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लखीमपुर खीरी में मारे गए किसानों के परिजन हैं मोदी और योगी पर ग़ुस्सा

लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में एक वाहन से किसानों को रौंदे जाने की घटना को एक साल हो गए हैं. हादसे में मारे जाने वाले किसानों के परिवार आज किस हाल में हैं?

By BBC News हिन्दी
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दलजीत सिंह की पत्नी परमजीत कौर
Prashant pandey/BBC
दलजीत सिंह की पत्नी परमजीत कौर

"सर क्या बताएँ वो मंत्री, हम छोटे किसान, तभी तो कुचले गए हैं, मारे गए हैं. उम्मीद क्या बताएँ आपको, अब उम्मीद तभी होगी जब न्याय मिलेगा."

कहते-कहते परमजीत कौर की आँखें डबडबा जाती हैं. अपने दुपट्टे से आँसुओं को पोंछ कर कहती हैं, "तीन तारीख़ आ रहा है मन बहुत दुखी हो रहा है."

दलजीत उन चार किसानों और पत्रकारों में से एक थे, जिन्हें पिछले साल तीन अक्तूबर को यूपी के लखीमपुर खीरी में किसानों के प्रदर्शन के दौरान थार से कुचल दिया गया था.

बहराइच ज़िले के बंजारा टांडा गाँव के किनारे एक घर दलजीत सिंह का भी है.

दलजीत के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा और एक बेटी है. थार से कुचलकर पिता की दर्दनाक मौत को बेटे राजदीप ने अपनी आँखों से देखा था.

वो मंज़र याद कर राजदीप आज भी सिहर उठते हैं. वे बताते हैं, "डैडी को कुचलकर थार जीप दूर तक घसीट ले गई. समझ नहीं आया था कि क्या हुआ अचानक. बस हर तरफ चीख-पुकार थी. इसके बाद लहूलुहान पिता को लेकर वो लोग अस्पताल भागे, लेकिन पिता ज़िंदा नहीं बचे."

परमजीत कौर उस दिन को याद कर कहती हैं, "एक साल में हमारी दुनिया बदल गई. ऐसा कोई दिन नहीं होता जब उनकी याद नहीं आती. अब तो बस न्याय चाहिए."

हालाँकि दलजीत कौर के परिवार के पास ठीक-ठाक मकान खड़ा हो गया है.

परमजीत कौर कहती हैं, "जो मदद मिली थी, कांग्रेस से और योगी जी से. उसी से घर बनवा लिया है. वही कमाने वाले थे वो तो चले गए. अब पैसों से क्या होता है. पैसा हम दो करोड़ दे दें, कोई उनको लाकर दे देगा क्या?"

परमजीत कौर
Prashant pandey/BBC
परमजीत कौर

दलजीत के चाचा चरनजीत सिंह कहते हैं, "वो दिन कैसे भूल सकते. अब बस न्याय की उम्मीद लगाए हैं, लेकिन जब तक मंत्री अपनी कुर्सी पर बैठा है न्याय भी नहीं मिलता दिखता. पावर का इस्तेमाल हो रहा. हम चाहते हैं फाँसी हो ऐसे लोगों को. इससे कम कुछ नहीं."

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क्या हुआ था तीन अक्तूबर 2021 को


