Happy Friendship Day 2022: आजादी के वो मतवाले दोस्त जो हंसते हुए साथ फांसी पर झूल गए
Happy Friendship Day 2022: आजादी के वो मतवाले दोस्त जो हंसते हुए साथ फांसी पर झूल गए
नई दिल्ली, 06 अगस्त: भारत देश की आजादी के 75 साल पूरे की खुशी में अमृत महोत्सव के रूप में जश्न मनाया जा रहा है। वहीं भारत की स्वतंत्रता दिवस से चंद दिन पहले 7 अगस्त यानी रविवार को इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे मनाया जाएगा। इस फ्रेडशिप डे पर हम आपको देश के उन वीर सपूतों की मित्रता की कहानी सुनाने जा रहे है जिसे सुनकर आपकी आंखे नम हो जाएंगी। ये वो आजादी के मतवाले थे जो हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर साथ-साथ झूल गए।
भगत सिंह, राजभर और सुखदेव ने मरते दम तक निभाया साथ
शहीद भगत सिंह ऐसे क्रांतिकारी थे जिनके प्रयासर ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक अलग आयाम दिया। भगत सिंह और उसने दो जिगरी दोस्तों सुखदेव थापर और शिवराम हरि राजगुरु ने मरते दम तक एक दूसरे का साथ निभाया। तीनों ने हंसते हुए अपने जीवन का बलिदान दे दिया।
भगत सिंह के थे ये सच्चे मित्र
बता दें भगत सिंह के सुखदेव, राजगुरु के अलावा बट्टूकेश्वर दत्त जयदेव कपूर भगवती चरण गौरा, शिव वर्मा कई मित्र थे। ये सभी आजादी के मतलवाले दोस्त एक दूसरे को बचाने के लिए अपनी जान को जोखिम में डालने से भी नहीं घबराए। शहीद भगत सिंह ने जो नौजवान भारत सभा गठन किया था, उसमें इन मित्रों की बदौलत आगे चलकर इस सभा से हजारों की संख्या में नौजवान जुड़े थे।
सुखदेव और भगत सिंह की कैसे हुई थी दोस्ती
भगत सिंह से सुखराम की पहली मुलाकात लाहौर नेशनल कॉलेज में हुई थी, विचारधारा एक होने के कारण दोनों की चंद दिनों में अच्छी दोस्ती हो गई। ये वो ही सुखदेव थे जो महज 12 वर्ष की आयु में अंग्रेज अफसरों को सैल्यूट करने से इन्कार कर दिया क्योंकि जलियावाला बाग कांड में हुए नरसंहार को लेकर जबदस्त गुस्सा थे। दोस्ती होने के बाद भगत सिंह और सुखराम ने मिलकर देश की आजादी के लिए कई क्रांन्तिकारी घटनाओं को साथ में अंजाम दिया था। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसएिशन और नौजवान भारत सभा के इसके बाद ही सदस्य बने थे।
मित्रों के खाने के लिए भगत सिंह ने जेल में की थी अनशन
भगत सिंह वो मित्र थे जिन्होंने जेल में अनशन इसलिए कर दी थी कि जेल में बंद उनके कैदियों और मित्रों को अच्छा भोजन नहीं मिलता था। भगत सिंह के अनशन से अंग्रेज हुकमरा भी हिल गई और इस अनशन के बाद भारतीय कैदियों को जेल में अच्छा खाना मिलने लगा।
भगत सिंह के साथ मित्र राजगुरु और सुखदेव ने गिरफ्तारी दी थी
लाहौर षडयंत्र कांड में भगत सिंह और सुखदेव को राजगुरु को साथ में फांसी की सजा सुनाई गई थी ये तीनों पुलिस सहायक अधीक्षक की हत्या में शामिल थे। दिसंबर 1928 में, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए लाहौर में ब्रिटिश अधिकारी जेम्स स्कॉट की हत्या की योजना बनाई थी। हालांकि, गोली एक सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन सॉन्डर्स को मारी गई। अंग्रेजी हुकूमत ने भगतसिंह को कैद कर लिया था। उसके बाद अदालत में राजगुरु और सुखदेव ने भी भगतसिंह का साथ देते हुए गिरफ्तारी दी थी।
फांसी पर झूलने से पहले कायम की ये दोस्ती की मिसाल
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 23 मार्च 1931 को भगत सिंह और सुखदेव और राजभर को फांसी होनी थी इससे पहले जब तीनों से जेलर ने अंतिम इच्छा पूछी तो तीनों ने कहा हम मरने से पहले आपस में गले मिलना चाहते हैं। जेलर ने उनकी अंतिम इच्छा पूरी की और फांसी से पहले तीनों के हाथ का बंधन खोल दिया और तीनों ने एक दूसरे को गले लगाया और अंत में फांसी के फंदे को चूम कर हंसते हुए देश पर जान न्यौछाव कर दी थी। तीनों आजादी के मतवलों को लाहौर की सेट्रल जेल में बड़े ही गुपचुप तरीके से फांसी दी गई थी और बाद में उनका शव का अंतिम संस्कार कर दिया था।
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