'मैं तिब्बत जाना चाहता हूं, हम सिर्फ अपनी स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं'
शिमला। दक्षिण एशिया में चीन का दबदबा बढ़ रहा है, तो तिब्बत की आजादी के अंदोलन के कर्णधार दलाई लामा भी अब अपनी निति में बदलाव लाये हैं। दलाई लामा ने दिल्ली में प्रस्तावित थैंक यू इंडिया कार्यक्रम के धर्मशाला शिफट होने के बाद स्पष्ट किया है कि तिब्बती चीन से संपूर्ण आजादी की मांग नहीं कर रहे, बल्कि हम चीन के साथ मिलकार काम करने के इच्छुक हैं। दलाई लामा की ओर से वाशिंगटन स्थित अंतरराष्ट्रीय कैंपेन फॉर तिब्बत को भेजे संदेश को जारी करते हुये केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन ने दलाई लामा के हवाले से कहा है कि चीन व तिब्बत के आपस में कई हित हैं। अगर तिब्बतियों को चीन आपस में मिलकर रहने की इजाजत दे तो दोनों पक्ष अपने प्राचीन ज्ञान को आगे बढ़ा सकते हैं।
दलाई लामा ने कहा कि चीन के साथ रहकर तिब्बत का अस्तित्व बना रह सकता है, तिब्बतियों को यूरोपियन यूनियन मॉडल के अनुरूप चीन रहने की अनुमति दे। मैं यूरोपियन यूनियन का कट्टर सर्मथक हूं। हमें लोगों को भेदभाव की दीवारों में नहीं बांटना चाहिये। लिहाजा मेरा विशवास है कि यूरोपियन यूनियन मॉडल दुनिया के दूसरे देशों के लिये प्रेरक है। इसी अनुरूप चीन व तिब्बत को नजदीक आना चाहिये। मेरी इच्छा है मैं वापिस तिब्बत जाऊं। हम केवल स्वायत्तता की ही मांग कर रहे हैं। हमें चीन के साथ रहने में कोई हिचक नहीं है। लेकिन चीन को भी दो कदम आगे बढ़ाने होंगे।
दलाई लामा के इस नये मॉडल पर अभी चीन की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। चीन शुरू से ही तिब्बत को चीन का अभिन्न अंग मानता रहा है। चीन नहीं चाहता कि किसी भी देश के राष्ट्र अध्यक्ष दलाई लामा से मिलें। यही वजह है कि बीते साल अमेरिका में सत्ता में आने के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दलाई लामा से नहीं मिले हैं। हालांकि, इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति दलाई लामा के बहाने चीन को चिढ़ाते रहे हैं। लेकिन शी जिनपिंग की बढ़ती राजनैतिक ताकत कहीं न कहीं तिब्बतीयों के लिये चिंता का विषय है।