  • तीन अक्तूबर 2021 को लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में किसान आंदोलन के तहत विरोध प्रदर्शन
  • कुछ लोगों पर महिंद्रा की थार गाड़ी चढ़ा दी, घटना में चार किसान और एक पत्रकार की मौत
  • मरने वालों में बहराइच के दलजीत सिंह, मोहर्निया निवासी गुरविंदर सिंह, पलिया के चौखडा फार्म निवासी लवप्रीत सिंह, धौरहरा तहसील के नक्षत्र सिंह.
  • निघासन निवासी पत्रकार रमन कश्यप की भी मौत
  • मौक़े पर मौजूद भीड़ ने कारों में सवार तीन लोगों की पीट-पीट कर हत्या की.
  • भीड़ की पिटाई में मरने वाले थे - भाजपा के मण्डल अध्यक्ष रहे श्यामसुंदर, लखीमपुर के भाजपा अध्यक्ष शुभम मिश्रा और ड्राइवर हरिओम मिश्र
  • दोनों तरफ़ से तिकुनिया में एफ़आईआर दर्ज कराई गई.
  • किसानों की एफ़आईआर में मुख्य अभियुक्त केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे आशीष मिश्र मोनू समेत 13 अभियुक्त जेल में बंद है.
  • अशीष मिश्र के साथी सुमित जायसवाल की एफ़आईआर में चार किसान जेल में बंद हैं.
  • मामले में केंद्री गृह राज्य मंत्री और लखीमपुर खीरी सांसद अजय मिश्र के बेटे आशीष मिश्र को मुख्य अभियुक्त
  • पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश दास के भतीजे अंकित दास के अलावा 12 अन्य को सह-अभियुक्त
  • उत्तर प्रदेश पुलिस की एसआईटी ने इस मामले में पाँच हज़ार पन्नों की चार्जशीट दायर की. एसआईटी ने घटना को एक "पूर्व नियोजित साज़िश" बताया.

गुरविंदर के पिता का भरोसा

गुरविंदर सिंह के पिता सुखविंदर सिंह
Prashant pandey/BBC
गुरविंदर सिंह के पिता सुखविंदर सिंह

बहराइच ज़िले के बंजारा टांडा गाँव के आगे ही लखनऊ रोड के किनारे हाईवे से क़रीब दो किलोमीटर दूर है मोहर्निया गाँव.

गुरविंदर 18 साल के थे. पिछले साल तीन अक्तूबर को किसानों के प्रदर्शन में गुरविंदर भी गए थे.

गुरविंदर को याद करते हुए पिता सुखविंदर गहरी साँस भरकर कहते हैं, "अब तो यादें ही रह गईं हैं. हम लोगों की उम्मीदें तो कोर्ट से ही है. इन लोगों से तो हैं नहीं. भाई नीचे भी उन्हीं की सरकार और केंद्र में भी उनकी है. और वो गृह मंत्री. कहीं न कहीं प्रेशर तो है ही. हम लोग तो कोर्ट पर ही भरोसा करेंगे."

घर से कुछ दूर आगे बेटे की याद में बनाए गए स्मारक को दिखाते हुए सुखविंदर कहते हैं, "हमने बेटे की शहादत को यादगार बना दिया. लेकिन सरकार ने अभी तक कोई वादा पूरा नहीं किया. न सरकारी नौकरी दी. न एमएसपी क़ानून लागू किया और न ही हम लोगों के शस्त्र लाइसेंस अभी तक बने."

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नक्षत्र सिंह के घर में भी पसरा है मातम

नक्षत्र सिंह की पत्नी जसवंत कौर रोते हुए और बेटा जगदीप
Prashant pandey/BBC
नक्षत्र सिंह की पत्नी जसवंत कौर रोते हुए और बेटा जगदीप

नामदार पुरवा के रहने वाले 60 साल के किसान नक्षत्र सिंह भी तिकुनिया में तीन अक्तूबर 2021 को मंत्री को काले झंडे दिखाने गए थे. लेकिन ज़िंदा घर नहीं आए.

एक साल में नक्षत्र सिंह के घर की शक्ल बदल गई है. गेट पर पहरा अभी भी लगा है. नक्षत्र सिंह को याद करते हुए उनकी पत्नी जसवंत कौर रोने लगती हैं.

सुबकते हुए कहती हैं, "जिस दिन वो आंदोलन में गए थे, उसी दिन उनका जन्मदिन भी था. साल गुज़रने के बाद भी न्याय नहीं मिला. मंत्री अभी भी पद पर हैं."

ये कह कर वो चुप हो जाती हैं. थोड़ा रुक कर कहती हैं, "हमें बस न्याय मिल जाए और कुछ नहीं चाहिए."

नक्षत्र सिंह के बेटे जगदीप सिंह कहते हैं, "हमें छत्तीसगढ़ और पंजाब सरकार से उस वक़्त 50-50 लाख रुपए मिले थे. 40 लाख योगी जी ने भी दिया था. पाँच लाख किसान दुर्घटना बीमा का मिला."

