कोरोना: ओडिशा में स्थिति काबू में लेकिन फिर भी सरकार क्यों है चिंतित
कोरोना की त्रासदी से निबटने में ओडिशा दूसरे राज्यों के मुक़ाबले काफ़ी आगे रहा है, इसमें कोई शक़ नहीं है. आंकड़ों के आधार पर देखा जाए तो ओडिशा का रिकॉर्ड हर मायने में काफ़ी संतोषजनक है. न केवल यहां कोरोना पॉज़िटिव पाए गए लोगों की संख्या मात्र 60 तक ही सीमित है और इस जानलेवा बीमारी से मरने वालों की संख्या केवल एक है, जो अधिकांश अन्य बड़े राज्यों के मुक़ाबले
कोरोना की त्रासदी से निबटने में ओडिशा दूसरे राज्यों के मुक़ाबले काफ़ी आगे रहा है, इसमें कोई शक़ नहीं है. आंकड़ों के आधार पर देखा जाए तो ओडिशा का रिकॉर्ड हर मायने में काफ़ी संतोषजनक है.
न केवल यहां कोरोना पॉज़िटिव पाए गए लोगों की संख्या मात्र 60 तक ही सीमित है और इस जानलेवा बीमारी से मरने वालों की संख्या केवल एक है, जो अधिकांश अन्य बड़े राज्यों के मुक़ाबले बेहतर है, बल्कि 'कोरोना पॉज़िटिविटी रेट' (टेस्ट किए गए नमूनों में पॉज़िटिव पाए गए नमूनों का प्रतिशत) देशभर में सबसे कम है.
गुरुवार तक टेस्ट किए गए 7577 नमूनों में से केवल 60 ही पॉज़िटिव पाए गए हैं. पिछले दो दिनों में राज्य में टेस्ट किए गए 2040 नमूनों में एक भी पॉज़िटिव मामला नहीं पाया गया है. इस तरह राज्य में 'पॉज़िटिविटी रेट' केवल 0.79 है.
उधर शुक्रवार को नई दिल्ली में केन्द्रीय स्वास्थ्य विभाग के प्रवक्ता लव अग्रवाल ने बताया कि ओडिशा उन 19 राज्यों में एक है जहां कोरोना का 'डबलिंग रेट' (पॉज़िटिव पाए गए नमूनों के दोगना होने का समय) राष्ट्रीय औसत से कम है.
शुक्रवार को ही कोरोना पॉज़िटिव पाए गए दो और पीड़ितों के पूरी तरह से स्वस्थ हो जाने के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. इसके साथ ही राज्य में इलाज के बाद स्वस्थ होने वाले लोगों की संख्या अब 21 तक पहुँच गई है.
ये आँकड़ें आश्वस्त करने वाले ज़रूर हैं, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि ओडिशा में कोरोना को लेकर चिंता का कोई कारण नहीं है.
नवीन पटनायक सरकार के लिए इस समय मुख्य रूप से तीन चुनौतियाँ हैं.
पहला - राजधानी भुवनेश्वर में कोरोना की चिंताजनक स्थिति
दूसरा - पहले कुछ दिन तक लॉकडाउन में पाबंदियों का सख़्ती से अनुपालन के बाद पिछले कुछ दिनों में भुवनेश्वर सहित राज्य के अधिकांश इलाक़ों में इसमें काफ़ी ढील देखी जा रही है.
और तीसरा - राज्य के अंदर और बाहर लॉकडाउन की वजह से फंसे प्रवासी श्रमिकों के खाने-पीने और रहने का इंतज़ाम.
भुवनेश्वर में चिंताजनक स्थिति
राजधानी भुवनेश्वर में स्थिति काफ़ी गंभीर बनी हुई है क्योंकि अभी तक राज्य में पॉज़िटिव पाए गए 60 नमूनों में से 46 केवल यहीं से आए हैं.
यही कारण है कि बुधवार को केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए देश के 170 'हॉटस्पॉट' ज़िलों की सूची में खोरधा को स्थान मिला है, जिसके तहत भुवनेश्वर शहर भी आता है.
