चीन से कैसे निपटी भारत की सेना, सेना ने पहली बार दी बड़ी जानकारी
भारतीय सेना के एक बड़े अधिकारी ने पहली बार बताया है कि पिछले साल भारत और चीन के बीच लड़ाई की स्थिति बन गई थी.
पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच नौ महीने तक चले तनाव के दौरान कई दफा ऐसे मौके आए जब दोनों देशों की सेनाएं युद्ध की कगार पर पहुंच गई थीं.
हालांकि, कई दौर की कमांडर लेवल की बातचीत और तनाव कम करने की कोशिशों के बाद आखिरकार दोनों देशों ने ऐलान किया कि 10 फरवरी से चरणबद्ध तरीके से भारत और चीन की सेनाएं डिसइंगेजमेंट करेंगी.
लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं के डिसइंगेजमेंट का मतलब यह है कि दोनों देशों की सेनाएं जो पिछले करीब नौ महीने से एक-दूसरे के सामने मोर्चाबंदी करके खड़ी हुई थीं, वे अपनी पोजिशंस से हट रही हैं. और इस तरह से भारत और चीन ने लद्दाख में एक विवाद के हालात को अंततः टाल दिया है.
डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया शुरू होने के बाद पहली बार भारतीय सेना के किसी मौजूदा अधिकारी ने इस मामले पर विस्तृत रूप से जानकारियाँ दी हैं.
भारतीय सेना के नॉर्दन आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल योगेश कुमार जोशी ने मंगलवार को कई मीडिया संस्थानों को इंटरव्यू दिए हैं. इनमें उन्होंने पिछले नौ महीने से दोनों देशों के बीच जारी सैन्य तनाव को लेकर कई अहम जानकारियाँ उजागर की हैं.
31 अगस्त को दोनों देश युद्ध की कगार पर आ गए थे
सीएनएन न्यूज18 को दिए इंटरव्यू में ले.जनरल वाई के जोशी ने कहा है कि इस दौरान वैसे तो कई मर्तबा दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा, लेकिन मुख्य तौर पर पिछले साल 31 अगस्त को भारत और चीन की सेनाएं युद्ध की कगार पर पहुंच गई थीं.
इस इंटरव्यू में उन्होंने बताया है कि पिछले साल 29 और 30 अगस्त को भारतीय सेना के रणनीतिक रूप से बेहद अहम कैलाश रेंज की चोटियों पर कब्जा करने के बाद ऐसे हालात बन गए थे जहां पर युद्ध होना तकरीबन तय लग रहा था.
वे बताते हैं कि भारतीय सेना के इन चोटियों पर कब्जा करने के अचानक कदम से चीन की सेना अवाक रह गई थी और यह उसके लिए रणनीतिक तौर पर एक बड़ा झटका था.
उन्होंने बताया है कि इसके बाद 31 अगस्त को चीनी पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) ने कैलाश रेंज पर भारतीय कब्जे में आई चोटियों पर काउंटर ऑपरेशन की कोशिश की. जोशी कहते हैं कि इसके चलते हालात बेहद तनावपूर्ण हो गए थे.
इसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि गलवान की घटना ने चीजों को बिलकुल बदल दिया. वे कहते हैं, "हमें खुली छूट दे दी गई कि हम अपनी मर्जी के मुताबिक ऑपरेशंस चला सकते हैं."
वे कहते हैं कि उस वक्त से सेना को ये छूट मिल गई कि जैसे ही उन्हें हालात बिगड़ते दिखाई दें वे ट्रिगर दबा सकते हैं.
लेकिन, जोशी ये भी कहते हैं, "गोली चलाने के लिए किसी साहस की जरूरत नहीं होती है. उस वक्त सबसे मुश्किल काम गोली न चलाने का साहस पैदा करना ही था. हम तकरीबन युद्ध के हालात पर पहुंच गए थे."
45 चीनी सैनिकों की मौत!
इस इंटरव्यू में ले.जनरल जोशी ने यह भी बताया है कि गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच हुई झड़प में चीनी सेना के कितने सैनिक हताहत हुए थे.
उन्होंने कहा है कि इस घटना में तकरीबन 45 चीनी सैनिक मारे गए थे.
यह पहला मौका है जबकि आर्मी ने गलवान झड़प में मरने वाले चीनी सैनिकों की संख्या के बारे में एक आँकड़ा दिया है.
हालांकि, अभी तक चीन ने आज तक इस बारे में कोई आधिकारिक खुलासा नहीं किया है कि इस झड़प में उसके कितने सैनिक मारे गए थे.
सेना की बहादुरी से बदल गया गेम
नॉर्दर्न कमांड के प्रमुख ले. जनरल वाई के जोशी ने ये भी बताया कि कैसे पिछले साल मई में चीन ने पैंगॉन्ग झील के उत्तरी किनारे पर फिंगर 4 तक भारतीय इलाके पर कब्जा कर भारत को चौंका दिया था.