जगदीप
Prashant pandey/BBC
जगदीप

एक साल बाद केस की स्थिति पर जगदीप कहते हैं, "साल भर बीत गया, लेकिन इस पूरे साल में कितनी बार ज़िंदा रहे, कितनी बार मरे हैं, ये शब्दों से बयान करना बहुत मुश्किल है मेरे लिए."

उन्होंने कहा कि केस वहीं का वहीं है. आज तक किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है. वे कहते हैं- हमारे केस में आजतक ट्रायल भी शुरू नहीं हुआ. सिर्फ़ ज़मानत-ज़मानत अब तक खेली जा रही है.

जगदीप कहते हैं, "मंत्री जी की बर्खास्तगी अभी तक नहीं हुई है. मोदी जी उनको फूल देते हैं, वो उनसे फूल लेते हैं, वो जन्मदिन की बधाई देते हैं, वो उनको देते हैं. केस इसी वजह से वहीं का वहीं रुका हुआ है. हमारे चार-पाँच किसान मारे गए, लेकिन न मोदी जी के और न योगी जी के मुँह से ये निकला कि दुःखद घटना हुई. आज तक हम लोग इसी का इंतज़ार कर रहे कि उनके मुँह से ये शब्द निकल पाएँगे या नहीं?"

न्याय की उम्मीद के सवाल पर जगदीप कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट से ही उम्मीदें टिकी हैं.

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सतनाम सिंह का मकान
Prashant pandey/BBC
सतनाम सिंह का मकान

तिकुनिया हिंसा में अपने 18 साल के इकलौते बेटे लवप्रीत सिंह को खोने वाले सतनाम सिंह कहते हैं, "हमारी ज़िंदगी तो तीन अक्तूबर के बाद बहुत बदल गई, लेकिन जो न्याय चाह रहे हैं, वो नहीं मिला. एक साल हो गया है."

सतनाम सिंह ने कुछ दिन पहले पलिया थाने में आईटी एक्ट में अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ एक मुकदमा भी दर्ज करवाया है. जिसमें उनकी बेटियों को लेकर अभद्र टिप्पणी की गई थी.

सतनाम सिंह आगे कहते हैं, "अब हमें बदनाम करने को सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणियाँ की जा रही हैं. इसके पीछे भी उन्हीं के लोग हैं, अभी तक नौकरी भी नहीं मिली, सरकारी के लिए बात हुई थी. न्याय की उम्मीद लगाए हैं."

किस हाल में रमन कश्यप का परिवार

पत्रकार रमन कश्यप के पिता
Prashant pandey/BBC
पत्रकार रमन कश्यप के पिता

तिकुनिया में हिंसा में मारे गए पत्रकार रमन कश्यप के भाई पवन कश्यप कहते हैं कि घटना के बाद से कभी कोर्ट कचहरी तो कभी और कहीं, चक्कर ही लगाने पड़ रहे हैं.

पवन कहते हैं कि संयुक्त किसान मोर्चा पूरी मदद कर रहा है और दुश्वारियाँ ये आ रही हैं कि जब तक वह मंत्री पद पर हैं, तब तक न्याय की उम्मीद नहीं है.

रमन कश्यप के पिता राम दुलारे भावुक होते हुए कहते हैं, "कह कर गया था कि कवरेज करने जा रहा हूँ. 18- 20 घंटे बाद अस्पताल से सूचना मिली कि अज्ञात लाश पड़ी है. न्याय कैसे मिलेगा मंत्री पद का तो प्रभाव है ही. प्रभाव न होता तो उनको हटाया जाता."

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राशन कार्ड को भी तरस रहा श्यामसुंदर का परिवार


भाजपा कार्यकर्ता श्यामसुंदर निषाद की माँ और बहनें
Prashant pandey/BBC
भाजपा कार्यकर्ता श्यामसुंदर निषाद की माँ और बहनें

तिकुनिया कांड में किसानों पर थार चढ़ने के बाद हिंसा में मारे गए भाजपा कार्यकर्ता श्यामसुंदर निषाद का परिवार एक अदद राशन कार्ड को भी तरस रहा है.

श्याम सुंदर की माँ फ़ूलमती बेटे की तस्वीर देखते हुए रोने लगती हैं. उन्होंने बताया, "कलेजे का टुकड़ा था चला गया. बहू के नाम से 45 लाख का चेक मिला था. लेकिन बहू चेक लेकर मायके चली गई. दीपावली से वापस ही नहीं आई."