राजधानी भुवनेश्वर में कोरोना की स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार ने यहाँ एक विशेष अभियान चलाने का निर्णय लिया है.
प्रमुख शासन सचिव असित त्रिपाठी ने शुक्रवार को इस बारे में जानकारी देते हुए कहा कि अगले सात दिनों में शहर में 5,000 नमूने टेस्ट किए जाएंगे. इसके लिए जगह-जगह अस्थाई शिविर लगाए जाएंगे.
इस अभियान में नागरिक संगठनों को शामिल किया जाएगा और इसमें अड़चन डालने वालों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कारवाई की जाएगी.
त्रिपाठी ने कहा कि किसी एक शहर में इतने कम समय में इतने बड़े पैमाने पर टेस्ट किए जाने की पूरे देश में यह सबसे बड़ी कोशिश होगी.
लॉकडाउन के नियमों के अनुपालन में ढील
ओडिशा में 'पॉज़िटिविटी रेट' देश भर में सबसे कम होने के आँकड़े जारी करते हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के राज्य निदेशक शालिनी पंडित ने कहा था कि यह लॉकडाउन के नियमों का सख़्ती से पालन का ही परिणाम है. लेकिन यह दावा पूरी तरह से सच नहीं है.
हां, ये ज़रूर है की लॉकडाउन के शुरुआती कुछ दिनों में पुलिस की सख़्त कारवाई के कारण पाबंदियों का कड़ाई से अनुपालन हुआ.
लेकिन पिछले कुछ दिनों में राज्य के अधिकांश इलाक़ों में नियमों का खुला उल्लंघन हो रहा है. आम लोग ही नहीं, पुलिस भी अब इस बारे में काफ़ी लापरवाह दिख रही है.
गौरतलब है कि देशभर में लॉकडाउन होने से दो दिन पहले से ही यानी 22 मार्च को ही ओडिशा सरकार ने पूरे राज्य में लॉकडाउन लागू कर दिया था.
मिसाल के तौर पर भुवनेश्वर शहर को ही लिया जाए, जो पूरे राज्य में सबसे बड़ा 'हॉटस्पॉट' है. यहाँ के सड़कों में अब काफ़ी संख्या में लोग बाइक और कारों में सवार आते-जाते देखे जा सकते हैं. राशन की दुकानों, सब्ज़ी मंडी और मांस, मछली बाज़ारों में सामाजिक दूरी के नियम का धड़ल्ले से उल्लंघन हो रहा है.
भुवनेश्वर के निवासी सत्यजित राणा कहते हैं, "अगर मीट, मछली ख़रीदने के लिए उमड़ रहे लोगों को एक दूसरे से दूरी बनाए रखने की अपील करो, तो लोग उल्टा आप ही पर बरस पड़ते हैं. कहते हैं 'अगर आप को कोरोना है, तो आप दूर खड़े रहिए'!"
'लॉकडाउन' के शुरुआती दिनों में नियमों को उल्लंघन करने वाले लोगों पर सख़्त कारवाई करने वाली पुलिस भी अब कुछ सुस्त पड़ती नजर आ रही है.
मैंने जब शहर के एक प्रमुख इलाक़े में तैनात एक पुलिस अधिकारी से इस बारे में पूछा तो उन्होंने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा, "हम करें भी तो क्या करें जब लोग इतने दिनों की बावजूद स्थिति की गंभीरता को समझने के लिए तैयार नहीं हैं? अगर सख़्ती करें तो फिर आप पत्रकार लोग ही हमारे पीछे पड़ जाओगे."
जानकारों का कहना है कि लोग अपने घरों में बैठे-बैठे ऊब गए हैं. उत्तरी शहर बालेश्वर और बारीपदा में स्थिति भुवनेश्वर से भी अधिक चिंताजनक है.
बालेश्वर के पत्रकार रश्मीरंजन दास ने बीबीसी को फ़ोन पर कहा, "पिछले तीन, चार दिनों में, ख़ासकर लॉकडाउन के दूसरे चरण की घोषणा के बाद, नियमों के पालन में काफ़ी ढील देखी जा रही है. पुलिस का रवैया भी अब पहले जैसा सख़्त नहीं रहा."