वे कहते हैं कि इसके बाद कई दफा दोनों देशों के कोर कमांडरों के बीच बातचीत हुई, लेकिन चीन वापस हटने को राज़ी नहीं था.
इसके बाद सेना को निर्देश दिया गया कि वे कुछ ऐसा करें जिससे चीन को भारतीय शर्तें मानने के लिए राज़ी किया जा सके.
जोशी कहते हैं कि तब सेना ने 29 और 30 अगस्त को कैलाश रेंज की रणनीतिक रूप से अहम चोटियों पर कब्ज़ा कर लिया.
इससे चीन रणनीति रूप से बड़े नुकसान के हालात में पहुंच गया, और आखिरकार चीन को डिसइंगेजमेंट के लिए राजी होना पड़ा.
डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया कैसे होगी?
इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में ले.जनरल जोशी ने कहा है कि डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया में चार चरण शामिल हैं. हर चरण की लगातार निगरानी और वेरिफिकेशन की जाएगी.
वे कहते हैं कि डिसइंगेजमेंट के पहले चरण में आर्मर और मैकेनाइज्ड यूनिट्स को मोर्चों से पीछे हटाया जाएगा.
दूसरे और तीसरे स्टेप में नॉर्थ और साउथ किनारों से इंफेंट्री पीछे हटेंगी और चौथे स्टेप में कैलाश रेंज से डिसइंगेजमेंट होगा.
वे बताते हैं कि दूसरे चरण का डिसइंगेजमेंट पूरा होने वाला है.
डिसइंगेजमेंट पूरा होने के बाद क्या?
ले. जनरल जोशी कहते हैं कि जब चारों स्टेप पूरे हो जाएंगे और दोनों तरफ से फ्लैग मीटिंग्स के जरिए इसकी पुष्टि हो जाएगी तो इसके 48 घंटे के भीतर एक कोर कमांडर लेवल की मीटिंग होगी.
इस मीटिंग में डिसइंगेजमेंट के चरण चरण की रूपरेखा पर बात होगी. इसमें बाकी के मसलों के समाधान निकाले जाएंगे.
क्या फिंगर 4 से 8 तक सेना के पेट्रोल नहीं कर पाने से घाटा हुआ है? इस सवाल पर ले. जनरल जोशी कहते हैं कि अप्रैल 2020 तक भारतीय सेना फिंगर 3 पर धन सिंह थापा पोस्ट पर कब्जा किए हुए थी और यही भारतीय सेना की आखिरी पोस्ट थी.
वे कहते हैं कि पीएलए फिंगर 4 तक पेट्रोल करती थी. हम मानते हैं कि एलएसी फिंगर 8 तक है, जबकि चीनी मानते हैं कि एलएसी फिंगर 4 तक है.
अप्रैल 2020 के बाद पीएलए ने फिंगर 4 तक के इलाके पर कब्जा कर लिया था, उन्होंने वहां, हेलीपैड, बंकर, टेंट और दूसरे स्ट्रक्चर तैयार कर लिए थे.
इंडियन एक्सप्रेस को दिए इस इंटरव्यू में ले. जनरल जोशी कहते हैं कि दोनों पक्ष अप्रैल 2020 की स्थिति में पहुंच गए हैं. वे कहते हैं, "इसमें हमारी आखिरी पोस्ट धन सिंह थापा पोस्ट होगी और पीएलए फिंगर 8 के पूर्व पर वापस लौट जाएगी."
वे कहते हैं कि दोनों पक्षों ने फिंगर 4 से 8 तक पेट्रोलिंग नहीं करने का फैसला किया है क्योंकि दोनों पक्षों के इस इलाके को लेकर अपने-अपने दावे हैं.
"कुछ लोग भ्रम पैदा कर रहे"
ले. जनरल जोशी ने ये भी कहा है कि कुछ लोग यह भ्रम पैदा कर रहे हैं कि इस इलाके (फिंगर 4 से 8 तक) को बिना पेट्रोलिंग वाले इलाके के तौर पर स्वीकार करके हमें पीएलए के मुकाबले घाटा हुआ है.
वो कहते हैं, "असलियत यह है कि यह हमारे लिए एक बड़ी सफलता है. पहला, पीएलए हमारी दावे वाली रेखा यानी फिंगर 8 के पीछे चली गई है. दूसरा, यह एग्रीमेंट उनके फिंगर 4 तक पेट्रोलिंग के फायदे को खारिज करता है. बल्कि असलियत तो यह है कि पीएलए हमारे दावों वाले इलाके पर कोई सैन्य या दूसरी गतिविधि नहीं कर सकती है. तीसरा, वे हमारे दावे वाले इलाकों से अप्रैल 2020 के बाद बनाए गए सभी स्ट्रक्चर्स को खत्म कर रहे हैं. इस तरह से इस पूरी जमीनी हकीकत को सही संदर्भ में समझना जरूरी है."