Budget 2023: क्या बजट ने बीजेपी का चुनावी काम आसान कर दिया है ? जानिए
Budget 2023:वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट के जरिए दो तरह की अहम जिम्मेदारियां निभाई हैं। एक तरफ आर्थिक अनुशासन का पालन करने की कोशिश की है। दूसरी तरफ राजनीतिक जरूरतों का भी ख्याल किया है।
Budget 2023 Political: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए बुधवार को पेश किया गया बजट काफी महत्वपूर्ण रहा है। क्योंकि, इसके माध्यम से सरकार को जहां एक तरफ देश की अर्थव्यवस्था को मौजूदा हालातों और भविष्य की चुनौतियों के बीच ठोस रखने की कोशिश करनी थी। जबिक, उसके सामने महामारी का भयावह बैकग्राउंड भी था और आम जनता को सारी चुनौतियों के बीच राहत देने की जिम्मेदारी भी। तो दूसरी तरफ सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए यह बजट इस साल 9 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले साल के लोकसभा चुनावों के लिए किसी बड़ी राजनीतिक परीक्षा से कम नहीं था। क्योंकि, यह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अंतिम पूर्ण कालिक बजट था। मोदी सरकार ने इन दोनों के बीच बैलेंस करने की बहुत ही कठिन, लेकिन काफी प्रभावी कोशिश की है।
मोदी सरकार और भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण है ये बजट
वित्त वर्ष 2023-2024 का वार्षिक बजट पेश करना वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए कई दृष्टिकोण से बेहद चुनौती वाला था। यह अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले का अंतिम पूर्णकालिक वजट है। इसी साल 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने हैं, जिनमें से ज्यादातर में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए कड़ी परीक्षा की स्थिति है। यानि बजट पेश करते समय वित्त मंत्री को देश के खजाने और अर्थव्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखने के साथ ही राजनीतिक तौर पर ऐसा आय-व्यय का ब्योरा पेश करना था, जो पार्टी की सियासी आवश्यकताओं को भी पूरा करता हो। इसलिए, मौजूदा बजट में समाज के ज्यादा से ज्यादा श्रेणी के लाभार्थियों को ध्यान में रखना था।
आर्थिक दृष्टिकोण से कैसा है बजट ?
अगर एक लाइन में कहना हो तो लगता है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण फिलहाल भाजपा के सामने मौजूद राजनीतिक परीक्षा में पास होती लग रही हैं; और सबसे बड़ी बात कि ऐसा करते हुए उन्होंने व्यापक रूप से आर्थिक स्थिरता और राजकोषीय अनुशासन का पूरा ध्यान रखा है। देश को ग्रीन ट्रांजिशन के लिए तैयार किया है, डाइरेक्ट टैक्स में भी राहत की पेशकश की है, भविष्य के लिए टेक्नोलॉजी में निवेश पर फोकस रखा है, इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश को बढ़ावा देना जारी रखा है, लोकल मैन्युफैक्चरिंग को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया है। राज्यों और निजी क्षेत्र को भी प्रोत्साहन देने की कोशिश की है। लेकिन, बावजूद इसके महामारी की मार झेल रही जनता के लिए मुद्रास्फीति के दबाव के बावजूद कल्याणकारी योजनाओं पर से फोकस कम नहीं होने दिया है और ऊपर से रोजगार सृजन के लिए भी उपायों पर अमल किया गया है।
बजट में किस आर्थिक वर्ग को लिया साथ ?
