गुजरात विधानसभा चुनाव में हज (HAJ)की वजह से मुश्किल में दिख रही है भारतीय जनता पार्टी
नई दिल्ली। लंबे इंतजार और विपक्ष के आरोपों के बीच चुनाव आयोग ने आज Gujarat assembly election 2017 के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी है। 9 और 14 दिसंबर को गुजरात में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होगा, 18 दिसंबर को चुनाव नतीजे आएंगे। गुजरात विधानसभा चुनाव में एच, ए, जे यानि हज फैक्टर अहम भूमिका निभाने वाला है और यदि इस तिकड़ी का असर वोट में बदल गया तो बीजेपी को बड़ी मुश्किल खड़ी होने वाली है। भले ही गुजरात के बाहर इन तीनों की लोकप्रियता न हो लेकिन गुजरात में इन युवाओं ने राजनीतिक भूकंप ला दिया है और इस भूकंप में बीजेपी की मजबूत नींव हिल रही है। कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है, उसे केवल पाना है जबकि बीजेपी के लिए गुजरात जीतना जरूरी है, नहीं तो 2019 के आम चुनाव की खतरे की घंटी शुरू हो जाएगी। गुजरात में एक महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन दौरे, ताबड़तोड़ विकास योजनाओं की शुरूआत और तमाम शहरों में रोड शो साफ दर्शाते हैं कि इस आहट को बीजेपी गंभीरता से महसूस भी कर रही है। ये आहट हाल ही हुए राज्यसभा चुनाव के वक्त से शुरू हो गई थी। तब अमित शाह का बड़ा दांव उलटा पड़ गया। सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल कांग्रेस के लिए चाणक्य की भूमिका निभाते हैं और गुजरात से ही हैं। ऐसे में राज्यसभा चुनाव में उन्हें पटखनी देने का सपना बीजेपी के लिए अपशकुन साबित हो गया। इसके पहले शंकर सिंह बाघेला और कुछ कांग्रेस विधायकों को अपने खेमे में लाकर अमित शाहर ने शतरंज की जो बिसात बिछाई वो अहमद पटेल की जीत से फीकी हो गई।
राहुल गांधी दिखे नए वर्जन में
इसके बाद गुजरात में राहुल गांधी के दौरे ने कांग्रेस में नया जोश पैदा किया। ‘विकास पागल हो गया है' का नारा सोशल मीडिया पर इस कदर छाया जिससे लगा कि कांग्रेस गुजरात को आसानी से बीजेपी को नहीं सौंपने वाली है। इसके बाद अमित शाह के बेटे जय शाह के मामले से फिर बीजेपी बैकफुट में आई। गनीमत यहीं तक नहीं है, अभी तो जंग शुरू हुई है और दिन-ब-दिन गुजरात की राजनीति में क्या क्या गुल खिलने वाले हैं, किसी को नहीं पता, पिछले लोकसभा चुनाव से ये साबित हो गया कि युवा, जातिगत समीकरण के अलावा सोशल मीडिया की भूमिका राजनीति में अहम हो चुकी है। बिहार और यूपी में भी इन तीनों पर सारे राजनीतिक दलों की कश्मकश साफ देखी और महसूस की गई। कांग्रेस और बीजेपी इन तीनों फैक्टर्स पर अपनी आंखें जमाए हुए हैं।
गुजरात विधानसभा चुनाव में तिकड़ी की भूमिका अहम
इन तीन फैक्टर्स में तीन युवाओं की तिकड़ी हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश गुजरात की राजनीति का रुख मोड़ने का माद्दा रखते हैं और इन तीनों पर कांग्रेस ने अपना पांसा फेंक कर बढ़त ले ली है तो बीजेपी ने हार्दिक के दो करीबी वरुण पटेल और रेशमा पटेल को अपने खेमे में खींच कर कुछ भरपाई करने की कोशिश की है। फिलहाल तो यही लगता है कि जिस तरफ पाटीदार होंगे, गुजरात का चुनावी ऊंट उसी करवट बैठेगा। राज्य में पाटीदार करीब 20 फीसदी है और हार्दिक पटेल उनके युवा नेता बनकर उभरे हैं। पाटीदार आरक्षण आंदोलन में उन्हें समाज का भरपूर समर्थन मिला जबकि यही पाटीदार पिछले कई चुनावों में बीजेपी का सहारा बनते आए हैं। ऐसे में सबसे बड़ी मुश्किल हार्दिक पटेल एंड कंपनी ही है जो खुद तो कांग्रेस के करीब नजर आ रहे हैं जबकि बीजेपी पाटीदार खेमे में सेंध मारने की जीतोड़ कोशिश कर रही है। गुजरात के युवाओं में दूसरा बड़ा चेहरा अल्पेश ठाकुर हैं। ये ओबीसी के नेता हैं जो राज्य में करीब पचास फीसदी हैं।
नए समीकरणों से दिलचस्प होगा गुजरात चुनाव
आरक्षण, बेरोजगारी और शराबबंदी को लेकर अल्पेश ठाकुर के आंदोलन गुजरात में चर्चित रहे हैं। युवा तिकड़ी में तीसरा चेहरा जिग्नेश मेवाणी हैं। ये दलितों के युवा नेता है जो सात फीसदी हैं। राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के संयोजक जिग्नेश मवाणी आजादी कूच आंदोलन चला चुके हैं जिसमें वो दलितों के अधिकार की बात करते हैं और मानते हैं कि बीजेपी ने दलितों के लिए कुछ नहीं किया। तो इन तीनों पर कांग्रेस ने डोरे डाल दिए हैं और इन तीनों के आंदोलन बीजेपी के विरोध की छाया तले ही पले बढ़े हैं। स्वाभाविक है कि कांग्रेस के पास बीजेपी को हराने के लिए खुद का कोई करिश्माई व्यक्तित्व नहीं है। इसके लिए इन तीनों के सहारे जातिगत समीकरण अपने पक्ष में बिठाने पर पार्टी का फोकस है और यही फैक्टर बीजेपी की परेशानी का सबसे बड़ा सबब है। यही वजह है कि गुजरात का चुनाव दिलचस्प हो चला है और बीजेपी की जीत आसान नहीं रह गई है।
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