पूरे देश में आतिशबाजी पर पूर्ण प्रतिबंध जरूरी
केरल के कोल्लम के शनिवार-रविवार की तडक़े आतिशबाजी के दौरान जो हादसा हुआ, उसमें 110 लोग मारे गए और 300 से ज्यादा घायल हुए, वैसा ही हादसा भविष्य में नहीं होगा, इसकी गारंटी कोई नहीं ले सकता है। वो इसलिये क्योंकि केरल सहित सभी राज्यों में जगह-जगह धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों के दौरान, त्यौहारों मे बड़े पैमाने पर आतिशबाजी की जाती है। पहले भी ऐसे ही हादसे हुए हैं।
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दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि केरल में मंदिरों की समिति त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड ने मंदिर उत्सव के दौरान आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगाए जाने की मांग का विरोध किया है। यानी जो 110 लोग मारे गए, उस हादसे के बावजूद धार्मिक रितिरिवाज निभाने वाले लोग सबक नहीं ले रहे हैं।
दीपावली पर अरबों टन विस्फोटक सामग्री आतिशबाजी में इस्तेमाल होती है उस दौरान लापरवाही व असावधानी वश किसी के हाथ जल जाते हैं, किसी के आंख में आतिशबाजी घुस जाती है, कहीं-कहीं तो आतिशबाजी के बाजार अग्निकाण्ड में स्वाहा हो जाते हैं।
हवा में जहर
आतिशबाजी पंरपरा का दूसरा हानिकारक पक्ष यह है कि इससे व्यापक स्तर पर पर्यावरण दूषित होता है। चारों ओर जहरीला धुंआ फैल जाता है। आमजन को सांस लेने में दिक्कत होती है। दमघोटू वातावरण हो जाता है। पशु-पक्षियों को भी बैचेनी होती है ऐसा देखा गया है। शादी-ब्याह में भी खूब छोटे-बड़े फटाखे फोडे जाते हैं शुभकार्यों में अप्रिय घटना की चिंता कोई नहीं करता।
आतिशबाजी का व्यवसाय वैध रूप में कम अवैध रूप में ज्यादा फलफूल रहा है। गांव-गांव, गली, मौहल्लों में अवैध आतिशबाजी बनाई जा रही है, उसका भंडारण किया जा रहा है।
केरल हादसे की तस्वीरें
केरल के मंदिर में आग
सवाल यह उठता है कि सरकार क्यों इन खतरनाक संभावित हादसों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती है। परंपराओं के आगे सरकार डरती है, ऐसा लगता है वर्षों पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि दीपावली पर रात 10 बजे के बाद पटाखे नहीं फोड़े जाएंगे, जन दबाव के आगे सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अमल में लाने के लिए कोई जमीनी कार्रवाई नहीं की।
सभी धर्मों के लोगों को समाजसेवियों को, जनप्रतिनिधियों को, समाज को व राष्ट्र को आतिशबाजी से हो रहे अनगिनत हादसों से बचाने आतिशबाजी के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की मुहिम व्यापक रूप में छेड़ना चाहिए, तभी हम सब इस चलते फिरते बमों से सुरक्षित रह सकेंगे।
लेखक परिचय- प्रदीप मांढरे मध्य प्रदेश के सांध्य समाचार पत्र ग्वालियर हलचल से जुड़े हुए हैं।