मोदी कैबिनेट विस्तार: NDA में आकर बुरे फंसे नीतीश कुमार, हुए ये चार नुकसान
मोदी सरकार का तीसरा फेरबदल और विस्तार रविवार को हो गया। इसके साथ ही अब सरकार में मोदी समेत 76 मंत्री हो गए हैं। इनमें 28 कैबिनेट मंत्री हैं, जबकि 11 राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 37 राज्य मंत्री हैं। निर्मला सीतारमण को प्रमोट कर रक्षा मंत्री बनाया गया है, जबकि अहम मंत्रालय गृह, विदेश, वित्त और रक्षा में से दो की जिम्मेदारी अब दो महिलाओं के हाथ में सौंपी गई है। फेरबदल में निर्मला के साथ चार 4 मंत्रियों को प्रमोट कर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया। सुरेश प्रभु से रेलवे लेकर अब उन्हें कॉमर्स मिनिस्टर बनाया गया है। पीयूष गोयल को रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है। कैबिनेट विस्तार में 9 नए चेहरे भी शामिल किए गए हैं, लेकिन इन नए चेहरों में एक भी नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू का नहीं है। नीतीश कुमार ने जुलाई में महागठबंधन तोड़ते हुए बीजेपी के साथ मिलकर बिहार में सरकार बनाई थी। कैबिनेट में जगह नहीं दिए जाने को लेकर नीतीश कुमार ने मीडिया के सामने यह कहकर नाराजगी जताई कि उन्हें तो इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
दफन हुआ पीएम बनने का ख्वाब बिहारी में
महागठबंधन के टूटने से पहले तक सियासी गलियारों में यह चर्चा जोर-शोर से थी कि नीतीश कुमार 2019 में विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर उतर सकते हैं। एनडीए में शामिल होने के साथ नीतीश कुमार ने परोक्ष रूप से प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पूरी तरह से नरेंद्र मोदी को सौंप दी है। चूंकि 2019 में नरेंद्री मोदी ही एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, इसलिए नीतीश के इस कदम से उनका पीएम बनने का सपना फिलहाल दफन हो गया है। अब नीतीश कुमार केवल बिहार तक ही सीमित रहेंगे।
लग रहे राजनीतिक अवसरवादिता के आरोप
नीतीश
के
एनडीए
के
साथ
जाने
से
उनकी
सिद्धांतवादी
नेता
की
छवि
को
धक्का
लगा
है।
2013
में
उन्होंने
नरेंद्र
मोदी
को
प्रधानमंत्री
पद
का
दावेदार
बनाए
जाने
पर
'सिद्धांतों
से
समझौता
नहीं'
कहकर
भाजपा
से
संबंध
तोड़
लिए
थे।
अब
उन्होंने
यह
कहकर
कि
वह
भ्रष्टाचार
के
खिलाफ
अपनी
लड़ाई
से
समझौता
नहीं
कर
सकते,
आरजेडी
और
कांग्रेस
से
संबंध
तोड़कर
फिर
से
भाजपा
के
साथ
मिलकर
सरकार
बना
ली।
छिन गया बड़े भाई का दर्जा
नीतीश कुमार जब एनडीए (इस बार हुए गठबंधन से पहले) का हिस्सा थे तो उन्हें बड़े भाई का दर्जा मिला हुआ था। 2010 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू को चुनाव लड़ने के लिए कुल 243 सीटों में से 141 सीटें मिली, जबकि भाजपा को महज 102 सीटें ही मिली। 2015 में दोनों अलग-अलग चुनाव लड़े और भाजपा ने 157 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, जबकि महागठबंधन में शामिल नीतीश को महज 101 सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिलीं। 2009 के लोकसभा चुनाव में भी बिहार की 40 सीटों में से 25 भाजपा ने नीतीश कुमार को दी। आने वाले चुनावों में नीतीश को इस तरह ज्यादा सीटें मिलने की संभावना कम ही है। फिलहाल बिहार के 40 में से 31 सांसद एनडीए के हैं, जिनमें अकेले भाजपा के 22 एमपी हैं। ऐसे में 2019 में नीतीश को काफी कम सीटों पर सिमटना होगा।
टूट गई सेक्युलर नेता की छवि
बिहार में लालू प्रसाद यादव के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद नीतीश ने संघ मुक्त भारत की बात कही थी। 'कांग्रेस मुक्त भारत' के जवाब में नीतीश ने भाजपा की विचारधारा का विरोध करते हुए खुले मंच से 'संघ मुक्त भारत' का नारा दिया था। इससे विपक्ष में नीतीश की एक अलग छवि बनी थी। नीतीश को अब अपने इस नारे को त्यागना होगा। एनडीए में रहते हुए वो कभी संघ के खिलाफ नहीं बोल पाएंगे। सेक्युलर ब्रिगेड के नेताओं में भी नीतीश का कद काफी हद तक घट गया है।