमान हैं, इसलिए हमें मारा या कुर्ता-पाजामा पहनते हैं इसलिए मारा या फिर सिर्फ़ इसलिए मारा कि हम एक मुसलमान के घर में पैदा हुए हैं?"
हाशिम जुनैद की हत्या के मामले में गवाह भी हैं. अब उनका परिवार उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहता है. हरियाणा पुलिस ने जुनैद के परिवार की सुरक्षा के लिए दो हथियारबंद जवान तैनात किए हैं.
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नहीं मिली सरकारी मदद
जुनैद का परिवार समाज से मिली मदद से नया घर बना रहा है. हालाँकि अभी ये घर अधूरा ही बना है और परिवार का कहना है कि उनका पैसा ख़त्म हो गया है.
जुनैद की हत्या के बाद कई संगठनों ने उनके परिवार की मदद की थी. सरकार की तरफ़ से भी आर्थिक मदद की घोषणा की गई थी.
हालाँकि जुनैद के परिवार का कहना है कि उन्हें जो मदद देने का भरोसा दिया गया था वो नहीं मिली.
जुनैद के पिता जलालउद्दीन कहते हैं, "खट्टर साहब ने 10 लाख देने की घोषणा की थी, फ़रीदाबाद के सांसद ने भी 20 लाख रुपए की मदद की घोषणा की थी. मैं चक्कर काटते-काटते थक गया हूँ लेकिन अभी तक किसी ने मदद नहीं की है. मैं कई बार चंडीगढ़ गया खट्टर साहब से मिलने. लेकिन वो कभी मुझसे मिले ही नहीं."
उदास मन से जलालउद्दीन कहते हैं, "एक बार जब खट्टर साहब यहाँ पास के गाँव में आए थे तब जान-पहचान के लोगों ने उनसे मिलवाने की कोशिश की थी. उनके आमने-सामने बिठा दिया था. उन्होंने एक अन्य युवक के परिवार की बात सुनी, लेकिन मेरी कोई बात नहीं सुनी."
हरियाणा वक़्फ़ बोर्ड ने जुनैद को परिवार को पाँच लाख रुपए की मदद दी थी. जुनैद के एक भाई को दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड ने भी नौकरी दी है.
जलालउद्दीन कहते हैं- मेरे दोनों बेटों की सैलरी इतनी कम है कि घर का ख़र्च भी नहीं निकल पाता है. मुक़दमे की भाग-दौड़ में भी बहुत पैसा ख़र्च हो गया है.
इंसाफ़ के लिए लड़ते रहेंगे
जुनैद छह भाइयों में पाँचवें नंबर थे. उनका भरा-पूरा परिवार यूँ तो ज़रूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष कर रहा था, लेकिन ख़ुश था.
उनकी मौत का सबसे ज़्यादा असर उनकी माँ सायरा बेग़म पर हुआ है. वो अपने जवान बेटे की मौत के सदमे से निकल नहीं पाई हैं.
जुनैद की मौत के बाद उनके पिता जलालउद्दीन को हार्ट अटैक हुआ और उन्हें सर्जरी करवानी पड़ी.
सायरा की आँखें कमज़ोर हो गई हैं और वो अब डिप्रेशन में रहती हैं. सायरा कहती हैं कि मैं शारीरिक रूप से भले कमज़ोर हो गई हूँ, लेकिन अपने बेटे को इंसाफ़ दिलाने के लिए लड़ती रहूँगी.
जुनैद की याद आते ही उनकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं. एक लंबी ख़ामोशी के बाद वो कहती हैं, "जिसके सीने में ज़ख़्म होता है वही उसके दर्द को जानता है, दूसरा कोई नहीं जानता. लोग तो कह देते हैं कि सब्र करो, इंसाफ़ मिलेगा. लेकिन मेरा दिल ही जानता है या मेरा अल्लाह जानता है कि मुझ पर क्या गुज़र रही है."
सायरा कहती हैं कि वो जानती हैं कि बेटे को इंसाफ़ दिलवाने की लड़ाई बहुत लंबी है लेकिन अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर भी वो इससे पीछे नहीं हटेंगी.
सायरा कहती हैं, "हम मामूली आदमी हैं. लोग भले ही हमें मामूली समझ रहे हों लेकिन जब तक मेरे अंदर एक-एक सांस बाक़ी रहेगी मैं उसे इंसाफ़ दिलाने के लिए लड़ती रहूँगी. मैं कमज़ोर होने की वजह से ख़ामोश नहीं हो जाउँगी."
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धार्मिक रुझान वाला परिवार
जुनैद हाफ़िज़-ए-क़ुरआन थे यानी उन्हें पूरी कुरान याद थी. वो आगे चलकर एक मदरसा खोलना चाहते थे. उनका परिवार धर्म से से जुड़ा है.
जुनैद के नाना ख़ाक़सार नूर मोहम्मद भी हाफ़िज़-ए-कुरआन हैं और एक मस्जिद में इमाम हैं.
जुनैद को याद करते हुए उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं. उन्हें उम्मीद है कि जुनैद के मामले में इंसाफ़ होगा.
नूर मोहम्मद कहते हैं, "हम इंसाफ़ के लिए लड़ेंगे, झुकना पड़ेगा तो इंसाफ़ के लिए झुकेंगे भी. हमें उम्मीद है कि अल्लाह हमारे साथ इंसाफ़ करेगा."
अपनी बात को उर्दू के एक शेर के साथ ख़त्म करते हुए वो कहते हैं, "सुना है ख़ून-ए-मज़लूम हमेशा रंग लाता है, ये सफ़ीना डूब जाता है नाइंसाफ़ी के साथ."
हालाँकि जुनैद का परिवार मानता है कि मुसलमान होने की वजह से ही उनके बेटे को निशाना बनाया गया था और इसी वजह से उन्हें इंसाफ़ मिलने में देर हो रही है.
उनके पिता जलालउद्दीन को लगता है कि हो सकता है जुनैद को इंसाफ़ मिल ही ना पाए.
वो कहते हैं, "हमें अदालत पर भरोसा है लेकिन ऐसा लगता है कि इस सरकार में अदालत भी दबाव में है और शायद जब तक मौजूदा सरकार है हमें इंसाफ़ न मिल पाए."
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