इस तरह से 2023-2024 का बजट अच्छी राजनीति और तुलनात्मक रूप से अर्थशास्त्र के सक्षम व्यवहारों पर आधारित लगता है, जो कि बहुत ही 'दुर्लभ प्रयोग' माना जा सकता है। हालांकि, इसमें कुछ कदम कई विश्लेषकों की नजर में कमजोर भी हैं। अगर हम यह देखें कि भाजपा का मल्टी-क्लास सियासी आधार क्या रहा है ? तो हम देख सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लीडरशिप वाली बीजेपी सरकार ने शहरी धनाढ्य भारतीयों, महानगरों से लेकर छोटे कस्बों तक का वेतनभोगी मध्यम-वर्ग, युवा, निम्न-मध्यम वर्ग का कामगार, गांवों के बड़े जमींदार, छोटे और मंझोले किसान, भूमिहीन मजदूर और विशेष रूप से महिलाएं, जिनमें से अधिकांश कल्याणकारी योजनाओं की लाभार्थी शामिल हैं, उन सबको अपना सियासी आधार बनाया है। एचटी की एक रिपोर्ट के अनुसार अगर इस विशाल समुदाय (जो अलग-अलग श्रेणियों के हैं) में से 10 में से 5 ने भी नरेंद्र मोदी वाली बीजेपी का साथ दे दिया तो उनकी पार्टी का काम बन सकता है। 2014 और 2019 में पार्टी को मिली बड़ी कामयाबी के पीछे इस समुदाय का बहुत बड़ा रोल माना भी जाता है।
सोशल इंजीनियरिंग भी भाजपा का बड़ा आधार
ऊपर समाज के जिन वर्गों का जिक्र किया गया है, वह पूरी तरह से एक आर्थिक आधार पर की गई गणना के अनुसार है। इनके अलावा भाजपा के पीछे एक बड़ी सोशल इंजीनियरिंग भी है, जो आर्थिक और सामाजिक तौर पर काफी हद तक एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। यह सामाजिक समूह है, व्यापक रूप से हिंदू समुदाय, हिंदुओं में ऊंची जातियों के लोग, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), दलित और भारत के उत्तरी, पश्चिमी, मध्य और तेजी से बढ़ते पूर्वी भारत में आदिवासी समाज। बीजेपी ने इस वर्ग के बीच अपना एक व्यापक जनाधार तैयार किया है, जो आर्थिक मसलों से परे है।
बजट के माध्यम से राजनीतिक संदेश
अगर वित्त मंत्री सीतारमण ने कल्याणकारी योजनाओं जैसे कि महामारी के दौरान 80 करोड़ लोगों को 28 महीनों तक मुफ्त राशन देने, 12 करोड़ टॉयलेट निर्माण, 9.6 करोड़ घरों में मुफ्त गैस कनेक्शन देने, 11.4 करोड़ छोटे किसानों के खातों में 2.2 लाख करोड़ सीधे ट्रांसफर करने, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना का बजट 66% बढ़ाकर 79,000 करोड़ रुपए करने को हाइलाइट किया है तो वह इन लाभार्थी वर्गों को यही बता रही थीं कि इस सरकार ने उनके जीवन को बेहतर करने के लिए क्या कुछ किया है। जब उन्होंने कारीगरों के लिए हस्तशिल्प में ज्यादा निवेश की बात कहते हुए यह कहा कि इससे कैसे ओबीसी, दलित, आदिवासियों और महिलाओं को फायदा मिलेगा तो उन्होंने यही बताने की कोशिश की है मोदी सरकार के मन में उनकी आजीविका का ख्याल हमेशा से रहा है। इसी तरह से यदि वह आकांक्षी जिलों या ब्लॉक की बात कर रही थीं तो संदेश साफ था कि देश का कोई भी हिस्सा अब केंद्र सरकार के लिए उपेक्षित नहीं रह गया है। जब वह प्रधानमंत्री आदिवासी समूह विकास मिशनों के लिए 15,000 करोड़ आवंटित कर रही थीं या फिर आदिवासी बच्चों के एकलव्य स्कूलों के लिए 38,000 टीचरों और स्टाफ की भर्ती की बात कर रही थीं तो उन्हें पता था कि उनका संदेश समाज के किस तबके तक पहुंचाना है। इस साल देश में जिन 9 राज्यों में चुनाव होने हैं, वहां कई में आदिवासियों की अच्छी-खासी आबादी है।
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इसी तरह से कृषि क्षेत्र के लिए फंड और खेती के लिए लोन टारगेट में वृद्धि, स्टोरेज सुविधाओं में बढ़ोतरी या इस सेक्टर में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर या मोटे अनाजों की बात करके उन्होंने साफ संदेश दिया कि मोदी सरकार के लिए अन्नदाताओं की कितनी अहमियत है। श्री अन्न योजना से ना सिर्फ देशवासियों की थाली में पोषक अनाज लौटेगा, बल्कि यह किसानों के उस तबके को साधने की कवायद है, जो अबतक उपेक्षित रहे हैं और जो बड़े किसान नहीं हैं। उधर मध्यम वर्ग की बात करें तो आयकर में छूट की सीमा 7 लाख करके उन्होंने नौकरी-पेशी लोगों की बहुत बड़ी मुराद पूरी कर दी है। इस तरह से मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के आखिरी पूर्ण बजट में आर्थिक अनुशासन का पालन करते हुए, समाज के जिस व्यापक वर्ग में भरोसा कायम करने की कोशिश की है, वह सकारात्मक माना जा सकता है और इस टेस्ट में वह पास होती हुई लग रही है।