जयपरा गाँव में श्याम सुंदर के घर तक जाने वाली सड़क जरूर इंटरलॉकिंग हो गई है. सड़क पर अजय मिश्र टेनी का नाम है.

माँ कहती हैं कि रास्ता तो बन गया है लेकिन ना तो राशन कार्ड है और ना ही कोई नौकरी मिली और बहू पूरा पैसा लेकर चली गई. वह सुबकते हुए कहती हैं कि मदद नहीं मिली, तो बेटी की शादी कैसे होगी.


शुभम के पिता बोले, अमित शाह या योगी जी आएँ घर, देखें हाल


बीजेपी कार्यकर्ता शुभम मिश्र के पिता विजय मिश्र
Prashant pandey/BBC
बीजेपी कार्यकर्ता शुभम मिश्र के पिता विजय मिश्र

शुभम का पूरा परिवार भाजपा से ही जुड़ा हुआ है. शुभम ही घर मे कमाने वाले थे. वो एक फ़र्म चलाते थे.

लेकिन एक साल बाद उनके पिता उनको याद करते हुए कहते हैं, "कोई दिन नहीं गुज़रता, जब उसे याद न करते हों."

वो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के उदासीन रवैए से थोड़ा आहत हैं, "कहते हैं कि शुभम भाजपा का ही कार्यकर्ता था. उस दिन भी उन्हीं के लिए गया था. उसके मरने के बाद लोकल के नेता तो आए. मंत्री जी भी आए, लेकिन भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अगर सिम्पैथी जताता तो हमें ख़ुशी होती. हम जानते हैं कि शीर्ष नेताओं के पास समय कम होता है. लेकिन ये जानना ज़रूरी है कि परिवार का हाल क्या है, बच्चे कैसे हैं, कैसे भरण पोषण हो रहा."

शुभम के पिता विजय मिश्र कहते हैं कि नौकरी के लिए वे दो बार डीएम से मिल चुके हैं, लेकिन डीएम साहब ने कहा कि नौकरी का कोई आदेश नहीं आया.

वे कहते हैं, "हम तो किसी भी तरह जीवन काट लेंगे, लेकिन बहू है अगर उसे नौकरी मिल जाए तो उसका जीवन कट जाएगा. एक साल की लड़की है, उसकी ज़िम्मेदारियाँ तो ख़त्म हो जाएंगी."

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लखीमपुर खीरी में किसान फिर धरने पर, केंद्रीय मंत्री टेनी को बर्खास्त करने की मांग

https://www.youtube.com/watch?v=ZeqDUAr4Jck

नक्षत्र सिंह के घर के बाहर तैनात सुरक्षाकर्मी
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नक्षत्र सिंह के घर के बाहर तैनात सुरक्षाकर्मी

हरिओम चला गया, माँ को बेटी की शादी की चिंता


तीन अक्तूबर को हरिओम को दुनिया से गए भी एक साल हो गया. हरिओम केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी के ड्राइवर थे. भीड़ ने हरिओम को भी पीट पीटकर मार दिया था.

फरधान थाना इलाक़े के परसेहरा गाँव में एक साधारण से मकान के बाहर टीन के दरवाज़े पर दस्तक दी, तो हरिओम की बूढ़ी माँ बाहर निकलीं.

तीन बहनों और दो भाइयों वाले परिवार ने पिछले साल हरिओम को खोया, तो कुछ महीने पहले जिस बाप की दवा बेटे की कमाई से चलती थी, वो भी दुनिया को छोड़ गए.

हरिओम की माँ कहती हैं, "बीमार बाप की वही सेवा करता था. जब आता था, दाढ़ी बना देता था, खाना खिला देता था, बाप कई सालों से बीमार थे. हरिओम की मौत की ख़बर बाप को उनकी मौत तक नहीं दी. वो पूछते थे कहाँ है, तो भटका देते थे."

हरिओम की माँ कहती हैं, "अब बेटी की शादी की ज़िम्मेदारी है. कमाने वाला चला गया."

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English summary
Families of farmers killed in Lakhimpur Kheri are angry with Modi and Yogi
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