बारीपदा के निवासी किशन सेंड कहते हैं, "पहले कुछ दिन पुलिस सख़्त थी, इसलिए लोग भी नियमों का पालन कर रहे थे. लेकिन अब पुलिस भी सुस्त पड़ गई है और लोग भी."
लोगों की लापरवाही का एक कारण यह हो सकता है कि इन दोनों पड़ोसी ज़िलों में अभी तक एक भी कोरोना पॉज़िटिव मामला सामने नहीं आया है.
ग़ौर करने वाली बात यह है कि गांवों में, यहाँ तक कि दूर-दराज़ के आदिवासी गांवों में भी नियमों का अनुपालन बेहतर है, जबकि उल्लंघन के उदाहरण ज़्यादातर छोटे बड़े शहरों में ही अधिक देखे जा रहे हैं. दक्षिणी ओडिशा के कोरापुट, नवरंगपुर जैसे आदिवासी बहुल ज़िलों में नियमों का अनुपालन काफ़ी बेहतर है.
पुरी के सदर अस्पताल में काम कर रहे डॉ. सत्यरंजन पाणिग्राही मानते हैं कि लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन राज्य और देश के लिए काफ़ी महंगा साबित हो सकता है.
उन्होंने बीबीसी को बताया, "जैसा कि आप जानते हैं इस बीमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं है. इसलिए इससे बचने का एकमात्र उपाय है लॉकडाउन के नियमों का ईमानदारी से पालन करना. यही कारण है कि पूरे विश्व में लॉकडाउन लागू किया जा रहा है, जो एक वैज्ञानिक उपाय है."
डॉ. पाणिग्राही की मानें तो 3 मई को लॉकडाउन समाप्त होने तक कोरोना के ख़िलाफ़ जंग में ओडिशा अपनी अभी की स्थिति को बनाए रख पाएगा या नहीं यह काफ़ी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि अगले कुछ दिनों में नियमों का पालन कितनी कड़ाई से होती है.
प्रवासी श्रमिकों की समस्या
प्रवासी श्रमिकों की समस्या सरकार के लिए एक और चिंता का विषय बना हुआ है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य के क़रीब डेढ़ लाख श्रमिक इस समय अन्य राज्यों में फंसे हुए हैं, जबकि दूसरे राज्यों के क़रीब 77,000 श्रमिक ओडिशा में फंसे हुए हैं. इनके खाने-पीने के लिए सरकार द्वारा किए गए इंतज़ाम पर्याप्त नहीं हैं.
यही कारण है कि भूख-प्यास की मार से त्रस्त झारखंड के सैकड़ों श्रमिक लॉकडाउन के पाबंदियों के बावजूद पैदल या साइकल पर अपने अपने गांव वापस जाते दिख रहे हैं. इसी तरह आए दिन अन्य राज्यों में फंसे ओडिशा के श्रमिक वीडियो अपील के ज़रिए उन्हें वहाँ से निकालने की गुहार लगा रहे हैं.
सूरत में कार्यरत ओडिशा के कारीगर वापस आने पर अड़ गए तो राज्य सरकार ने अपने एक विशेष दूत (पूर्व मुंबई पुलिस कमिशनर अरूप पटनायक) को वहाँ भेजा. किसी तरह उन्हें समझा बुझाकर स्थानीय अधिकारियों की मदद से उनके रहने खाने-पीने का इंतजाम किया गया तब कहीं वे अपनी ज़िद से पीछे हटे.
प्रवासी श्रमिकों के लिए काम कर रहे स्वयंसेवी संगठनों की मानें तो अन्य राज्यों में फंसे ओडिशा के श्रमिकों की संख्या डेढ़ लाख नहीं, इससे कई गुना ज़्यादा दा है.
अभी तक नवीन सरकार राज्य में कोरोना को फैलने से रोकने में काफ़ी हद तक कामयाब रही है.
लेकिन लॉकडाउन का उल्लंघन अगर इसी तरह जारी रहा, तो स्थिति तेज़ी से बिगड़ सकती है और बेकाबू हो सकती है.